राजपथ - जनपथ
चांसलर अगर सीएम बन जाएं तो?
छत्तीसगढ़ में भी दूसरे प्रदेशों की तरह चांसलर या कुलाधिपति का पद राज्यपाल के पास है। इसके चलते कई बार विश्वविद्यालय से संबंधित मुद्दों पर राज्यपाल के साथ सरकार की ठन जाती है। प्राय: तब, जब सरकार के फैसलों की फाइल राजभवन में रुक जाती है। मंत्री रविंद्र चौबे और मो. अकबर कल ही विश्वविद्यालय से संबंधित फाइलों को आगे बढ़ाने का अनुरोध लेकर राज्यपाल से मिले। इनमें निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति से जुड़ी एक फाइल है। रायपुर और नये बने पाटन के कृषि विश्वविद्यालयों के बीच संपत्ति के बंटवारे का मामला भी है। राज्यपाल ने विधानसभा से पास दो विश्वविद्यालयों के नाम बदलने की काफी दिन पुरानी फाइलों को अब तक मंजूरी नहीं दी है। हाल में कुलपतियों की नियुक्ति में स्थानीय प्रतिभाओं को मौका नहीं देने की बात को लेकर सरकार और राज्यपाल सचिवालय के बीच विवाद की स्थिति बन गई थी। राजभवन की ओर से आंकड़े देकर बताये गए कि अधिकांश विश्वविद्यालयों में स्थानीय की ही नियुक्ति की गई है।
फिर भी सरकार के हाथ विश्वविद्यालयों के मामले में बंधे होते हैं और राज्यपाल की शक्तियां अधिक होती हैं। केंद्र और राज्य में एक दल की सरकार हो, तब तो सब ठीक चलता है, पर यदि ऐसा न हो तो टकराव की स्थिति बनती रहती है।
इधर, पश्चिम बंगाल में ममता सरकार की केबिनेट ने फैसला लिया है कि अब राज्य के विश्वविद्यालय के चांसलर पद पर मुख्यमंत्री होंगीं। इसके लिए केंद्र का उदाहरण दिया गया है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के चांसलर प्रधानमंत्री होते हैं। ममता सरकार के शिक्षा मंत्री का आरोप है कि राज्यपाल जगदीश धनकड़ के पास विश्वविद्यालयों से संबंधित फाइलें रुक जाती हैं, वे निर्णय नहीं लेते। तमिलनाडु में भी इसी तरह की समस्या थी, वहां विधानसभा में बिल पेश करके कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से छीन लिया गया। पश्चिम बंगाल में केबिनेट ने जो प्रस्ताव पास किया है, वह विधानसभा में आएगा। विधानसभा के बाद हस्ताक्षर के लिए प्रस्ताव उन्हीं राज्यपाल के पास जाएगा, जिनका अधिकार कम किया जाना है। ये फाइल भी दूसरी फाइलों की तरह रोक दी गई तो? शायद इसीलिए छत्तीसगढ़ सरकार का विधेयक राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है।
असमंजस में राहुल गांधी...
हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में राजस्थान बिजली बोर्ड को खनन की मंजूरी देने का सवाल कैंब्रिज यूनियवर्सिटी के छात्र उठाएंगे, इसका अंदाजा संभवत: राहुल गांधी को नहीं रहा होगा। एक के बाद एक किए गए प्रतिप्रश्न के चलते उन्होंने दो तीन खास बातें कही- मैं खुद खनन के खिलाफ हूं, आंदोलन जायज है। मैं और मेरी पार्टी इस बारे में विचार कर रहे हैं, जिसका कुछ हफ्तों में नतीजा नजर आएगा।
राजस्थान बिजली बोर्ड और एमडीओ हासिल करने वाली कंपनी अदानी ग्रुप ने भले ही कहा है कि कुछ मु_ी भर लोग खनन का विरोध कर रहे हैं, लेकिन राहुल की प्रतिक्रिया और बिजली बोर्ड के अधिकारियों का आंदोलन जल्दी खत्म कराने के लिए दबाव बनाने से कुछ अलग ही ध्वनि निकलती है।
आंदोलनकारियों को लगता है कि खनन का काम तभी तक बंद है, जब तक वे आंदोलन पर हैं। जिस दिन ढीले पड़े, पेड़ों की कटाई और और कोयले की खुदाई शुरू हो जाएगी। लोगों के मन में सवाल है कि कुछ हफ्तों की मियाद राहुल गांधी ने इस सवाल को टालने के लिए मांगी, या सचमुच फैसला बदलने के लिए? अब जबकि छत्तीसगढ़ सरकार वन अनुमति दे चुकी है, क्या राहुल गांधी या उनकी पार्टी की ओर से छत्तीसगढ़ को फैसला बदलने के लिए कहा जाएगा?
रावण के नाम टी स्टाल
अपने देश में राम से जुड़ी आस्था है तो रावण का लोहा मानने वाले भी कम नहीं। अब महासमुंद जाने के रास्ते में लगी एक टी-स्टाल को ही देखिये। दुकान ही उनके नाम पर रख लिया गया है..।