सरगुजा
![परसा केते परियोजना को ग्रामसभा में मंजूरी, ग्रामीणों ने कहा हमारी सहमति नहीं परसा केते परियोजना को ग्रामसभा में मंजूरी, ग्रामीणों ने कहा हमारी सहमति नहीं](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1718810327-0015.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबिकापुर/उदयपुर,19 जून। बुधवार को सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील में स्थित घाटबर्रा में परसा केते खदान परियोजना की पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन के लिए आयोजित ग्रामसभा में ग्रामीणों के विरोध के बीच प्रस्ताव पास हुआ।
राजस्थान सरकार द्वारा संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की परसा ईस्ट केते बासेन खुली खदान परियोजना के लिए छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 6 (1) (क) के नियमानुसार जिला कलेक्टर विलास भोसकर द्वारा पत्र क्रमांक /110/ पंचायत /2024,अंबिकापुर, गत 7 जून 2024 को आदेश जारी किया गया था। इसके अनुसार ग्राम घाटबर्रा में परसा ईस्ट, केते, बासेन खुली खदान परियोजना के पुनर्वासन, पुनर्व्यवस्थापन योजना में परामर्श के लिए 19 जून को विशेष ग्राम सभा आयोजित की गई। ग्राम सभा की बैठक में सीईओ जनपद उदयपुर वेद प्रकाश गुप्ता, एसडीएम बीआर खांडे, तहसीलदार चंद्रशिला जायसवाल, नायब तहसीलदार आकाश गौतम, पंचायत इन्स्पेक्टर विपिन चौहान मौजूद थे। बैठक में मंच संचालन तथा गणपूर्ति की जिम्मेदारी गांव के सचिव गोपाल राम, सरपंच जयनंदन पोर्ते, ग्रामसभा अध्यक्ष नवल सिंह सहित पंचों को दी गयी थी।
घाटबर्रा गांव के ग्राम पंचायत भवन में आज सुबह 11 बजे से शुरू हुई ग्राम सभा में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे। सभा में मंचासीन बीआर खांडे ने पुनर्वास एवं पुनव्र्यस्थापन नीति के अन्तर्गत विस्थापितों / प्रभावितों को दी जानेवाली प्रस्तावित सुविधाओं का जिक्र किया। साथ ही ग्रामीणों से उनके सुझाव भी मांगे ताकि दी जानेवाली सुविधाओं में उचित संशोधन किया जा सके।
सुनवाई के दौरान महिला ग्रामीण पर्वतिया ने विस्थापित गांव में पक्की सडक़ तथा एक दुकान खोलने के लिए सहायता प्रदान करने की मांग की, जिसे श्री खांडे द्वारा विचार करने का भरोसा दिलाया गया। वहीं, ग्रामीण मुन्ना यादव और कृष्णचंद्र यादव ने अपने विस्थापन से संबंधित सभी सुविधाओं के बारे में विस्तृत चर्चा की और वे प्रशासन के जवाब से संतुष्ट नजर आए। हालांकि सभा में कुछ ग्रामीणों द्वारा विरोध के लिए नारेबाजी भी की गई लेकिन फिर प्रशासनिक अधिकारियों के समझाईश पर शांत हो गई।
घाटबर्रा में निजी भूमि का होगा अधिग्रहण
गौरतलब है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की परसा ईस्ट केते बासेन खुली कोयला खदान परियोजना के द्वितीय फेज के खनन हेतु घाटबर्रा गांव की 350 हेक्टेयर निजी भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। प्रबंधन ने बताया कि यहां की करीब 1200 से अधिक स्थानीय लोगों को भू-अर्जन के लिए समुचित मुआवजा की राशि दिए जाने के बाद उनके विस्थापन के लिए विशेष तौर पर पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन नीति तैयार की जानी है, ताकि उन्हें और उनके परिवार को किसी तरह की परेशानी न हो। इसके तहत विस्थापित परिवारों के लिए मकान/प्लॉट की व्यवस्था, विस्थापन हेतु परिवहन खर्च, पशुबाड़ा निर्माण हेतु राशि, पुनव्र्यवस्थापन भत्ता, अनुदान राशि, परिवार के एक सदस्य को नौकरी, स्वराजगोर के लिए राशि, वृद्धावस्था पेंशन, चिकित्सा सुविधा आदि का प्रावधान है। खदान के शुरू होने पर इसी गांव के 500 से 700 लोगों को नौकरी तो मिलेगी ही इसके अलावा बच्चों के लिए बेहतर स्कूल, छात्रवृत्ति इत्यादि भी सुनिश्चित किया जाता है। साथ ही पुनर्वास कॉलोनी में पक्की सडक़, नालियां, रौशनी की व्यवस्था, शुद्ध पेय जल, उचित मूल्य दूकान, आंगनबाड़ी भवन, हाट बाजार, विद्यालय भवन, सार्वजनिक खेल का मैदान, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक भवन, श्मशान या कब्रिस्तान का निर्माण, मंदिर और मस्जिद की स्थापना और शौचालयों की व्यवस्था जैसी बुनियादी जरूरतों का खास ख्याल रखा जाता है।
कोयला मंत्रालय द्वारा लगातार चार सालों से 5 स्टार रेटिंग प्राप्त राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खनन परियोजना में वर्तमान में 3500 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष जबकि 7000 से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त है। वहीं केंद्र व छत्तीसगढ़ सरकार को इस खदान से सालाना रुपए 2000 करोड़ से ज्यादा विविध करों के रूप मे मिल रहे है।
ग्रामीणों ने किया विरोध
जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों ने कहा -ग्राम घाटबर्रा की राजस्व जमीन का अधिग्रहण ‘भूमि अधिग्रहण कानून 2013’ द्वारा किया जा रहा है। हमारी ग्रामसभा के द्वारा भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना के पूर्व या बाद में जमीन अधिग्रहण हेतु कोई भी सहमति नहीं दी है, जबकि पेसा अधिनियम 1996 एवं भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 41 (3) के द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभा की सहमती आवश्यक है। हमारे गाँव में अभी तक वन भूमि पर काबिज व्यक्तिगत वन अधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया भी अपूर्ण है। जब भूमि अधिग्रहण की ही सहमति नहीं है, ऐसे में पुनर्वास के लिए ग्रामसभा का आयोजन गैरकानूनी है।
कुछ ग्रामीण ग्रामसभा को निरस्त कर भूमि अधिग्रहण की सभी कार्रवाई को भी तत्काल निरस्त करने मांग कर रहे थे। जनसुनवाई के दौरान लगभग 500 ग्रामीणों ने समर्थन दिया तो वहीं लगभग 200 ग्रामीणों ने एसडीएम के सामने विरोध जताया और कहा कि जब ग्राम सभा ग्रामीण के लिए आयोजित की गई है तो यहां बड़े-बड़े अधिकारी एवं पुलिस फोर्स की क्या जरूरत है, देर शाम तक ग्रामीण एसडीएम के सामने अपना विरोध जता रहे थे।