महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 20 अप्रैल। व्यापारियों के साथ- साथ किसानों की समस्याओं को काफी करीब से महसूस करता हूं। कृषि से संबंधित व्यवसाय होने के कारण किसानों के दुख दर्द से वाकिफ हूं। क्षेत्र की जनता को विकास के नाम पर जनप्रतिनिधियों ने छलने का काम किया है। उक्त बातें महासमुंद लोकसभा से भाग्य अजमा रहे निर्दलीय प्रत्याशी मुकेश अग्रवाल ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि पूरे लोकसभा में उनका दौरा आधे से अधिक हो चुका है। कुछ क्षेत्रों में मैं स्वयं नहीं पहुंच पाया हूं, लेकिन मेरे कार्यकर्ता और प्रतिनिधि पहुंचकर प्रचार कार्य का कमान संभाले हुए है लेकिन मैं चाहता हूं प्रत्येक जनता से रूबरू होकर अपनी बातों को उन तक रखूं। चुनावी दौरे के दौरान क्षेत्र में पानी लाईट की काफी समस्या है। पानी टंकी बन गया है, लेकिन पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के अंदरुनी इलाकों में आज भी सडक़ों के लिए ग्रामीण तरस रहे हैं। जनप्रतिनिधि विकास के नाम पर केवल जुमलेबाजी करते हैं। छग कृषि प्रधान क्षेत्र है लेकिन सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है। सरायपाली क्षेत्र के तत्कालीन जनप्रतिनिधि ने 1986 में जॉक परियोजना की घोषणा की थी यदि जोंक परियोजना का सौगात मिला होता तो सरायपाली, बसना व बागबाहरा क्षेत्र का भला होने से कोई नहीं रोक सकता था। किंतु दुर्भाग्य है कि लोक लुभावनी बातें केवल चुनाव के समय ही नेता करते हैं।
पिछले 40 वर्षों से सरायपाली रायगढ़ सडक़ केवल और केवल बन ही रहा है। इसी तरह सरायपाली 1924 से आबादी क्षेत्र घोषित है इसके बावजूद आज तक किसी को पट्टा नहीं मिला है। जिसके कारण कोई भी व्यक्ति व्यापारी बैंक से लोन नहीं ले सकता। मै मूलभूत सुविधाओं को लेकर चुनाव लड़ रहा हूं मुझे मौका मिला तो बुलंदियों के साथ आम जनता की आवाज को मुखर करूंगा।
अग्रवाल ने बताया कि पानी की समस्या गंभीर होते जा रही है भू- जल स्तर तेजी से घट रहा है इस दिशा में सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है। तालाबों में महिला पुरुष का घाट तो है लेकिन महिलाओं के घाट में कोई घेराबंदी नहीं है महिला सम्मान के लिए तलब घाट में घेराबंदी होना चाहिए। इसी तरह छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पूरा करने का मौका मिलने पर प्रयास करेंगे। पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि महासमुंद लोस के अंतर्गत राइस मिल के अलावा अन्य कोई बड़े उद्योग नहीं है। इस ओर इस लोकसभा से चुनाव जीतने वाले बड़े-बड़े नेताओं ने कुछ नहीं किया। राइस मिलों की परेशानियां दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। पिछले तीन वर्षों से राइस मिलरों को कस्टम मिलिंग का पैसा नहीं मिलने से आर्थिक स्थिति चरमरा गई है।