गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 15 अप्रैल। धमतरी जिले के अंतिम छोर ग्राम मोहेरा के जंगल और पहाड़ के बीच एक खोल में विराजी निरई माता के प्रति क्षेत्र के श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा भक्ति है। इस श्रद्धा, भक्ति और आस्था के चलते चैत्र नवरात्रि के रविवार को कई हजारों की संख्या में देवी मां के भक्त दर्शन और पूजा के लिए पहुंचे।
रविवार को माता के दरबार में जातरा मेला लगा। जातरा मेला में माता के दर्शन के लिए दूर दराज से श्रद्धालु भक्तगण पहुंचे। सर्वप्रथम निरई के बैगा ने यह पूजा-अर्चना की, इसके बाद पश्चात ठाकुर दिया में पूजा -अर्चना की गई। फिर माता के स्थापना में पूजा के बाद ऊपर वाली पहाड़ी में चढ़ावा भेंट कर अर्जी विनती की गई। माता निरई में नारियल, अगरबत्ती चढ़ाया गया। माता के दरबार में जय जय निरई माता के जयकारा गुंजयमान होते रहा।
शनिवार-रविवार की रात्रि से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका था, जो सुर्योदय होते तक कई हजारों की संख्या में नजर आने लगा। अन्य वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष भक्तों की अत्यधिक भीड़ नजर आई। बताया जाता हैं कि निरई माता मनोवांछित फल देने वाली है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण सोंढूर और पैरी नदी के संगम के मुहाने पर पहाड़ी पर स्थित मां निरई में मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धानुसार कुछ भेंट देने की परंपरा है। मान्यता है कि भेंट चढ़ाने से देवी मां प्रसन्न होकर सभी मनोकामना पूरी करती हैं, वहीं कई लोग मन्नत पूरी होने के बाद भेंट चढ़ाते हैं। भक्त अपनी समस्या के निदान एवं मनोवांछित वरदान प्राप्त करने दूर दराज से आते हैं।
मनोवांछित फल देने वाली है माता
माता निरई में मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि के प्रथम रविवार चाहे तिथि कोई भी पड़े, वर्ष में एक बार भक्तों को यहां दर्शन मिलता है। माता के दर्शन के लिए धमतरी, मगरलोड, कुरूद, नगरी, गरियाबंद, राजिम, पांडुका, छुरा, फिंगेश्वर, महासमुंद, रायपुर, नवापारा, अभनपुर, बलौदा बाजार, दुर्ग भिलाई, बिलासपुर, कोरबा सहित अनेकों जगहों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। भक्तों का यह रैला पहट के 3 बजे से शुरू हो गया।
आधी रात से ही उमड़े भक्त
माता का यह दरबार साल में केवल एक बार खुलता है। लिहाजा भक्तों की रेलम-पेल भीड़ रहती है। लोग अपने साधनों से यहां तक पहुंचते हैं। माता के दर्शन के लिए मोहेरा गांव के चारों तरफ दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों का आना जाना आधी रात के बाद से ही शुरू हो गया था। मान्यता के मुताबिक माता के इस दरबार में महिलाओं का आना-जाना वर्जित है। यहां का प्रसाद घर नहीं ला सकते। नवरात्रि पर्व में नौ दिनों तक बगैर तेल यहां दीप प्रज्जवलित होता है। यह चमत्कार कैसे होता है आज भी एक पहेली है। इस देवीस्थल की खासियत है, अगर पूजा में जरा भी चूक हुई, विधि-विधान से पूजा नहीं हुई, तो पहाड़ी की मधुमक्खियां भीड़ पर टूट पड़ती है।