गरियाबंद

संगोष्ठी में कवि-लेखकों का भाषा के प्रति छलका दर्द
30-Nov-2023 8:16 PM
संगोष्ठी में कवि-लेखकों का भाषा के प्रति छलका दर्द

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

राजिम, 30 नवंबर। प्रयाग साहित्य समिति के तत्वावधान में गायत्री मंदिर सभागृह में राजभाषा दिवस के अवसर पर साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम ज्ञानदायिनी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की गई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भाषाविद दिनेश चौहान ने कहा कि छत्तीसगढ़ी राजभाषा कौन मनाते  हैं? इसका जवाब मिलेगा चंद साहित्यिक संस्था के लोग। जो लिखने पढऩे में रुचि रखते हैं वही लोग मनाते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि इसके लिए शासन आदेश निकाले और हर शैक्षणिक संस्था में छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस 28 नवंबर को धूमधाम से मनाया जाए तो इसका कोई विरोध नहीं कर सकेगा।

कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे प्रयाग साहित्य समिति के अध्यक्ष टीकमचंद सेन ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य को बने करीब 23 साल बीत चुके हैं और छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, लेकिन इन सालों में जितना भाषा का विकास होना चाहिए था वह नहीं हो पाया है। सरकार की ओर से जितनी भाषा के उत्थान के लिए संसाधन जुटाना था वह महत्वपूर्ण कदम अभी तक नहीं उठाया गया। केवल फाइल के कागजों में छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का मान्यता तो दे दिया गया, परन्तु उस हिसाब से उनका विकास नहीं हुआ है इसमें भी और बहुत कुछ कार्य करने की आवश्यकता है। चाहे पढ़ाई के माध्यम से स्कूल में हो, चाहे किसी माध्यम से सतत इसका विकास होना बहुत जरूरी है। व्यंग्यकार संतोष सेन ने अपनी बात रखते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा का जिस तरह से सम्मान होना चाहिए वह नहीं मिल रहा है। छत्तीसगढ़ी हमारी दाई की भाषा है।

हास्य कवि गोकुल सेन ने कहा कि भाषा विचार अभिव्यक्ति का साधन होता है। यहां के लोगों के रग रग में छत्तीसगढ़ी रचा और बसा हुआ है जिन्हें बोलने व सुनने में अच्छा लगता है। कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोगों को ही ठीक से जानकारी नहीं है कि आज छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस है इनका प्रचार प्रसार होना चाहिए। जन जागरूकता बहुत जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि संविधान के आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को दर्ज करने के लिए यहां के सभी सांसदों को एकजुट होने की आवश्यकता है। आज भी छत्तीसगढ़ी में लिखी गई कविताएं देश के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में भाषाई विसंगति के चलते प्रकाशित नहीं हो पाती। यदि इन्हें संविधान मान्यता दे दे तो भाषा का मान और सम्मान बना रहेगा।

इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर ने किया। प्रयाग साहित्य समिति के संरक्षक विष्णु राम जांगड़े ने आभार प्रकट किया। मौके पर प्रमुख रूप से ईश्वरी प्रसाद साहू, सुरेश सिंहा, पुरुषोत्तम दीवान, शेखर यादव, कौशल साहू, अरविंद यदु, दीनबंधु रावत प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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