महासमुन्द

जब-जब मैनें मिट्टी को छुआ,यही विनती की कि अधूरा गढक़र किसी जीव को पृथ्वी पर मत भेजना- हीरालाल
20-Sep-2023 8:01 PM
जब-जब मैनें मिट्टी को छुआ,यही विनती की कि अधूरा गढक़र किसी जीव को पृथ्वी पर मत भेजना- हीरालाल

मूर्तिकला में अपना हुनर दिखा रहा दिव्यांग हीरालाला के जज्बे को लोग सलाम करते हैं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 20 सितम्बर। कल गणेश चतुर्थी पर बड़े ही धूम धाम से गणपति की मूूर्तियां विराजित हुईं। महासमुंद शहर में कई स्थानों पर पंडाल सज रहे हैं। बाजार में दिन भर भगवान गणेश की मूर्तियों की भारी डिमांड रही। गणेशजी की मूर्तियों के साथ कल दिव्यांग हीरालाल भी बाजार पहुंचा था। हीरालाल जिले का एक ऐसा मूर्तिकार है जो शरीर से अयोग्य होने के बावजूद दृढ़ मन से मूर्तिकला में अपना हुनर दिखा रहा है। मूर्तिकार हीरालाल चक्रधारी जिले के लालपुर (बागबाहरा)में रहते हैं। उनमें गजब की जीवटता है और उनके इसी हौसले को लोग सैल्यूट कर रहे हैंं।

हीरालाल कहते हैं कि बनाने वाले ने न जाने क्यों मुझे अधूरा गढ़ दिया लेकिन मैं मूर्तियों को पूरी तरह तैयार करता हूं। यह बात और है कि मैं उन्हें जीवन नहीं दे सकता लेकिन इनसे मेरे परिवार को रोटियां मिलती है और यही जीवन का आधार है। हीरालाल के परिवार में कुल चार लोग हैं। बूढ़े माता पिता, पत्नी और एक बच्ची। जन्म से ही हीरालाल दिव्यांग है। चल फिर नहीं सकता। मां पिता ने काफी इलाज कराया लेकिन हीरा ठीक नहीं हुआ।

बचपन में पिता चाक पर हाथ आजमाते देखते रहे और उम्र बढऩे के साथ हीरालाल चक्रधारी ने उसी चाक पर अपना किस्मत लिखना शुरू किया। घड़े, दीये, गुल्लक बनाए। धीरे से शिव जी, विष्णु जी, भवानी और गाणेश जी की मूर्तियां बनाने लगा। हीरालाल कहते हैं कि जब-जब मैनें मिट्टी को छुआ है, तब-तब देवों से विनती की है कि अधूरा गढक़र किसी जीव को पृथ्वी पर मत भेजना, इसमें हर पल मौत का सामना होता है।

हीरालाल कहते हैं-मैं लगभग 22-23 सालों से मूर्तियां बनाने का काम करते आ रहा हूं। मैंने मूर्तिकला को अपने जीवन का आधार बना लिया है। जिले की बात नहीं है। प्रदेश भर के लोग मुझसे मूर्तियां खरीदते हैं। बहुत बार तो दूसरे प्रदेश से भी मूर्ति बनाने का ऑर्डर मिल जाता है।

मूर्तिकार हीरालाल ने बताया-परिवार के अजीविका का मूर्तिकला ही एक मात्र साधन है। अभी गणेश जी की मूर्तियां बना रहा हूं। इन मूर्तियों की डिमांड छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिशा में भी है। इसके बाद दुर्गा माता की मूर्तियां बनाऊंगा। गणेश चतुर्थी के बाद से ही दुर्गा माता की मूर्तियां बनाना शुरु हुआ है। दीपावली के लिए लक्ष्मी माता की मूर्तियां और दीए भी बनाता हूं। इस तरह साल भर मिट्टी से मूर्तियां बनाता रहता हूं।

मूर्तियों को आकार देने पहले मुझे आकार देने वाले भगवान की याद करता हूं और यही कहता हूं कि किसी भी जीव को दिव्यांग बनाकर मत भेजना। फिर मिट्टी के साथ एकलय होकर मूर्तियों को आकार देना शुरू करता हूं। परिवार के लोग भी इस काम में मेरा साथ देते हैं।

 बहरहाल हीरालाल कई ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा बने हैं, जो सोचते हंै कि दिव्यांग बनकर जिंंदगी में कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसे लोगों को हीरालाल का संदेश है कि कभी हार न मानें, कर दिखाइए, जिंदगी जीने का नाम है।

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