राजपथ - जनपथ
अमित साहू के तेवर से सब हैरान
भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू के तेवर से पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी उस वक्त हक्का-बक्का रह गए जब उन्होंने मंच से विशेषकर रायपुर जिले के युवा मोर्चा के पदाधिकारियों के परफॉर्मेंस को खराब बता दिया, और कह दिया कि उन्हें हटाया भी जा सकता है, चाहे उनकी नियुक्ति के लिए किसी भी बड़े नेता ने सिफारिश की हो।
एकात्म परिसर में हुई बैठक में पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने उन्हें टोककर शांत करने की कोशिश की लेकिन वो नहीं रूके। अमित साहू ने कह दिया कि चुनाव नजदीक आ गए हैं, और रायपुर सहित कई जिलों में युवा मोर्चा के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हैं। ऐसे पदाधिकारियों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बताते हैं कि युवा मोर्चा का 9 अगस्त को एक बड़ा सम्मेलन है, इसमें एक लाख युवाओं को बुलाने का लक्ष्य है। लेकिन रायपुर जिले के शहर जिला अध्यक्ष और अन्य कई पदाधिकारी इतने निष्क्रिय हैं कि सम्मेलन की सफलता को लेकर सशंकित हैं। ऐसे में अमित साहू का गुस्सा तो फूटना ही था।
सीख देता झारखंड का यह नर्सरी स्कूल
एक स्कूल की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। स्कूल की गेट के पास आकर्षक रंगीन चित्र बने हैं। दरवाजे पर शिक्षिका मुस्कुराते हुए खुद नमस्ते करके, हाथ मिलाकर बच्चों को सिखा रही है कि किसी से मिलो तो किस तरह से स्वागत करना चाहिए। बच्चे अपने पसंद की तस्वीर पर हाथ रखते हैं और प्रफुल्लित मन के साथ भीतर प्रवेश कर रहे हैं।
ऐसी तस्वीर निजी नर्सरी या प्री-प्रायमरी स्कूलों में दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं, पर यह झारखंड के किसी सरकारी स्कूल की है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अप्रैल माह में आदेश निकाला था कि स्वामी आत्मानंद हिंदी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में नर्सरी स्कूल भी खोले जाएंगे। इसमें कमरों का चिन्हांकन, साज-सज्जा और बैठक व्यवस्था, खिलौने और लर्निंग सामग्री की व्यवस्था करने का सभी कलेक्टरों को निर्देश है। पर जो टीचर्स उन्हें सिखाएंगे, उनके बारे में क्या?
उन सरकारी स्कूलों की सूचनाएं तो खबर बन जाती है, जहां छात्र क्या शिक्षक भी हिंदी, अंग्रेजी ठीक तरह से बोल-लिख नहीं पाते। पर ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक ऐसे स्कूल हैं, जहां बिना किसी अतिरिक्त फंड से शिक्षकों ने स्कूल को इसी तरह न केवल सजाया संवारा है, बल्कि माहौल भी पढ़ाई के अनुकूल बना रखा है। पिछले कई बोर्ड परीक्षा परिणामों देखा जा चुका है कि इन स्कूलों से टॉपर बच्चे भी निकल रहे हैं। कहा जाता है कि स्कूल अच्छा हो यह जरूरी नहीं, स्कूलिंग अच्छी होनी चाहिए। झारखंड की इस तस्वीर से छत्तीसगढ़ में खुल रहे सरकारी नर्सरी स्कूलों के शिक्षक भी कुछ नया करने की सीख ले सकते हैं।
अब कौन सी मांग बाकी रह गई?
विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल के आह्वान पर छत्तीसगढ़ बंद का आज आयोजन किया गया। भाजपा भी साथ देने सडक़ों पर थी। चेंबर ऑफ कॉमर्स और दूसरे कई व्यापारी संगठनों ने भी समर्थन दे दिया। प्रदेश के विभिन्न जिलों से बंद की मिली-जुली खबरें आई हैं। शायद ही कोई ऐसा तबका या राजनीतिक दल हो जिसने उदयपुर घटना की निंदा नहीं की हो। राजस्थान सरकार ने जिस तत्परता से कानून-व्यवस्था को बिगडऩे से बचाया, उसकी भी तारीफ हुई है। आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए, सजा के लिए फास्ट ट्रैक अदालत भी बन गई। लोगों के मन में अब सवाल उठ रहा है कि अब मांग क्या बची है, जिसके लिए बंद किया जाए? ये बंद प्रदेश के माहौल को शांत बनाए रखने में मदद करेगा या फिर ध्रुवीकरण के जरिये किसी एक दल को फायदा पहुंचाने का काम? शायद सन् 2023 के चुनाव आते तक ऐसे ही नियमित प्रदर्शन से लोगों के दिमाग में बात बिठाई जा सकेगी कि हिंदू यहां भी खतरे में हैं। ऐसे कुछ प्रदर्शन साल दो साल के भीतर हो चुके हैं।
लोकतंत्र की एक असली तस्वीर..
गरियाबंद के देवभोग में कलेक्टर दौरा करने वाले थे। सब विश्राम गृह में उनका इंतजार कर रहे थे। इनमें एक 60 साल की वृद्ध महिला सुंदरमणि भी थीं। अचानक कलेक्टर नहीं पहुंच पाए। सुंदरमणि वहां खड़े नायब तहसीलदार के पास हाथ जोडक़र गिड़गिड़ाने लगी, रोने लगी और आखिरकार पैरों पर गिर गई। उसकी ऋण पुस्तिका गुम गई थी। नए के लिए आवेदन किया था। जो प्रक्रिया थी, पूरी कर दी। बाबू को 1700 रुपये भी दे डाले थे। पर बाबू कई महीनों से घुमा रहा था। उसे चढ़ावा चाहिए और उस बूढ़ी ग्रामीण महिला की हैसियत नहीं थी। नायब तहसीलदार के पैरों पर गिरकर वह फफक-फफक कर रो पड़ी और गिड़गिड़ाई कि बिना रिश्वत नया ऋण पुस्तिका दिला दो देवता। जिस वक्त की घटना थी, मीडिया के लोग भी कलेक्टर के आने की सूचना के चलते पहुंचे थे। इस घटना को उन्होंने दर्ज कर लिया। नायब तहसीलदार भी देख रहे थे कि अगल-बगल कौन खड़े हैं। उसने फरियादी महिला को उठाया, अपने दफ्तर ले गए और उसकी ऋण पुस्तिका तुरंत तैयार करके दे दिया गया। जिस बाबू ने रिश्वत मांगी थी, उसे कारण बताओ नोटिस दी गई है। देखें बाबू पर क्या कार्रवाई होती है। सोचने की बात यह भी है कि नायब तहसीलदार के कमरे में ही बगल में बैठने वाले बाबू का राज इससे पहले कैसे नहीं खुला?