राजनांदगांव

गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस में मुद्दों को लेकर भी खींचतान
12-Aug-2024 3:53 PM
गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस में  मुद्दों को लेकर भी खींचतान

शहर विकास पर बोलने से भी कर रहे परहेज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 
राजनांदगांव, 12 अगस्त।
सूबे की सत्ता गंवाने के बाद से करीब 8 महीने के भीतर कांग्रेस का सांगठनिक स्वरूप में बड़ा बिखराव दिख रहा है। गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस में मुद्दों को लेकर भी खींचतान चल रही है। शहर विकास को लेकर दिग्गजों के खुलेतौर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने में जिस तरह से परहेज रखने का चलन बढ़ा है, उससे कांग्रेस की सियासी गतिविधि रफ्तार  नहीं पकड़ पाई है। 

शहर के कई मुद्दों पर आक्रमक रूप से आवाज उठाने में कांग्रेस नेताओं की दिलचस्पी घट गई है। मसलन हल्दी-सुरगी-कुम्हालोरी जर्जर मार्ग को लेकर कांग्रेस में अलग-अलग स्तर पर बयानबाजी हो रही है। ऐसे बयान से कांग्रेस में व्यक्तिवाद की सियासत को बल मिला है।

राजनांदगांव शहर विकास की अवधारणा को सार्थक करने में फिलहाल पीछे चल रहा है। सडक़ों के साथ-साथ मेडिकल सुविधाओं को लेकर भी शहर के बाशिंदे संकट से जूझ रहे हैं। इसके अलावा भारतीय रेल की लापरवाही के कारण भी एक बड़ा तबका रेल सुविधाओं से महरूम हो गया है।

पिछले दिनों एक धड़े के नेताओं ने रेल्वे स्टेशन में ज्ञापन सौंपकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। जबकि इस मुद्दे को कांग्रेस को एकजुट होकर उठाना था। 
कांगे्रस के कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि शहर के पटरीपार का इलाका लगातार बुनियादी सुविधाओं से दूर है। गौरीनगर और रेल्वे स्टेशन में बन रहे अंडरब्रिज निर्माण कार्य में भी काफी देरी हो चुकी है। इन विषयों को लेकर पार्टी ने अब तक आवाज नहीं उठाई। नगर निगम की राजनीति में भी कांग्रेस में काफी खींचतान चल रही है। सरकार बदलते ही निगम के अफसरों ने सत्तारूढ़ दल के प्रभाव में काम करना शुरू कर दिया है। 

शहर के विकास कार्यों पर बन रहे  प्लान पर कांग्रेस नेताओं की दिलचस्पी घट गई है। आने वाले दिनों में कांग्रेस के भीतर मुद्दों को लेकर और भी बिखराव के आसार दिख रहे हैं। राजनांदगांव शहर में अलग-अलग गुटों ने कांग्रेस की सियासत को मुद्दों से दूर कर दिया है। शहर में कांग्रेस की राजनीति   पूरी तरह से बिखरी नजर आ रही है।

मुद्दों पर बोलने वालों को बाहर का रास्ता
जनहित के मुद्दों को लेकर मुखर रहने पर कांग्रेस ने बतौर सजा पार्टी से बेदखल करने का भी एक आश्चर्यजनक फैसला किया। जिसमें पूर्व पार्षद हेमंत ओस्तवाल पार्टी से अलग-थलग कर दिए गए। वह नगर निगम की राजनीति में काफी चर्चित पार्षद रहे।  

शहर में डामरीकरण और रोड निर्माण के दौरान होने वाले घोटालों के खिलाफ उन्होंने जबर्दस्त तरीके से आवाज उठाई। बूढ़ासागर सौंदर्यीकरण में हुए 16 करोड़ के भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर उन्होंने कांग्रेस शासित निगम के नेताओं के खिलाफ बोलने से गुरेज नहीं किया। वह लगातार जनहित के विषयों को लेकर बोलने से चूकते नहीं है।

हालांकि वह कांग्रेस की सियासी गुटबाजी के शिकार हो गए। उन्हें पार्टी ने निष्कासित कर दिया। हेमंत जैसे आवाज उठाने वाले नेताओं पर कांग्रेस ने ही नकेल कसकर जनसमुदाय को सोंचने पर मजबूर कर दिया।

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