रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 9 सितंबर। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रायपुर बैठक में बने ब्लू प्रिंट को बस्तर के नक्सल मोर्चे पर उतारने की कवायद शुरू हो गई है। एक बार फिर किसी बड़े ऑपरेशन की सुगबुगाहट है।
झारखण्ड और बिहार सीमा पर नक्सलियों के खात्मे में सफल रहे चार बटालियनों को बस्तर रवाना किया गया है। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 4,000 जवान आ रहे हैं। रायपुर की बैठक में शाह ने नक्सलियों के सरेंडर करने अन्यथा पाताल से निकालकर मारने का अल्टीमेटम दिया था। ताकि मार्च 2026 तक माओवादी समस्या को समाप्त किया जा सके।
दिल्ली के आधिकारिक सूत्रों ने एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल से कहा कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने झारखंड से तीन और बिहार से एक बटालियन को वापस बुलाया है। इनकी तैनाती दक्षिण स्थित बस्तर क्षेत्र में की जाएगी। यह इलाका नक्सलियों के त्रिकोण का इलाका बताया जा रहा है। ऐसा महसूस किया गया कि इन दोनों राज्यों (झारखंड और बिहार) में नक्सली हिंसा की स्थिति में सुधार हुआ है और घटनाएं नगण्य हैं. इसलिए, इन बटालियनों का छत्तीसगढ़ में बेहतर उपयोग किया जा सकता है, जहां अब नक्सल विरोधी अभियान केंद्रित है।
सूत्रों ने बताया कि सीआरपीएफ की 159, 218, 214 और 22 बटालियनों को तैनात किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इन इकाइयों को दंतेवाड़ा और सुकमा के दूरदराज के जिलों और ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ राज्य की त्रिकोणीय सीमा के दूरदराज के स्थानों पर तैनात किया जा रहा है। दिल्ली में बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये बटालियनें सीआरपीएफ की कोबरा इकाइयों के साथ मिलकर जिलों के दूरदराज के इलाकों में और अधिक अग्रिम परिचालन बेस (एफओबी) स्थापित करेंगी, ताकि क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद विकास कार्य शुरू किए जा सकें।
पिछले तीन वर्षों में बल ने छत्तीसगढ़ में लगभग 40 एफओबी बनाए हैं।उन्होंने कहा कि ऐसे बेस स्थापित करने में कई तरह की चुनौतियां आती हैं, जैसे कि माओवादियों द्वारा जवानों पर घात लगाकर और विस्फोटक उपकरणों से हमला करना। उन्होंने कहा कि इन नई इकाइयों को बख्तरबंद वाहनों, यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन), श्वान दस्ते, संचार सेट और राशन आपूर्ति के माध्यम से रसद सहायता प्रदान की जा रही है. इसका उद्देश्य बस्तर के सभी ‘नो-गोज् और अज्ञात क्षेत्रों में पैर जमाना है, ताकि सरकार द्वारा तय की गई मार्च 2026 की समय-सीमा के अनुसार वामपंथी उग्रवाद के खतरे को समाप्त किया जा सके।छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद से लगातार एक के बाद एक बड़े ऑपरेशन में बड़े-बड़े नक्सली नेताओं को मौत के घाट उतारा जा चुका है।