बेमेतरा

पक्षी अभ्यारण्य के जिन जलाशयों में आते रहे प्रवासी पक्षी, वहां पानी कम
26-May-2023 2:56 PM
पक्षी अभ्यारण्य के जिन जलाशयों में आते रहे प्रवासी पक्षी, वहां पानी कम

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 26 मई।
जिले को पक्षी अभयारण्य के तौर पर पहचान दिलाने वाले परसदा, एरमसाही, गिधवा, मुरकुटा, नगधा के जलाशयों का जलस्तर तेजी से सूख रहा है। इसका असर प्रवासी पक्षियों पर पडऩे लगा है। बेहतर माहौल, चारा पानी की उपलब्धता होने के कारण देश व विदेश के प्रवासी पक्षियों के पसंदीदा इन जलाशयों में पर्याप्त जलभराव नहीं है। जलाशयों में जलभराव नहीं होने की जानकारी वन विभाग को भी है। बावजूद बोर खनन या अन्य विकल्प पर ध्यान नहीं दिया गया है।

इस वजह से पक्षियों की संख्या धीरे कम होते जा रही है। कई सालों से पक्षी अभयारण्य को विकसित करने की योजना तैयार करने का कवायद कागजों में दौड़ रही है और मौके पर जलाशय सूखते जा रहे हैं।

यहां के जलाशयों में पक्षियों का आना नवंबर से प्रारंभ हो जाता है। ये पक्षियां यहां मई, जून तक रूकती हैं। यह बात अलग है कि ज्यादातर पक्षियां मार्च के अंतिम सप्ताह तक वापस चली जाती हैं, फिर भी बहुत सी पक्षियां यहां मई जून तक रूकती हैं। इस बार जलाशयों में पानी पर्याप्त नहीं होने के कारण पक्षी समय से पहले ही वापस चली गई हैं। पक्षी प्रेमियों का मानना है कि यदि यहां के जलाशयों में बारहमासी पानी की व्यवस्था हो जाती है तो पक्षियों का ठहराव ज्यादा समय तक हो सकता है। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है। ग्राम गिधवा में नादंघाट से पानी पहुंचाने के लिए केनाल बनाया गया है जो सूख गया हैै। पहले इस केनाल में हमेशा पानी बहता रहता था।

6 में से 2 जलाशयों में ही पानी 
जल संसाधन विभाग के ग्राम गिधवा में दो जलाशय हैं। इसमें से क्रमांक एक 110 एकड़ का है। इसमें आधे से कुछ अधिक जलभराव है। जबकि 54 एकड़ का दूसरा जलाशय सूख गया है। ग्राम मुरकुटा में 90 एकड़ का जलाशय है जिसमें करीब 30 फीसदी ही पानी है। जलभराव के लिहाज से दो जलाशय बेहतर हैं जिसमें ग्राम परसदा के जलाशय में 90 फीसदी और ऐरमसाही जलाशय में 70 फीसदी से अधिक जलभराव है। दोनों जलाशयों में जलभराव होने के कारण क्षेत्र का जलस्तर भी ठीक है।

सात साल में नहीं बदली तस्वीर 
जिले के दो जलाशयों का चयन किया गया था जहां पर पक्षियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां होना माना गया था। पूर्व में जलाशय जल संसाधन विभाग के पास था । ऐसे में वन विभाग को जल संसाधन विभाग से सहमति लेना जरूरी था जिसे जारी किया चुका है। वन मंडल अधिकारी कार्यालय की ओर से जिला प्रशासन को पत्र लिख कर गिघवा-परसदा जलाशय को पक्षी आरक्षित क्षेत्र घोषित करने के अधिकार वन्यप्राणी सरंक्षण अधिनियम 1982 के तहत कार्रवाई के लिए अभिमत मांगा गया था। जल संसाधन विभाग की सहमति के बाद प्रकरण राज्य शासन को प्रकरण प्रस्तुत किया गया। इसके बाद नोटिफिकेशन की कार्यावाही की गई। इन सबके बाद पक्षियों के संरक्षण व पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना था पर आज भी स्थिति 7 साल पुरानी नजर आ रही है।

जलाशयों का संधारण जलभराव वन विभाग को करना है - ईई
जल संसाधन विभाग के ई ई चंद्रशेखर शिवहरे ने बताया कि पक्षी अभयारण्य बनाने के लिए विभाग द्वारा वन विभाग को सभी जलाशयों के संधारण व बारामासी जलभराव की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। पूर्व में ढाबां से पानी लाने का योजना तैयार की गई थी, जो वन विभाग को ही करना था।
 


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