राजनांदगांव

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 1 अक्टूबर। डोंगरगांव अंचल के बहुचर्चित विष्णुदास आत्महत्या कांड के आरोपी ग्राम पंचायत खुर्सीपार की पूर्व सरपंच कुन्तीबाई एवं उनके पति तथा भाजपा नेता धनीराम चौधरी को सत्र न्यायाधीश राजनांदगांव ने निर्णय पारित करते उन्हें धारा-306/34 भारतीय दंड संहिता के आरोपों से दोषमुक्त कर दिया है।
थाना डोंगरगांव द्वारा प्रस्तुत अभियोग पत्र के अनुसार ग्राम खुर्सीपार थाना डोंगरगांव जिला राजनांदगांव निवासी पोषण साहू द्वारा विगत 6 जुलाई 2020 को थाना डोंगरगांव में इस आशय की रिपोर्ट दर्ज कराया था कि उसके बड़े भाई विष्णुदास साहू ने अपने खेत कोठार के कहुआ पेड़ की डाली में फांसी लगाकर आत्महत्या कर लिया है।
सूचना थाना डोंगरगांव द्वारा मर्ग कायम किया जाकर जांच की कार्रवाई प्रारंभ की गई। जिसमें मृतक विष्णुदास के कमीज के जेब में एक सुसाईड नोट मिला। जिसमें मृतक द्वारा अपनी मृत्यु के पहले एक कागज में पूर्व सरपंच कुन्तीबाई और उसके पति धनीराम के कारण आत्महत्या कर रहा हूं, लिखकर अपना हस्ताक्षर किया था, जिसे गवाहों के सामने जब्त किया गया था तथा हस्तलिपि विशेषज्ञ द्वारा उक्त हस्तलिपि एवं हस्ताक्षर को मृतक का होना पाया गया था।
पुलिस के जांच में गवाहों से पूछताछ करने पर यह पाया था कि पिछले सरपंच चुनाव में मृतक विष्णुदास की पत्नी लोकेश्वरी साहू ने पूर्व सरपंच कुंतीबाई को हराया था, परन्तु कुन्तीबाई द्वारा पंचायत का प्रभार नहीं जा रहा था तथा पति-पत्नी दोनों ही विष्णु साहू के साथ अक्सर गाली-गलौज कर रास्ते मे रोकर उसे धमकी देते रहते थे कि वह कैसे सरपंची करेगा और उसे छह माह के अंदर रामनाम सत कर निपटा देंगे, कहकर हमेशा ही मानसिक रूप से निरंतर प्रताडि़त कर रहे थे। आरोपीगण द्वारा दी जा रही निरंतर मानसिक प्रताडऩा के कारण ही विष्णुदास साहू ने 6 जुलाई 2020 को 7 बजे अपने कोठार में लगे कहुवा पेड़ के डाल में फांसी लगाकर आत्महत्या किया था। जिसके आधार पर आरोपीगण के विरूद्ध अपराध पंजीबद्ध किया जाकर उन्हें गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा हुए थे। थाना डोंगरगांव द्वारा मामले का अन्वेषण पूर्ण किया जाकर आरोपीगण के विरूद्ध प्रथम दृष्टया आत्महत्या के दुष्प्रेरण का आपराध किया जाना प्रमाणित पाते सत्र न्यायालय मे मामला प्रस्तुत किया था। यह मामला डोंगरगांव अंचल मे यह मामला काफी चर्चित था।
मामले का संपूर्ण विचारण सत्र न्यायाधीश राजनांदगांव के न्यायालय में किया गया। विद्वान न्यायाधीश आलोक सिंह ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी साक्षियों के साक्ष्य की समीक्षा कर उभय पक्षों के तर्क सुनने के पश्चात् अभियुक्तगण के जाने माने अधिवक्ता हलीम बख्श गाजी द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए फैसलों के प्रकाश में अपना प्रभावी तर्क प्रस्तुत किया, जिसे स्वीकार करते विद्वान सत्र न्यायालय ने अभियोजन द्वारा अपने मामले को प्रमाणित कर पाने में असफल रहने के कारण अभियुक्तगण को धारा 306/34 भादवि के आरोप से बरी किए जाने का निर्णय सुनाया है।