राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शैलेष पाठक इन दिनों
01-Jul-2022 5:20 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : शैलेष पाठक इन दिनों

शैलेष पाठक इन दिनों 

छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष-90 बैच के आईएएस शैलेष पाठक केन्द्र सरकार की संस्था आईएसपीपी के डायरेक्टर हो गए हैं। यह संस्था पॉलिसी तैयार करती है। पाठक करीब 17 साल अविभाजित मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ सरकार में सेवा देने के बाद निजी क्षेत्र में चले गए थे। बाद में उन्होंने आईएएस की नौकरी छोड़ दी। वे आईएलएंडएफएस   में रहे, और वर्तमान में एलएंडटी में सेवाएं दे रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार में वे महासमुंद, और बस्तर कलेक्टर रहे हैं। इसके अलावा विशेष सचिव पीडब्ल्यूडी, सीएसआईडीसी के एमडी भी रहे। शैलेष को नजदीक से जानने वाले कुछ अफसरों का कहना है कि वो सरकारी सेवा में फिर से आने के इच्छुक थे। और इसके लिए प्रयासरत भी रहे। लेकिन शैलेष पाठक ने इससे इंकार भी किया था। सरकारी नौकरी में रहते तो वो मुख्य सचिव भी हो सकते थे। मगर वे इसके समकक्ष पद पा ही चुके हैं।

जीएसटी घाटे का असर... 

कर संग्रह की जिस जीएसटी प्रणाली को ऐतिहासिक बताकर आधी रात को लागू किया गया था, उसने आज राज्यों की माली हालत बिगाडक़र रख दी है। अधिकांश राज्यों का कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, यह रिजर्व बैंक की हाल की रिपोर्ट में ही कहा गया था। कांग्रेस ने जीएसटी लागू होने के पहले इसके खतरे के प्रति आगाह भी किया था, पर भाजपा शासित राज्य भी अब राजस्व में हो रहे घाटे को लेकर चिंतित हैं। काउंसिल की बैठक में करीब 12 राज्यों में जिनमें उत्तराखंड सहित कई भाजपा शासित हैं, ने क्षत्तिपूर्ति की अवधि 10 साल करने की मांग रखी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च माह में 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इसी मांग को लेकर पत्र भी लिखा था। हाल की बैठक में जीएसटी मंत्री टीएस सिंहदेव कोविड संक्रमण के चलते शामिल नहीं हो पाए, पर उन्होंने वित्त मंत्री को जीएसटी क्षतिपूर्ति बंद होने से होने वाले नुकसान का ब्योरा दिया और इसे 10 साल तक जारी रखने की मांग की। छत्तीसगढ़ ने एक दूसरा विकल्प भी सुझाया कि सेंट्रल जीएसटी में अभी जो 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है उसमें राज्य का हिस्सा बढ़ाकर 70 से 80 प्रतिशत तक कर दिया जाए। पर इन सुझावों पर अमल करना केंद्र के लिए असुविधाजनक था, सो फैसला नहीं हुआ। अब इन मांगों पर विचार कम से कम 6 माह के लिए टल गया है, क्योंकि अगली बैठक इसके पहले नहीं होगी। एक जुलाई से राज्य सरकार के राजस्व में कम से कम 5500 करोड़ रुपये का नुकसान होने जा रहा है। धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ अगले विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में अनेक वायदे हैं जो सन् 2018 में किए गए थे, उन्हें पूरा करने का दबाव बढ़ेगा। कर्मचारियों को नियमित करने और नियमित कर्मचारियों के वेतन, भत्तों से जुड़ी कई मांगों को वित्तीय स्थिति के चलते ही टालकर रखा गया है। बेरोजगारी भत्ता, शराबबंदी का संकल्प भी सरकार पूरा नहीं कर पा रही है। सरकार ने नए जिले, तहसील, उप-तहसील और नगर पंचायतों की घोषणा कर रखी है, उनके सेटअप पर व्यय होना है। कृषि और किसानों को दिए जा रहे बोनस और अनुदान का स्थायी खर्च तो सामने है ही।

बीच जंगल में ग्राहक सेवा केंद्र

अचानकमार अभयारण्य में मोबाइल नेटवर्क का मिलना बहुत मुश्किल है। पर कहीं-कहीं किसी एक मोबाइल कंपनी का नेटवर्क मिल जाता है, वह भी हवा के रुख पर निर्भर है। अचानकमार ग्राम में कुछ पढ़े लिखे युवाओं ने गांव में दो एक जगह खोज निकाली है और उसी जगह पर खुले में बैठकर वे ग्राहक सेवा केंद्र चला रहे हैं। इससे आसपास के पांच और गांवों के लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से रुपयों का लेन-देन करते हैं।   

साय की बार-बार चेतावनी

भाजपा नेतृत्व के कौशल और रणनीति की भले ही देशभर में मिसाल दी जा रही हो, पर छत्तीसगढ़ में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है जिससे अगले चुनाव में उसकी राह आसान दिखाई दे। कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बात को घुमा-फिराकर स्वीकार भी किया था। कहा था कि भाजपा को तीसरे दलों की मौजूदगी से लाभ मिलता था और अब वह स्थिति नहीं है। ताजा असंतोष पार्टी के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय का दिखा है। वे सीधे-सीधे कह रहे हैं कि जो चेहरे वर्षों से सामने रखे गए हैं, उनको पार्टी बदले, आक्रामक चेहरा सामने लाए। बीते 6-7 माह के भीतर साय का खुला असंतोष दूसरी बार दिखा है। बीते नवंबर माह में भी मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि पार्टी ने उन्हें एक बार नहीं कई बार धोखा दिया, वरना मुख्यमंत्री वही बनने वाले थे। यह भी कहा कि अभी भी छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति बहुत बुरी है। जानकार कहते हैं कि साय की बात में दम तो है पर ऐसा लगता है कि संगठन के भीतर उनकी बात नहीं सुनी जा रही है वरना यह सब उन्हें मीडिया के सामने क्यों कहना पड़ता? साय का कद बड़ा और वोटरों के एक बड़े पॉकिट में पकड़ है, इसलिये इतना सब बोल गए। वरना, दूसरा कोई होता तो अब तक एक्शन लिया जा चुका होता।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news