दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 13 सितंबर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय आनंद सरोवर बघेरा में राधाष्टमी समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विजय पाण्डे (एस.पी.एस.टी.एफ. दुर्ग) भावना पाण्डे (एस. पी. इन्फारमेशन ब्यूरो),मारुति जगने (डी.एस.पी.एस.टी.एफ.दुर्ग)और अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। ब्रह्माकुमारी रीटा बहन (संचालिका ब्रह्माकुमारीज दुर्ग) ने कहा कि राधा अष्टमी का त्योहार हमें प्रेम, समर्पण और भक्ति की महत्ता के बारे में सिखाता है। यह हमें राधा और कृष्ण के प्रेम की तरह अपने जीवन में प्रेम और समर्पण को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।
सनातन धर्म में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य दिवस माना गया है। श्री राधाजी वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। वेद तथा पुराणादि में जिनका कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है, वे श्री वृन्दावनेश्वरी राधा सदा श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली साध्वी कृष्णप्रिया थीं। परमात्म पिता निराकार शिव ने आकर सत्य ज्ञान दिया कि जो परमात्मा ने ब्रह्मा के श्रीमुख कमल द्वारा दिये गये दिव्य ज्ञान को अपने जीवन में धारण कर परमात्म सम दिव्य गुणों से स्वयं को सुस्सजित किया वही आत्मा राधा और कृष्ण स्वरूप में प्रख्यात हुई तथा वही आत्मायें भविष्य राज्य तख्तनशीन हो आने वाले नवयुग कहें वा सतयुग कहें वहां लक्ष्मी व नारायण रूप में सुशोभित हुई । ज्ञान देव पाण्डे (पूर्व आर.टी.ओ. अधिकारी) ने बताया कि राधा ये दो अक्षर का जो नाम है रा और धा वेदों में उत्सर्जने च, रा शब्दों धारणें पोषणें च,धा राधा रा अर्थात् जो समस्त जीव व जीव समूहों को धारण और पोषण करती है सृष्टि का पालन पोषण करती है और सृष्टि का लय भी उन्हीं में जाकर होता है ऐसे श्री राधा जी है श्री राधा को समझने के लिए राधा तत्व को जानने के लिए श्री कृष्ण को समझे बिना राधा तत्व को जान नहीं सकते हैं। श्री कृष्ण सच्चिदानंद है अर्थात् आनंद स्वरूप है। इस समारोह में राधारानी भजन समिति के द्वारा कर्णप्रिय सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी गयी।