बलौदा बाजार

डीके कॉलेज में दाऊ के समाज सेवा के कामों को किया याद
07-Apr-2024 5:11 PM
डीके कॉलेज में दाऊ के समाज  सेवा के कामों को किया याद

दाऊ की पत्नी ने 35 हजार रुपये के गोल्ड ब्रांड दान किया, फिर मिली मान्यता, नाम पड़ा डीके कॉलेज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 7 अप्रैल।
दाऊ कल्याण सिंह अग्रवाल को दानवीर कहा जाता है। उनका पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित रहा गुरुवार को उसे डीके कॉलेज में उनकी जयंती मनाई गई। जिसने जिलेभर को कई होनहार छात्र दिए हैं। 

61 साल के गौरवशाली इतिहास को दीवान बहादुर दाऊ कल्याण सिंह कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय अपने में समेटे हुए हैं। एक समय था, जब इस कॉलेज में प्रवेश पाना अपने आप में एक गौरव की बात थी। 

61 साल पहले 4 जुलाई 1963 में कॉमर्स संकाय के साथ मात्र 17 विद्यार्थियों के साथ क्लब ग्राउंड में शुरू हुआ था। 1992 यह कॉलेज अपने खुद के भवन में स्थानांतरित हो गया है, जहां आज लगभग 3 हजार छात्र अध्यनरत हैं।

दशहरा मैदान में अंग्रेजों के बने क्लब ग्राउंड में शुरू हुआ था कॉलेज: 1963 में कॉलेज दशहरा मैदान के पास स्थित अंग्रेज द्वारा बनाए गए क्लब ग्राउंड में प्रारंभ किया गया। स्थानीय बुद्धजीवियों में बलौदा बाजार एजुकेशन सोसाइटी नामक समिति का गठन कर महाविद्यालय संचालन का संकल्प लिया। समिति के प्रथम अध्यक्ष थे ललित नारायण मोकासदर।

सचिव एवं महाविद्यालय के प्रथम प्राचार्य बने वकील रमजान खान। कॉलेज का नाम रखा गया आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज 1963 में 17 विद्यार्थियों से कॉमर्स संकाय की शुरुआत हुई। मात्र 2 लेक्चरर नियुक्त हुए। 

35 हजार के गोल्ड ब्रांड चुकाए, तब मिला पं. रवि शंकर शुक्ला महाविद्यालय से संबद्धता: उस समय रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर नहीं बना था, आज के पूरे छत्तीसगढ़ के कॉलेज सागर विश्वविद्यालय के अधीन थे। 1964 में कला संकाय प्रारंभ हुआ। हरदोई उत्तरप्रदेश से आए डॉ. हरनाथ प्रसाद शुक्ला प्रथम नियमित प्राचार्य हुए। प्रथम वर्ष सागर श्वविद्यालय से ही संचालन किया। 

1965 से रायपुर विश्वविद्यालय में कार्य करना प्रारंभ किया। रायपुर विश्वविद्यालय से संबद्धता लेने के लिए 35 हजार रुपए एंडोमेंट फंड के रूप में जमा करने थे। इतनी बड़ी राशि समिति के पास नहीं थी। समिति के अध्यक्ष ललित नारायण मोकासदर थे, जिनकी रिश्तेदारी तरेेगा के तहुतदार दाऊ कल्याण सिंह से थी। अत: समिति ने तय किया कि दाऊ कल्याण की पत्नी से दान स्वरूप राशि ली जाए। वे सहर्ष तैयार हो गई, किंतु इस शर्त के साथ की महाविद्यालय का नाम दाऊ कल्याण सिंह के नाम पर हो। उन्होंने समिति को 35 हजार रुपये के गोल्ड ब्रांड दिए। यह राशि महाविद्यालय में जमा हुई, तब महाविद्यालय से कॉलेज को संबद्धता मिली। कॉलेज का नाम हुआ दीवान बहादुर दाऊ कल्याण सिंह कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय बलौदाबाजार।

दूधाधारी मठ में दान में दी थी 45 एकड़ जमीन: महाविद्यालय संचालन समिति के द्वितीय अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य पंडित चक्रपाणि शुक्ला हुए उनके प्रयास से दूधाधारी मठ रायपुर के महंत वैष्णव दान दास ने छेरकापूर के पास 45 एकड़ कृषि भूमि कॉलेज को दान में दी। यह भूमि आज भी कॉलेज के नाम पर है यहां कृषि होती है।

1981 में हुई थी कॉलेज के शासकीयकरण की घोषणा: एक वर्ष बाद कॉलेज जनपद सराय में लगने लगा जनपद सराय में बीऐ बीकॉम तथा विधि की कलाएं के संचालन 1965 से 1988 तक होता रहा। 17 जुलाई 1981 को कॉलेज के एक गरिमामयी कार्यक्रम में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने कॉलेज के शासकीय कारण की घोषणा की। 

इस शासकीयकरण में कसडोल विधायक डॉ. कन्हैया लाल शर्मा कैबिनेट मंत्री तथा शिक्षा मंत्री मोती लाल वोरा की अहम भूमिका थी। 1992 में कॉलेज को अपना भवन मिला बाद में ग्रंथालय कन्या छात्रावास सेमिनार हॉल आदि बनते गए आज यह जिले का सबसे बड़ा महाविद्यालय हो गया है। आज इस महाविद्यालय में बीए, बीकाम, बीएससी बीसीए, ला, एएम एमकाम, एमएससी, पीजीडीसीए आदि ढेर सारे विषय अध्ययन के लिए उपलब्ध है।

लगातार होता रहा विकास ग्रंथालय छात्रावास हाल बना: सन 1992 में वर्तमान भवन में आने के बाद मुख्य भवन पर एक मंजिल और बन गई। ग्रंथालय कन्या छात्रावास सेमिनार हॉल दो मंजिला एकेडमी भवन भी बन गया है।विद्यार्थियों के लिए अब प्राप्त क्लास रूम है प्रयोगशालाएं हैं। 61 साल पहले दान की पुस्तकों से प्रारंभ इस महाविद्यालय में आज 32 हजार पुस्तक हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां ई लाइब्रेरी स्थापित है।
 

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