महासमुन्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 21 सितंबर। ओडिशा से लगा हुआ जिला होने के कारण महासमुंद जिले के कई गांवों-शहरों में नुआखाई पर्व काफी धूमधाम से मनाया गया। बसना क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य ग्राम नानकसागर गुलाबी गांव के लोगों ने एक-दूसरे से गले मिलकर व अभिवादन कर नुवाखाई पर्व उत्साह के साथ मनाया।
मालूम हो कि भादो माह में ऋषि पंचमी के दिन नई फसल आने की खुशी में नया चावल का अन्न खाकर इस पर्व को मनाया जाता है और नवान्न खाने के बाद गांव के लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। खेतिहर, मजदूर और किसानों का यह पर्व नानक सागर में बरसों से मनाया जा रहा है। सभी स्थानों पर नुआखाई के अवसर पर बूढ़ादेव से एक ही मन्नत मांगी गई-सभी जीवों की रक्षा हो, सबकी भूख मिटे।
जानकारी मिली है कि नानकसागर में सतपथी परिवार के 172 सदस्यों ने एक साथ नवान्न भोज किया। इसमें पूरा गांव भी शामिल हुआ। एकनाथ प्रधान, राजेश प्रधान, मधु यादव ने बताया कि यह पर्व गांव में एकता पर्व के रूप मनाते हैं। नानकसागर ओडिशा के नजदीक में बसा हुआ है। ओडिशा में इसी दिन नुआखाई का पर्व मनाते हैं, इसलिए नानकसागर में भी यह परंपरा है। किसी भी जाति का हो आदर्श मैत्री भाव के साथ नया चावल से बने भोजन का आनंद लेते हैं। कोई भेदभाव नहीं रहता। गांव की सभी महिलाएं, बच्चे, बड़े सदस्यों ने बुधवार को नवात्र भक्षण में हिस्सा लिया।
नानकसागर सरपंच रेणुका बंधु कहती हैं कि यह पर्व नई फसल आने के बाद धूमधाम से मनाया जाता है। गांव से बाहर रहने वाले लोग भी इस अवसर पर गांव आते हैं। इस बार भी सभी के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए थे।
इसी तरह तोषगांव के स्कूल में भी ग्रामीणों ने नुआखाई का पर्व साथ मिलकर मनाया। साथ साथ भोजन कर अमीरी-गरीबी के भेदभाव से दूर रामजी बंधु, निताई बरिहा, निरंजन ने गांव के बड़ों का आशीर्वाद लिया। तोषगांव के अलावा फुलझर अंचल में भी नुवाखाई का पर्व उत्साह के साथ मनाया गया। नया फसल आते ही देव, पितरों, प्रकृति एवं ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हुए सभी ने पूजा अर्चना के बाद नया अन्न ग्रहण किया।
बसना क्षेत्र के देवरी, पिरदा,भंवरपुर में नुआखाई पर्व पर ज्यादातर दुकानें बंद रही। गांव वालों का कहना है कि नवान्ह ग्रहण की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है। जैसे पंजाब में बैसाखी, केरल में ओणम, असम में बिहू और छत्तीसगढ़ में नवापानी की परंपरा है, उसी तरह ओडिशा में नुआखाई का चलन है। पश्चिम ओडि़शा ले सटे हुए फुलझर अंचल के सरहदी इलाकों में भी हर साल भाद्र शुक्ल चतुर्थी, पंचमी, छठ के दिन नुआखाई का उत्साह देखते ही बनता है।
ओडिशा बार्डर पर बसे महासमुंद जिले के गांवों में हर वर्ष नुआखाई का त्यौहार परम्परगत तरीके से उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान भाद्र महीने के शुक्ल पक्ष में खेतों में धान की नई फसल, विशेष रूप से जल्दी पकने वाले धान में बालियां आने लगती हैं। तब नई फसल के स्वागत में नुआखाई का आयोजन होता है। यह हमारी कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति पर आधारित त्यौहार है। इस दिन फसलों की देवी अन्नपूर्णा सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है।
नये धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी नये अन्न का ग्रहण बड़े चाव से किया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद नुआखाई का सह भोज होता है। इस दिन के लिए अरसा, पीठा, व्यंजन विशेष रूप से तैयार किया जाता है। लोग एक-दूसरे के परिवारों को नवान्ह ग्रहण के आयोजन में स्नेहपूर्वक आमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नये वस्त्रों में सज धजकर एक दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। गांवों से लेकर शहरों तक खूब चहल.पहल और खूब रौनक होती है।
ग्राम गुढिय़ारी में भी नुआखाई का पर्व बुढ़ादेव देवगुड़ी में सोनामुंदी,पौंसरा,चिमरकेल और ओडिशा के भैसादरहा, टेटंगपाली कोलिहाबांदा, भालेश्वर, नावाडीह, गरहाभांठा आदि 34 गांवों के गोड़ जाति के पोर्ते समुदाय के लोगों ने वर्षों पुरानी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के साथ धूमधाम के साथ मनाया।
देवगुड़ी के सुशील कुमार दीवान ने बताया कि गोंड़ जाति के पोर्ते समुदाय के लोग सोमवंशी सूर्यवंशी के वंशज हैं। गुढिय़ारी गांव में 34 गांवों के पोर्ते समुदाय के लोगों ने एक साथ अपनी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के साथ श्री बुढ़ादेव की पूजा अर्चना कर नुआखाई का पर्व मनाया।
उन्होंने बताया कि बूढ़ादेव को नये फसल के कोड़हा चिवड़ा जो धान की बालियों को कूटकर बनाया जाता है, जवरी खीर और धान की बालियों को विशेष रूप से कोरिया वृक्ष की पत्ती में भोग चढ़ाते हैं। वहां उपस्थित पोर्ते समुदाय के लोग एक साथ बैठकर नवा भक्षण करते हैं। नवा भक्षण के पश्चात पोर्ते समुदाय के लोग नए फसल की आगमन की खुशियां मनाते हुए एक दूसरे को नुआखाई की बधाई गले लगा कर देते हैं। जो परंपरा और संस्कृति हमारे पूर्वज छोडक़र गये हंै, उसे बनाए रखने के लिए यह सहभागिता होती है।