रायपुर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 20 सितंबर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि संवत्सरी विशुद्ध रूप से आत्मशुद्धि करने का पर्व है। यह हमसे साल भर हुए पापों की आलोचना कर उन्हें न दोहराने का संकल्प लेने का पर्व है। मन की शुद्धि और राग-द्वेष से मुक्ति पाने का पर्व है। जैसे कपड़े एक बार पहनने के बाद गंदे हो जाते है, वैसे ही हर व्यक्ति से जाने-अनजाने में कई गलतियां हो जाती हैं। इन गलतियों को याद कर पुन: माफी मांगने की प्रेरणा है, संवत्सरी। उन्होंने कहा कि क्षमा से बढक़र कोई तप और त्याग नहीं होता। क्षमा से ही धर्म की शुरुआत होती है। संवत्सरी पर्व तभी सार्थक होता है जब इंसान अपने से हो चुके गलत कृत्यों के लिए माफी मांगता है और दूसरों से होने वाली गलतियों को माफ कर देता है। उन्होंने कहा कि जैसे गंगा में डूबकी लगाने से तन का मैल धुल जाता है वैसे ही क्षमा की गंगा में नहाने से पाप, ताप और संताप तीनों धुल जाते हैं। क्षमा धर्म को अपनाने वाला सच्चा आराधक होता है। जो व्यक्ति संवत्सरी पर्व के दिन भी भीतर में वैर-विरोध की गांठ पाले रखता है, वह इंसान कहलाने के काबिल नहीं है।
साध्वीजी ने कहा कि संवत्सरी छोटों का नहीं, बड़ो के झुकने का पर्व है। 364 दिन भले ही बड़े छोटों से प्रणाम करवाएं, पर संवत्सरी का 1 दिन मानव जाति को संदेश देता है कि सास-बहू को, पिता-बेटे को अधिकारी-कर्मचारी को और बड़े छोटों को प्रणाम कर हो चुके अनुचित व्यवहार की क्षमायाचना कर ले। जो गलती करता है वह इंसान है, जो गलती पर गलती किए जाता है वह इंसान कहलाने लायक नहीं होता और जो गलती होने पर क्षमा मांग लेता है, वह भगवान तुल्य बन जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि जैसे व्यापारी साल बीतने पर खातों का लेखा-जोखा करता है, ठीक वैसे ही संवत्सरी साल भर का लेखा-जोखा करने का पर्व है। हमसे जो भी सालभर में पाप हुए हैं उन्हें स्वीकार कर स्वयं की आलोचना करने का पर्व है संवत्सरी उन्होंने कहा कि के वल तप-त्याग से आत्मा निर्मल नहीं होती है जो गलती को स्वीकार प्रायश्चित कर लेता है उसकी आत्मा अवश्य निर्मल हो जाती है।