गरियाबंद
लोककला के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 9 मार्च। महिला आज छोटे-बड़े सभी काम पूरी तन्मयता से कर नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। चाहे वह ओंलम्पिक खेलों में हो या फिर कला के क्षेत्र में इनके कार्य को नकारा नहीं जा सकता हैं। उक्त बातें राजिम माघी पुन्नी मेला में महिला दिवस के पूर्व संध्या मुक्ताकाश महोत्सव मंच में प्रस्तुति देने पहुॅची अनुराग धारा के प्रसिद्ध लोक गायिका कविता वासनिक ने कहीं।
उन्होंने अस्सी-नब्बे के दशक में गाये हुए पुराने गीतों को गाकर हजारों दर्शकों का दिल जीत लिया। बताया कि राजिम महोत्सव मंच कलाकारों को उर्जा देती हैं। यह राजीवलोचन भगवान की भूमि हैं दर्शन करने का अवसर मिलना सौभाग्य की बात हैं। राज्य सरकार लोक संस्कृति को उपर उठाने के लिए लोक कलाकारों को मंच प्रदान कर रही हैं। निश्चित रूप से तारीफे काबिल हैं। श्रीमती वासनिक ने बताया कि मैं बीएससी में बायोलॉजी हॅंू तथा खैरागढ़ विश्वविद्यालय से लोक संगीत में डिप्लोमा की है। वर्तमान में एसबीआई में डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्यरत हॅू। संगीत का माहौल मुझे अपने घर से मिला। उस समय एक लडक़ी का घर से निकलना मुश्किल था यदि मंच में गीत गाने चले जाए तो लोग सुबह ताने देते थे लेकिन माता-पिता दोनों गाने के शौकिन थे, इसलिए उन्होंने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया।
नतीजा मेरी गायिकी जोर पकडऩे लगा। 1977 में भिलाई लोककला महोत्सव में धनी बिना जग लागे सुना... गीत से मेरी पहचान बनी। 1982 में गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया द्वारा रचित गीत पता ले जा रे गाड़ी वाला... को आवाज देने के लिए मेरे नाम का चयन हुआ। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तीन मिनट में इसे पूर्ण किया गया। उस समय लग नहीं रहा था कि यह गाना हिट हो जाएगी लेकिन देखते ही देखते हर गाली मोहल्ले, चौक-चौराहे पर पॉपुलर हो गया। सन् 2017 में दाउ मंदराजी सम्मान से मुझे नवाजा गया। वह मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पल रहा हैं। स्वर कोकिला लता मंगेश्कर सत्तर के दशक में छत्तीसगढ़ आए थे उनके खाने की टेबल में नाश्ते में रसगुल्ला रखा हुआ था। उन्होंने रसगुल्ले को चखे और बाकी रख कर चले गए। उसी समय में मेरे गुरू ने कहा कि कविता बचा हुआ रसगुल्ला तुम ले लो। मैंने इसे प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया उस रसगुल्ले की मिठास मेरे गानों में मिश्री की डाली की तरह लगातार फैल रही हैं। मेरे पति विवेक वासनिक, पुत्री हिमानी वासनिक तथा पुत्र हिमांशु वासनिक गायन के लिए मेरे उत्साह को हमेशा बढ़ाते रहते हैं। मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि लोककला के क्षेत्र में हम लोगों ने बहुत मेहनत किया है। रात-रात भर संगीतों के धुनों में कला को नए आकार देने के लिए लगे रहते थे जबकि उस समय कोई साधन नहीं था। आज नवोदित कलाकारों के लिए हर प्रकार की सुविधाएॅं उपलब्ध हैं उसके बाद भी फूहड़ता सर चढक़र बोल रही हैं यह बहुत चिन्तनीय हैं। इससे संस्कृति का हा्रस होता हैं। हमारा छत्तीसगढ़ लोककला, लोक संस्कृति, लोक खेल आदि के लिए जाना जाता हैं। इसे बरकरार रखें और अच्छी गीत उभरकर सामने आए ऐसा प्रयास होना चाहिए।