बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 15 अप्रैल। गर्मियों के दिनों में ठंडे पेयजल के रूप में काम में लिए जाने वाले मिट्टी के घड़ों की मांग अब बढऩे लगी है। सेहत के लिए उत्तम एवं बेहतर पेयजल हमेशा प्रदान करने वाले गरीबों के फ्रिज अब लवन नगर के बाजार में उपलब्ध हो गए हैं।
रविवार को लवन के साप्ताहिक बाजार में बाजार चौक में कुम्भकारों ने अपनी दुकानें लगा ली है। अंचल में अब तेज धूप झुलसाने लगी है। ऐसे में लोग शीतल पेयजल के लिए मटके खरीदने लगे हंै।
देशी फ्रिज की जगह बिजली से चलने वाले फ्रिज ने स्थान ले लिया है। इसलिए समय के साथ अब इनका महत्व भी धीरे-धीरे कम होने लगा है, लेकिन मध्यम और गरीब तबके के लोग आज भी गर्मियों में ठंडे पानी के लिए मटके का ही उपयोग कर रहे हंै।
इन घड़ों का जल आज भी लोग बड़े चाव से पीते हंै। बेशक बिजली से चलने वाले फ्रिज ने घड़ों का स्थान ले लिया है, लेकिन आज भी कुछ उत्सवों पर इन घड़ों का वजूद देखने को मिल रहा है।
घड़ों की मांग आज के वैज्ञानिक युग में भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने पहले के जमाने में होते थे। कड़ी मेहनत के बाद भी अच्छे दाम नहीं मिलने से अब कुम्हार भी मिट्टी के बर्तन बनाने में विशेष रूचि नहीं दिखा रहे हैं। नई पीढ़ी भी पुश्तैनी काम में रूचि नहीं ले रही हैं। आने वाले समय में घड़े बड़ी मुश्किल से ही मिल पाएंगे।
आज भी भीषण गर्मी में सडक़ किनारे मटकों में शीतल पेयजल मिलता है, जहां ठंडा पानी पीने के लिए राहगीर रूकते हंै। घड़ों का पानी पीकर वे शकुन महसूस करते हैं। बुजुर्ग तो आज भी घड़ों के पानी को ही पसंद करते हंै।
मिट्टी के घड़ों का व्यापार करने वाली हरदी गांव की महिला मेलबाई प्रजापति ने बताया कि पहले की अपेक्षा अब मिट्टी के घड़े की मांग कम हो गई है। पहले बाजार में 200 मटके बिक जाते थेेे। अब 50 मटके ही बमुश्किल से बिकते हंै। ग्राहको की डिमांड व साईज के हिसाब से कीमत तय किये गए हैं।
आगे बताया कि 130 रू 90, 70 व 50 रूपये तक के मटके बाजार में उपलब्ध हंै। घड़ा बनाने वाला मिट्टी बमुश्किल से ही मिल पाता है, जहाँ भी मिट्टी मिलता है, वहां से मिट्टी को लाना महंगा पड़ता है। बेशक घड़ों की कद्र कम हो गई हो, लेकिन आज भी घड़ों को भुलाया नहीं जा सकता है। घड़ों में पानी लम्बे समय तक ठंडा रहता है, जिसे पीने से शरीर को किसी प्रकार की कोई नुकसान नहीं होता है।