बस्तर
जगदलपुर, 21 अप्रैल। बस्तर अधिकार मुक्तिमोर्चा के मुख्य संयोजक नवनीत चाँद ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि चपका ग्राम में जबरन उद्योग स्थापना पर हुई दुर्घटना पर ग्रामवासियों की आवाज को दबाने के उद्देश्य से एक तरफा स्थानीय जनप्रतिनिधियों व राज्य सरकार के दवाब में पुलिस द्वारा किये गए एफ़आईआर को आड़े हाथ लेते हुए मुक्तिमोर्चा द्वारा राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
एफ़आईआर को वापस लेने व संपूर्ण घटनाक्रम में आयोजक मंडल की गंभीर चूक पर जांच व कार्रवाई की मांग को लेकर बयान जारी करते हुए कहा कि बस्तर में राज्य सरकार उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से संवैधानिक स्वरूप में दिए गए 5वीं अनुसूची, पेसा कानून के अधिकारों को ताक में रख, प्रभावित ग्राम पंचायतों के तर्क संगत नीतिगत विरोध व फर्जी ग्रामसभाओं के आरोपों पर जांच कर न्यायसंगत कार्रवाई के बजाए, कोरोना संक्रमण की तीव्रता से बढ़ते आकड़ों के मद्देनजर बस्तर जिले में सरकार के आदेश पर जिला प्रशासन द्वारा 144 व अन्य धाराओं के प्रभावशीलता पर किसी भी आयोजन पर प्रतिबंध के खुद के आदेश की अवेहलना कर चपका ग्राम पंचायत में गोपाल इंडस्ट्री स्पंज आयरन प्लांट स्थापना हेतु पर्यावरण विभाग की जनसुनवाई का आयोजन कर कोविड गाइडलाइंस को दरकिनार रख हजारों की भीड़ जुटवा, संक्रमण के फैलाव व प्रभावितों के विरोध की नब्ज जानते हुए भी तनाव के माहौल को खुद आमंत्रित किया गया।
यह राज्य सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उद्योगपतियो के प्रति गहरे स्वार्थ स्वरूप समझौते को दर्शाता है व बस्तर के लोगो के प्रति जारी किए खुद के आदेश का दोहरा चरित्र को उजागर करता है। यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है, क्योंकि जहाँ एक तरफ कोरोना गाइडलाइंस के तहत बस्तर के लोगों को अपने धार्मिक कार्यक्रम, अन्य आयोजनों पर प्रतिबन्ध व शर्तों का पालन हेतु आदेशित किया गया है। वहीं एक तरफ सरकारी कार्यक्रम में इन प्रतिबंधों से अलग क्यों रखा गया था।
मुक्तिमोर्चा व प्रभावितों की समिति द्वारा जनसुनवाई आयोजन को कोविडकाल व धारा 144 के तहत प्रतिबंधित लगवाने व आगे बढ़ाने का निवेदन दूरभाष पर बस्तर कमिश्नर से निर्धारित तारीख से पहले की गई थी। इसके बावजूद यह जनसुनवाई क्यों व किसके दबाव में रखी गई ?, इस जनसुनवाई में कानून व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से बनाये रखने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार व उसके अमले की थी। तो भीड़ में शरारत करने वाले तत्वों की पहचान पूर्व से क्यों नहीं की गई? वहीं कोविड संक्रमण के तीव्र फैलाव के मद्देनजर यह जनसुनवाई स्थगित क्यों नहीं कि गई? वहीं इस जनसुनवाई की अनुमति व शर्ते पूर्व में सार्वजनिक क्यों नहीं कि गई ? यह ज्वलंत सवाल बस्तर की जनता के जहन में है। जिसका जवाब राज्य सरकार, स्थानीय जनप्रतिनिधियों व जिला प्रशासन को देना ही होगा? इन्हीं तार्किक तथ्यों को बस्तर अधिकार मुक्तिमोर्चा राज्यपाल के समक्ष रख प्रभावित ग्राम पंचायत के निवासियों पर जबरन दबाव में किये गए एकतरफा एफ़आईआर को राज्य सरकार से वापिस करवाने व इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में आयोजक मंडल के गंभीर चूक की परिस्थितियों की उच्च स्तरीय जांच करवा संलिप्त दोषियों पर कार्रवाई की मांग रखेगी। वहीं समय पर मांग न माने जाने पर उच्चन्यायालय में न्याय हेतु याचिका दायर करेगी।