राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नजर कोयले पर या कोरबा पर?
31-May-2022 7:12 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ :  नजर कोयले पर या कोरबा पर?

 नजर कोयले पर या कोरबा पर?
 आईएएस की नौकरी छोडक़र राजनीति में आए ओपी चौधरी सोशल मीडिया में काफी सक्रिय हैं। उन्होंने पिछले दिनों ट्वीटर पर कथित अवैध कोयला खनन का वीडियो क्या शेयर किया, पुलिस महकमा टूट पड़ा। और वीडियो शेयर होने के एक घंटे के भीतर जांच बिठा दी। जिस वीडियो को कोरबा के कोयला खदान का बताकर सोशल मीडिया में फैलाया गया था। वह धनबाद के किसी खदान का होना बताया जा रहा है। क्योंकि कोरबा में तो ओपन कास्ट माइनिंग होती ही नहीं है।
सर्वविदित है कि एसईसीएल की खदानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ की होती है, लेकिन उनके अधिकार क्षेत्र में राज्य पुलिस द्वारा जांच कमेटी बनाना भी चौंकाने वाला कदम है। पुलिस इतनी हड़बड़ी में थी कि वीडियो की सत्यता की भी पड़ताल नहीं करवाई। ऐसे में कोयला-खनन आदि में पुलिस को लेकर पुलिस की अतिरिक्त सतर्कता पर काफी बातें हो रही है। चाहे कुछ भी हो, ओपी चौधरी ने एक वीडियो के जरिए पूरा माहौल बना दिया। बताते हैं कि खरसिया में बुरी हार के बाद चौधरी कोरबा इलाके में ज्यादा सक्रिय हैं, और उनकी नजर कोरबा लोकसभा सीट पर भी है। ऐसे में एक वीडियो शेयर कर ओपी चौधरी लोगों की जुबान में आ ही गए।

 एक कॉलेज से दूसरी पीढ़ी
रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी) एक बार फिर सुर्खियों में हैं। यहां के 5  पूर्व विद्यार्थियों ने यूपीएससी में अपना परचम लहराया है। एनआईटी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अक्षय पिल्ले ने यूपीएससी परीक्षा में 51वीं रैंक हासिल की। खास बात यह है कि उनके पिता डीजी (जेल) संजय पिल्ले ने भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग से डिग्री हासिल की थी, और आईपीएस बने। अक्षय का रैंक अच्छा होने के कारण आईएएस में आने का मौका मिल सकता है।

अक्षय की तरह ही यूपीएससी में 102 रैंक वाले धमतरी के प्रखर चंद्राकर ने भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री रायपुर एनआईटी से हासिल की। उनके अलावा यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल करने वाले मंयक दुबे, अभिषेक अग्रवाल, और पूजा साहू ने भी एनआईटी रायपुर से ही डिग्री हासिल की है। वैसे भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज का स्थापना के बाद से यहां के विद्यार्थियों ने देश-विदेश में नाम कमाया और देश-प्रदेश में ऊंचे-ऊंचे पदों पर हैं।

प्रदर्शन टाल देने की समझदारी
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आमंत्रित नहीं करने का एनएसयूआई ने भारी विरोध किया। समारोह संपन्न होते तक विवाद जारी था। मंच पर उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल की कुर्सी लगी थी, पर वह खाली थी। बाद में उन्होंने कार्यक्रम में नहीं पहुंचने की वजह तो जरूरी व्यस्तता बताई पर लोग समझ रहे थे कि सीएम को नहीं बुलाने के विरोध में उन्होंने नहीं जाने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय प्रशासन की सफाई है कि सीएम को हम बुलाना चाहते थे, समय नहीं मिला।  हो सकता है कि बात इतनी सी ही हो, पर एनएसयूआई ने तय किया था कि दीक्षांत समारोह के दौरान प्रदर्शन किया जाएगा। राज्यपाल की मौजूदगी में हंगामा होने की आशंका को देखते हुए कार्यक्रम स्थल पर पुलिस बल भी ज्यादा तैनात कर दी गई थी। पर ऐन वक्त पर छात्र नेताओं ने यह फैसला रद्द कर दिया और समारोह शांतिपूर्वक निपट गया।
एनएसयूआई ने कदम पीछे क्यों हटाए? दरअसल, उन्हें लगा प्रदर्शन करने से कुलाधिपति और कुलपति को उनके विरोध का तो पता चल जाएगा, पर इस बहाने कार्यक्रम को स्थगित किया गया तो क्या होगा? प्रतिभावान छात्र जो लंबे समय से मंच पर खड़े होकर विशिष्ट हाथों से मेडल और डिग्री पाने की प्रतीक्षा करते हैं, उनको मायूसी होगी। छात्रों का संगठन है और इन छात्रों को उनके ही आंदोलन से नुकसान हो जाएगा। फिर तो निर्विघ्न मेडल, डिग्री भी बंट गई और राज्यपाल के कार्यक्रम की गरिमा का ख्याल भी रख लिया गया।   

पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!
कई बरस पहले जब हिन्दुस्तान में कम्प्यूटरों का चलन बढ़ा, तो ऐसा लगा कि कागजों का इस्तेमाल घटेगा। सरकारी कामकाज के कम्प्यूटरीकरण के साथ उसकी लागत को सही ठहराने के लिए यह बात गिनाई भी गई कि इससे कागज बचेगा, और पेड़ों का कटना भी बचेगा। लेकिन कागज के दाम आज आसमान पर पहुंचे हुए हैं, पेड़ों का कटना थमा नहीं है, तो फिर कम्प्यूटरों का क्या असर हुआ? दरअसल पहले टाईपराइटर रहते थे जिन पर कागज और कार्बन पेपर लगाकर दो या तीन कॉपियां एक साथ टाईप हो पाती थीं। टाइपिंग का यह काम मुश्किल भी रहता था, और एक बार टाईप हो चुके कागज पर सफेदा लगाकर कोई मामूली सुधार तो हो सकता था, अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं रहती थी।
अब कम्प्यूटरों के आने से उस पर टाईप करना आसान हो गया, साथ के प्रिंटर से प्रिंट निकालना आसान हो गया, और टाईप किए हुए में फेरबदल करके दुबारा प्रिंट करना भी आसान हो गया है। नतीजा यह है कि पहले टाईपराइटर से जहां सोच-समझकर एक-दो पन्ने ही निकलते थे, अब कम्प्यूटर-प्रिंटर से मिनट भर में दर्जनों पेज प्रिंट होकर निकल जाते हैं। अधिकतर हिन्दुस्तान लोग अपने मातहत लोगों से कम्प्यूटरों पर काम करवाते हैं, और फिर गलतियां जांचने के लिए उसका प्रिंट निकलवाकर उस पर सुधार करते हैं, और फिर दुबारा प्रिंट निकलता है। नतीजा यह है कि कागज की खपत घटने का कोई आसार नहीं है, और पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!

सहारा के निवेशकों की थोड़ी उम्मीद
एक समय का जब सहारा इंडिया और सहारा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड में निवेश करना काफी सुरक्षित माना जाता था। इसे फरार हो चुकी दूसरी चिटफंड कंपनियों के साथ नहीं गिना गया। पर बीते कुछ सालों से इसमें करोड़ों रुपये निवेशकों के फंसे हैं। हजारों लोग कंपनियों के ब्रांच का चक्कर लगा रहे हैं। कई जिलों में प्रदर्शन हो चुका है। चिटफंड कंपनियों की तरह इनके अधिकांश दफ्तरों में ताला नहीं लगा है। ब्रांच में मैनेजर आदि बैठ रहे हैं। कई जिलों में इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। राजनांदगांव में प्रदर्शन के बाद निवेशकों ने 6 माह पहले अमानत में खयानत की धारा 409 के तहत अपराध दर्ज कराया। पर इससे रकम तो नहीं मिलने वाली थी। प्रशासन ने दबाव बनाया तो सहारा कंपनी ने कलेक्टोरेट के खाते में 15 करोड़ रुपये जमा करा दिए। पर निवेशकों की डूबी रकम ब्याज सहित इससे कहीं ज्यादा है। यह तब है जब सहारा कंपनी बार-बार बड़े- बड़े विज्ञापन देकर आश्वस्त करती है कि वह निवेशकों की पाई-पाई लौटाएगी। अब जिला प्रशासन ने रास्ता निकाला है कि पहले सबको मूल धन दे  दिया जाए। उसके बाद भी राशि बच जाएगी तो उसे भी बराबर अनुपात से बांट दिया जाएगा। हालांकि अब भी कई निवेशक अड़े हैं कि वे लेंगे तो परिपक्वता राशि के साथ पूरी रकम, वरना नहीं लेंगे। सच है ये दिन तो देखने के लिए तो उन्होंने वर्षों से पैसे नहीं लगाए गए थे। पर प्रशासन के पास इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं है। दूसरे जिलों में भी ऐसा हो सकता है कि निवेशकों को रकम लौटाने के लिए प्रशासन मध्यस्थता करे। रायगढ़ में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभी पिछले हफ्ते अपर कलेक्टर ने सहारा इंडिया के प्रतिनिधियों को निवेशकों की रकम लौटाने के लिए पत्र लिखा है। उम्मीद है राजनांदगांव की तरह वहां भी पैसे जमा कराने में प्रशासन को सफलता मिले। अन्य चिटफंड कंपनियों की संपत्ति बेचकर जुटाई जा रही और बहुत कम लोगों को मिल रही थोड़ी-थोड़ी रकम के मुकाबले सहारा से वसूली का प्रतिशत अच्छा होगा।

अबूझमाड़ से गिनीज बुक के लिए दौड़..
धुर नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के 12 साल के राकेश की सफलता मामूली नहीं है। उसने छत्तीसगढ़ स्पेशल टॉस्क के जवानों से प्रशिक्षण लेकर महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जूनियर मलखंड प्रतियोगिता में केवल खिताब जीता बल्कि पिछले रिकॉर्ड भी तोड़े। मलखंड पर राकेश ने इस खिताबी प्रदर्शन में 1 मिनट 30 सेकेंड तक हैंड स्टैंड रखा, जो विश्व स्तर पर अब तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके पहले का रिकॉर्ड केवल 30 सेकेंड का रहा है। राकेश को अपने परिवार के साथ नक्सलियों की धमकी के कारण गांव छोडक़र नारायणपुर के पास एक दूसरे गांव में आना पड़ा था। शायद वह गांव नहीं छोड़ता तो इस शानदार कामयाबी से महरूम रह जाता। अब उसके प्रशिक्षकों ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में संपर्क किया है। वहां से मान लिया गया है कि यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में आना चाहिए। पर इसके लिए 80 हजार रुपये का खर्च भी बता दिया गया है। राकेश की पहुंच से यह रकम बाहर है। सीएम तक बात पहुंची है, नारायणपुर कलेक्टर को उन्होंने निर्देश दिया है कि राकेश का नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी व्यवस्था करें।  ([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news