राजनांदगांव
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राजनांदगांव, 1 अक्टूबर। कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के सहयोग से कलाचर्या का आयोजन शनिवार को विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग के सभागार में किया गया।
शुरूआत में कला अकादमी के अध्यक्ष योगेंद्र त्रिपाठी ने अतिथियों व आगंतुकों का स्वागत करते आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला। पहले सत्र की शुरूआत ‘रविन्द्रनाथ टैगोर की कला’ पर केंद्रित व्याख्यान से हुई। जिसमें कलाकार एवं कला शिक्षक शर्मीन्द्रनाथ मजुमदार ने विश्वकवि रविंद्रनाथ टैगौर की पेंटिंग और शैली से विद्यार्थियों को अवगत कराया।
अपने व्याख्यान में मजुमदार ने बताया कि रविंद्रनाथ ठाकुर नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद 67 साल की उम्र में चित्रकारी की तरफ मुडे थे। विश्व कवि ने सरल, संक्षिप्त व स्पष्ट रेखाओं द्वारा आदि मानव के समान ही चित्र-चित्रांकित किए। उन्होंने चित्रकला के क्षेत्र में किसी परम्परागत शैली को न अपनाते संक्षिप्त रेखाओं व रंगों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति की।
उन्होंने कहा अगर आप कॉपी नकल करते हैं तो आप बेहतर आर्टिस्ट नहीं हो सकते। उन्होंने उदाहरण देते कहा कि आदिमानव ने गुफाओं में जो चित्र बनाए वो तो कहीं से भी नकल नहीं है। उन्होंने कहा कि चित्रकला के 30 हजार साल के इतिहास में कहीं कोई नकल नहीं दिखती है, बल्कि हाल के 2-3 सौ साल में कॉपी का चलन बढ़ा है। इसके पीछे औपनिवेशिक दास्तां की मानसिकता जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कला के क्षेत्र में संगीत का घराना होता है, लेकिन पेटिंग का कोई घराना नहीं होता, क्योंकि यह कला आपके अंदर से स्वयं आती है।
इसके उपरांत ‘मनुष्य के साथ मूर्ति कला का संबंध’ विषय पर कलाकार एवं कला शिक्षक मयूर कैलाश गुप्ता ने विद्यार्थियों के बीच अपनी बात रखी।
कार्यक्रम का संचालन कपिल वर्मा और राजेन्द्र यादव ने किया। इस दौरान मूर्ति कला विभाग के अध्यक्ष छगेंद्र उसेंडी, चित्रकला विभाग के अध्यक्ष विकास चंद्र, रवि नारायण गुप्ता और संदीप किंडो सहित 700 से ज्यादा विद्यार्थीगण उपस्थित थे।