गरियाबंद
![धर्म व मोक्ष की आराधना जीवन में संभव-विराग मुनि धर्म व मोक्ष की आराधना जीवन में संभव-विराग मुनि](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/17160234195.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 18 मई। स्थानीय श्वेताम्बर जैन मंदिर प्रांगण में चल रहे सत्संग समारोह में प्रवचन देते हुए दीर्घ तपस्वी पू.विराग मुनि जी ने कहा कि वीतराग परमात्मा के अनंत उपकारों से जिनशासन धन्य है। समस्त जीव योनियों में मनुष्य जीवन को सर्वश्रेष्ठ बताया है यह सुविदित है कि धर्म-अर्थ- काम मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में श्रेष्ठ धर्म व मोक्ष की आराधना मानव जीवन में ही संभव है, मनुष्य जीवन का कोई विकल्प नहीं है इस अनमोल अवसर का सदुपयोग कर लेना ही बुद्धिमानी है। जीवन और जीने की कला का विश्लेषण करते हुए आगे मुनि श्री ने कहा कि जीवन जीने के दो पहलू है भोगियों की दृष्टि से एवं योगियों की दृष्टि से।
भोगी व्यक्ति भोग के भौतिक साधनों की ही चाह रखता है। खाने पीने ऐशो आराम से रहने में ही सुख समझता है। धनवान व्यक्ति धन में ही सुख समझता है, धनके लिए रात दिन एक कर देता है परंतु यदि दरवाजे पर इनकम टैक्स आफिसर खड़ा हो जाए तो सारा सुख काफूर हो जाता है।
धन से स्थायी सुख नहीं मिलता, हम कल्पनाओं की दुनिया में दौड़ते रहते हैं। दुख को दबाना सुख नहीं है। यह प्रेक्टीकल सुख है। सच्चा सुख तो वैराग्य में हैं। संसार की असारता को समझकर उससे निवृत्ति का उपाय ढूंढने में ही स्थायी सुख का आभास हो सकता है।
मुनि श्री ने आगे कहा कि जीवन का उद्देश्य संसार में भटकना नहीं, बनावटी रूप से जीना नहीं अपितु अपने आत्म स्वरुप को प्राप्त करना है इसके लिए हमें अनंत उपकारी जिनेश्वर देव की पहचान करनी होगी। आस्था, श्रद्धा, समर्पण, सेवाभक्ति का अनुपम मार्ग अपनाकर प्रयास करना होगा।
आइने के सामने हम स्वयं को निहारने का कार्य करते हैं जैसा हम है उपरी तौर पर आइना वहीं दिखाता है। यही क्रिया हम परमात्मा की मूर्ति के सामने करें स्वयं को निहारे। प्रभु आप कहाँ और मैं कहां आप तो संपूर्ण कर्म बंधन से मुक्त होकर सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त अवस्था प्राप्त कर लिए और मैं विषयभोग में पडक़र संसार में भटक गया। सत्संग सभा में ही श्री संघ के द्वारा वीर बहना स्वीटी बोहरा (मुंबई) एवं दीपिका पींचा (पाली राजस्थान) पू. विरागमुनि जी की सांसारिक बहनों का बहुमान किया गया।