राजपथ - जनपथ
कृपा कहां पहुंच रही है?
लोगों को अपने टेलीफोन नंबरों पर तरह-तरह के सरकारी फायदे मिलने की खबर मिलते रहती है। इस अखबार के एक नंबर पर मध्यप्रदेश के रियायती सरकारी राशन जारी होने का एसएमएस आते ही रहता है। अब इसी नंबर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से भेजा यह एसएमएस मिला है कि पीएम किसान योजना की दो हजार रूपए की किस्त इस नंबर के बैंक खाते में भेज दी गई है।
अब सवाल यह उठता है कि इस नंबर के मालिक का इन रियायती योजनाओं से जब कोई भी लेना-देना नहीं है, तो यह किसे जा रही रियायत की सूचना है? या तो इसकी वजह से रियायत पाने वाले नामों में एक नाम जबर्दस्ती जुड़ रहा है, या फिर किसी और रियायत पाने वाले की जगह यह संदेश किसी और को जा रहा है? अब जब आधार कार्ड से सारी रियायती योजनाएं जुड़ गई हैं, बैंक खाते जुड़ गए हैं, तब भी ऐसी गड़बड़ी क्यों हो रही है? क्या इस अखबार के टेलीफोन नंबर से कहीं कोई बैंक खाता भी खोल लिया गया है?
निर्मल बाबा कहे जाने वाले एक विवादास्पद गुरू की जुबान में कहें, तो यह कृपा पहुंच कहां रही है?
बूस्टर डोज को लेकर उदासीनता
दिल्ली में बीते कुछ दिनों से लगातार कोविड पॉजिटिव मरीज बढ़ रहे हैं। कल 500 से ज्यादा केस आए। जांच के अनुपात में पॉजिटिव दर 6 प्रतिशत पाई गई। मुंबई में 711 नए केस मिले। दोनों जगहों पर मिले केस अप्रैल के मुकाबले दुगने हैं। छत्तीसगढ़ की स्थिति इस लिहाज से संतोषजनक है कि यहां पॉजिटिव केस की दर अभी एक प्रतिशत से भी कम है। कल रात की तस्वीर के अनुसार पूरे प्रदेश में केवल 15 मामले आए। 22 जिलों से कोई केस नहीं हैं। यही वे आंकड़े हैं जिसे लेकर लोग ही नहीं, सरकार भी निश्चिंत दिख रही है। ऐसा नहीं होता तो बूस्टर डोज की लगने की रफ्तार पर वह चिंतित जरूर होती। 18 प्लस के एक करोड़ 71 लाख लोगों को बूस्टर लगाने का वक्त आ चुका है जबकि केवल 9000 लोगों को अब तक लगा है। 60 वर्ष से अधिक 32 लाख 42 हजार लोगों को बूस्टर लगना है पर अब तक 5 लाख से कुछ ज्यादा लोगों को ही लग सका है।
डॉक्टरों का कहना है कि 9 महीने के बाद वैक्सीन की एंटीबॉडी खत्म हो जाती है। इसलिए बूस्टर डोज लगाना जरूरी है। निजी अस्पतालों को फिक्स 382 रुपए लेकर डोज लगाना है लेकिन ज्यादातर अस्पताल संचालक रुचि नहीं ले रहे हैं और सरकार इन पर दबाव भी नहीं बना पा रही है।
पहले दो दौर के कोविड-19 प्रकोप में यह देखा गया है दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद इसका प्रसार छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हुआ है। बूस्टर डोज लगाने के लिए अभी ठीक वक्त है पर इस पर कोई जोर दे नहीं रहा है।
खुश करने वाले ये आंकड़े
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग आफ इंडियन इकॉनामी ने बेरोजगारी पर जो ताजा रिपोर्ट जारी की है वह छत्तीसगढ़ सरकार को खुश करने वाली हो सकती है पर प्रदेश के युवाओं को भी ऐसा ही महसूस हो रहा होगा, इसमें संदेह है। छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी की दर?? 0.7 प्रतिशत बताई गई है, जो देशभर में सबसे कम है। अप्रैल में भी यह दर 0.6 प्रतिशत बताई गई थी।
इन आंकड़ों में यह नहीं बताया जाता कि रोजगार पाने वाले आखिर कौन सा धंधा कर रहे हैं और कितनी कमाई होती है। सीएमआईई की गणना के तरीके पर कई अर्थशास्त्री अपनी असहमति जता चुके हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजीत राय चौधरी का कहना है शहरी और ग्रामीण इलाकों से 44 हजार परिवारों के बीच देश में सर्वेक्षण करवाया जाता है। यदि कोई कहता है कि वह फेरी लगाता है या कूड़ा बीनता है तो उसे भी रोजगार में लगा मान लिया जाता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक सिर्फ सम्मानजनक काम करने वालों को ही रोजगार वाला माना जाना चाहिए। सम्मानजनक की परिभाषा है कि कोई उत्पादक कार्य किया जाए, समुचित आय मिले, कार्यस्थल पर सुरक्षा हो, परिवार के लिए सामाजिक संरक्षण और व्यक्तिगत विकास की संभावना हो।
अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण से ऐसा लगता है कि घरेलू महिलाओं को भी रोजगारशुदा मान लिया गया होगा। वह घर में कितने सारे काम करती ही हैं। अपने राज्य में नई सरकार बनने के बाद गांव में गोबर बीनने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि पकौड़ा तलकर बेचना भी एक रोजगार है तो गोबर बीनने को क्यों रोजगार में नहीं गिना चाहिए। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो आंकड़े तो खुश करने वाले हैं, इसलिए खुशी मना लेनी चाहिए।