रायपुर
![कलंकार नहीं अलंकार होता है कलाकार कलंकार नहीं अलंकार होता है कलाकार](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/17162985374.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 21 मई। महाराष्ट्र मंडल के नाट्यशाला में लोकनाट्य कलंकार की प्रस्तुति की गई। संस्कार भारती द्वारा आयोजित समारोह में दर्शकों ने कलाकारों की भरपूर सराहना की।नाटक में कलाकारों के साथ समाज में होने वाले दोहरे व्यवहार का चित्रण, कलाकार की व्यथा को उजागर किया गया।नाटक के सूत्रधार वरिष्ठ लोक रंगकर्मी विजय मिश्रा च्अमितज् ने कहा कलाकार कभी कलंकार नहीं होता।वह समाज का अलंकार होता है।कला की साधना इबादत से कम नहीं है।
कलंकार के लेखक नरेंद्र जलक्षत्रीय ने प्रमुख पात्र नचकार चंदन तथा संतोष यादव ने गुरु मां की भूमिका को अपने उम्दा अभिनय-नृत्य से जीवंत कर दिया। गांव के लंगड़े घाघ सरपंच के पात्र को विजय मिश्रा च्अमितज् ने अपने अद्भुत अभिनय से एवं चंदन की मां अहिल्या के चरित्र को मनीषा खोबरागड़े ने बेहद मार्मिक अभिनय से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। नूतन- रौशनी साहू ने झगड़ालू औरतों की प्रवृत्ति को बड़ी खूबसूरती से करके तालियां बटोरने में कामयाबी पाई।