राजनांदगांव

भाषा परिवार को बनाती भी है और तोड़ती भी है-सुधाकर
18-May-2024 3:56 PM
भाषा परिवार को बनाती भी है और तोड़ती भी है-सुधाकर

तेरापंथ भवन में चल रहा है जैन मुनियों का प्रवचन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

राजनांदगांव, 18 मई। जैन मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि संयुक्त परिवार भारत की संस्कृति रही है। आज परिवार टूट रहे हैं तो रिश्ते बिखर रहे हैं। परिवार संस्कारों की पाठशाला है। परिवार व्यक्ति के लिए शक्ति होती है । स्वार्थ वाला शकुनि और अहंकार वाला दुर्योधन यदि परिवार में हो तो महाभारत होना ही है। उन्होंने कहा कि हमें तो रामायण जैसा परिवार चाहिए, जहां राम जैसा आज्ञाकारी पुत्र, लक्ष्मण जैसा भाई जो अपने भाई का साथ देने के लिए जंगल चले जाता हो, भारत जैसा भाई जो राजमहल में रहते हुए भी वनवासी जैसा जीवन जीता हो, सीता जैसी पत्नी जो अपने पति की सेवा के लिए राजमहल छोड़ जंगल चली जाती हो। उन्होंने कहा कि रामायण में 90 प्रतिशत घटनाएं ऐसी है जो यह बताती है कि हमारा जीवन कैसा होना चाहिए।

तेरापंथ भवन में मुनिश्री सुधाकर ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि हम परिवार में रहते हैं तो परिवार के सदस्यों को प्रति हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए, इस पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अच्छे परिवार के लिए चार चीजों पर ध्यान देना जरूरी है और यह चार चीजें हैं भूषा, भाषा,  भोजन और भजन। उन्होंने कहा कि लज्जा कपड़ों से नहीं, बल्कि आपकी आंखों से झलकनी चाहिए। भूषा अर्थात ऐसा आवरण जो व्यक्ति एक बार धारण कर ले तो फिर उसे न छोड़े। उन्होंने कहा कि आपके परिवार में आज से पहले कोई परंपरा चली आ रही है जिसका आप तन-मन से पालन करते आ रहे हैं, बाद में उसका मूल्यांकन होना चाहिए । वक्त के सामने जो भी हमारी परंपरा है, परिवार के सामने उसका मूल्यांकन होना चाहिए। भूषा ऐसा धारण करना चाहिए जो प्रभावी हो।

मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि परिवार में आपकी भाषा कैसी होनी चाहिए, इस पर ध्यान देना जरूरी है। भाषा परिवार को जोड़ती भी है और तोड़ती भी है, इसलिए ऐसी भाषा का चयन करना चाहिए, जो शिकायत की नहीं धन्यवाद की होनी चाहिए, आदेश की नहीं अनुरोध की होनी चाहिए। गलतियों को क्षमा करना सीखें। माफ करना बहुत मुश्किल होता है। छोटी-छोटी बातों को हम दिल में रख लेते हैं। रिश्ता हमेशा कानून से नहीं वरन प्यार से चलता है। परिवार मैं अधिकांश झगड़ा भाषा के कारण ही होते हैं। उन्होंने कहा कि बेटियां मायके में आती है और मां-बाप पर प्यार ऐसे लुटाती है जैसे उनसे ज्यादा प्यार करने वाला कोई न हो, यदि इसी प्यार का आधा हिस्सा वह अपने ससुराल में लुटाए  तो वह ससुराल स्वर्ग हो जाए। हर मां चाहती कि मेरा बेटा श्रवण कुमार बने। यदि हर पत्नी चाहती कि उसका पति श्रवण कुमार बने तो घर स्वर्ग हो जाए। स्त्रियां केवल बेटे को ही श्रवण कुमार बनाना चाहती है पति को नहीं!

मुनिश्री सुधाकर ने कहा कि भोजन हमारा शुद्ध एवं सात्विक होना चाहिए। जैसा अन्न हम कहते हैं वैसा ही हमारा मन बनता है। भोजन बनाते समय मन पवित्र होना चाहिए जैसा अन्न आप खाओगे वैसा ही आपका विचार होगा। भोजन करते समय हमारा मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। उन्होंने भजन के संबंध में कहा कि आप अपने परिवार के समक्ष आध्यात्म का भजन करें अर्थात आध्यात्मिक बातें करें। उन्होंने कहा कि परिवार में भोजन और भजन का विशेष प्रभाव पड़ता है। घर में कोई भी घटना घटे उसका सकारात्मक विश्लेषण करना चाहिए। हम नकारात्मक विचारों से उसका विचार करते हैं, इसलिए अनहोनी होती है। उन्होंने कहा कि भोजन के समय यदि साथ में बैठकर प्रेम से बातें करें तो बड़ी से बड़ी समस्या का भी हल निकाला जा सकता है। परिवार में प्यार और बलिदान की भावना होनी चाहिए। परिवार में स्वार्थ की आहुति देनी चाहिए, तभी परिवार बनता है। हम स्वार्थ को छोड़ दे और प्रेम की भावना रखें। परिवार को धर्ममय बनाएं। इससे पूर्व नरेश मुनि ने कहा कि जीवन के चार दिन है। यह चार दिन प्रेम से बताएं। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति सही चिंतन करता है, वह अपने गंतव्य की ओर बढ़ता है।

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