राजपथ - जनपथ
महंगा सफर, बीमारी की जड़
जिन लोगों को विमान और महंगी रेलगाडिय़ों से सफर करना होता है, वे खाने-पीने के मामले में तकलीफ पाते हैं। अभी एक महिला ने राजधानी एक्सप्रेस में उसे दिए गए खाने की तस्वीर पेश की है जो कि पूरी तरह प्लास्टिक के पैकेटों में बंद है, और सेहत के लिए नुकसानदेह भी है। हर सामान तला हुआ, या भारी शक्कर-नमक मिला हुआ। जितना नुकसान बदन का, उतना ही नुकसान धरती का भी।
बड़े-बड़े एयरपोर्ट का निजीकरण हो गया है, और वहां खान-पान के सामान का एकाधिकार। नए मालिक अधिक से अधिक कमाई देने वाले महंगे सामान ही रखते हैं, और लोग अगर यह सोचें कि वे रेलवे स्टेशनों की तरह सेब-केला जैसे फल वहां पा सकेंगे, तो उसकी कोई गुंजाइश नहीं रहती। जिसे आम जुबान में जंकफूड कहा जाता है, बस वैसा ही सामान एयरपोर्ट या प्लेन पर मिलता है, और लोगों को बहुत सारा तेल-मक्खन, बहुत सा नमक-शक्कर जबर्दस्ती खाना पड़ता है। आज जरूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी कोई संस्था दखल दे, और एयरपोर्ट पर सेहतमंद खाना पाने के अधिकार को स्थापित करे। इसके बिना हर सफर लोगों की सेहत का नुकसान करके जाता है।
कॉलेज के पाठ्यक्रम में गोबर खरीदी
केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत कॉलेजों के पाठ्यक्रम में इस साल 30 प्रतिशत तक बदलाव करने के लिए कहा है। सभी उम्र के लोगों को किसी भी कोर्स में प्रवेश लेने की सुविधा दी जा चुकी है। पाठ्यक्रमों में आवश्यक बदलाव के लिए गठित अध्ययन दल ने छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रम में गोबर खरीदी को शामिल करने का सुझाव दिया है। यूजीसी से सहमति मिलने के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा। गोबर खरीदी का काम छत्तीसगढ़ में जब शुरू हुआ तो कई सवाल इस पर उठाये गए। पर अब दूसरे कई राज्य भी इसे लागू कर चुके हैं। इनमें भाजपा शासित राज्य भी हैं। सब यह मान रहे हैं कि ग्रामीणों की अतिरिक्त आमदनी का यह अच्छा स्त्रोत है। जाहिर है जब पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा तो लैब भी बनेंगे और शोध का रास्ता भी निकलेगा। गोबर से अच्छी क्वालिटी का वर्मी कंपोस्ट बने इस पर काम होना बहुत जरूरी लग रहा है। अभी कई गौठानों से खाद की गुणवत्ता संबंधित शिकायतें हैं। इस योजना में अब भी सरकारी सहायता जारी है। इस मदद के बगैर गोबर खरीदी को विशुद्ध व्यवसाय के रूप में कैसे खड़ा किया जाए, यह भी सोचा जा सकेगा।
हार्न की शोर के खिलाफ मुहिम
मिलिए कैलाश मोहता से। ये वर्षों से अनावश्यक हॉर्न बजाने के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। वे बताते हैं कि हम जीवन का बड़ा हिस्सा सडक़-यात्रा में गुज़ारते हैं। बेवजह हॉन्किंग की आदत से स्वभाव में आक्रामकता बढ़ती है, तनाव पैदा होता है। फलस्वरूप दिल की समस्या जैसे गंभीर रोग भी हो सकते हैं। मोहता ने अमेरिका, चीन जैसे देशों में लंबी यात्राएं कीं। वहां लोग अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाते। यह देखकर वे काफी प्रभावित हुए। जन-जागरूकता के लिए उन्होंने पीठ पर पोस्टर लगाना शुरू किया तो बेटियों ने कहा कि लोग पागल कहेंगे। तब से वे रोज़ पोस्टर लगाकर निकलते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं।
चावल खपाने का सही मौका
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियाभर के कई देश खाद्य संकट से जूझ रहे हैं, विशेषकर गेहूं की किल्लत बनी हुई है। कई अफ्रीकी देशों में तो भुखमरी की स्थिति है। भारत से गेहूं की बेतहाशा मांग उठने लगी, तब देश में ही इसकी कमी का खतरा मंडराने लगा। तब सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरी तरफ गेहूं उपलब्ध नहीं होने के कारण कई देशों का ध्यान चावल की तरफ गया है। बांगलादेश वैसे तो अक्टूबर से भारत से चावल का ज्यादा आयात करने लगा है, पर अब रिपोर्ट है जून से इसे बड़े पैमाने में भारत से मंगा रहा है और अतिरिक्त स्टाक गोदामों में जमा किया जा रहा है। दरअसल, उसे डर है कि दूसरे देशों से चावल की मांग बढ़ी तो भारत कहीं गेहूं की तरह चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध न लगा दे। ज्यादा चावल आ सके इसके लिए इसके आयात शुल्क में बांगलादेश ने 37.5 प्रतिशत की कमी कर दी है। इसके चलते अपने यहां के बाजार में चावल की कीमत 2 से 5 रुपये किलो तक बढ़ गए हैं। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह खबर इसलिये खास है क्योंकि यहां चावल का अत्यधिक उत्पादन होता है। सरकारी खरीद में प्रोत्साहन के चलते रुझान बढ़ता ही जा रहा है। गांव-गांव कैंप लगाकर किसानों को दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित करने का खास असर नहीं है। अतिरिक्त चावल को खपाना राज्य सरकार की एक बड़ी समस्या है। केंद्रीय पूल में भी उतना चावल नहीं लिया जाता, जितना सरकार चाहती है। पिछले साल चावल की खुले बाजार में बिक्री की कोशिश की गई थी, पर उसका प्रतिसाद नहीं मिला। एक बार फिर ऐसी कोशिश करके छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो आज फायदा उठा सकती है।