राजपथ - जनपथ

अचानकमार में बाघों की खुराक...
पिछले कुछ महीनों के भीतर अचानकमार में बाघों का विचरण देखा गया। बीते साल एक बाघिन घायल हालत में भी मिली थी। पता चला कि ये बाघ बांधवगढ़ और कान्हा किसली से भ्रमण करते हुए शिकार की तलाश में यहां पहुंचते हैं। इसकी वजह है कि यहां कई अवैध दैहान बने हुए हैं। सैकड़ों मवेशियों को चरते हुए यहां-वहां देखा जा सकता है। आसपास के गांवों में तथा मुख्य सडक़ों पर मिलने वाला ‘शुद्ध’ खोवा, घी और रबड़ी इन्हीं की देन है। इनका शिकार करने के लिए बाघ, तेंदुआ जरूर पहुंच जाते हैं पर अभयारण्य की सेहत के लिए दैहानों का होना और जानवरों का चरना ठीक नहीं है। कान्हा, बांधवगढ़ आदि के जंगलों में प्रतिबंध है। इनके नहीं होने से वन्यजीवों को पनपने का ज्यादा बेहतर वातावरण मिलता है। इससे जंगल नष्ट होता है और दूसरे वन्य जीव जिनमें चीतल, बनभैंसा, सांभर आदि हैं उनको पनपने का मौका नहीं मिलता। कई बार वन्यजीव प्रेमियों ने इन गौठानों को हटाने की मांग उठाई है। पर उनकी बात सुनी नहीं जाती। एक तो राजनीतिक दबाव, दूसरा वन अधिकारियों का संरक्षण। इन दोनों वजहों से दैहान फल-फूल रहे हैं। और अचानकमार के सैलानी, सैलानी बाघों को ढूंढा करते हैं।
रेलवे का जख्म स्थायी होगा...
दर्जनों ट्रेनों को लंबे समय से बंद कर देने के कारण रेल सफर करने वाले यात्री महीनों से हलकान हैं। इससे कम दूरी के यात्रियों को अधिक परेशानी हो रही है। स्थिति यह है कि आसपास के स्टेशनों के लिए भी सीटिंग सीट, दू एस और स्लीपर में भी लंबी वेटिंग चल रही है, जबकि ज्यादातर ट्रेनों से जनरल डिब्बे गायब हैं। रद्द की गई ट्रेनों में पैसेंजर ट्रेनों की संख्या ज्यादा है, जिनमें बीते माह स्टेशन पर टिकट तुरंत लेकर बैठने की सुविधा शुरू की गई थी। सस्ते सफर की बात तो तब करें जब ट्रेन नियमित रूप से चलने लगे। यात्री अब महंगे सफर के आदी हो रहे हैं। इस मजबूरी का रेलवे ने नए तरीके से फायदा उठाने का सोच लिया है। पैसेंजर ट्रेनों को मेल-एक्सप्रेस का दर्जा दिया जाएगा। दर्जा बढ़ेगा यानि किराया भी बढ़ेगा। जानकारी मिली है कि इसके बाद इन ट्रेनों का न्यूनतम किराया 30 रुपये कर दिया जाएगा, जो अभी 10 रुपये है। छोटे स्टेशनों पर ठहराव देने की मांग पर रेलवे का रुख कड़ा है। कोविड काल से इन स्थानों पर ट्रेनों को रोकना बंद किया गया था। अब इसे स्थायी रूप दे दिया जाएगा। रेलवे ने करीब 1600 स्टेशनों में ठहराव बंद कर दिया है। छोटे स्टेशनों में रोकने का खर्च बहुत ज्यादा है, जबकि यात्री टिकट से होने वाली आमदनी उसके मुकाबले कुछ नहीं। कुल मिलाकर रेलवे का रूख पूरी तरह मुनाफा की सोचने वाली संस्था की है। लोक कल्याण के प्रति शासन की प्रतिबद्धता से वह लगातार दूर होती जा रही है।
स्टांप ड्यूटी में हो गया खेल..
उद्योगों को जमीन खरीदने पर स्टांप ड्यूटी के रूप में बड़ी रकम जमा करनी होती है, तब पंजीयन हो पाता है। विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर इस राशि कम कराने की शिकायतें अक्सर आती है। हाल ही में रायपुर का मामला उछला है जिसमें कई उद्योगों को लीज पर जमीन लिए 10-10 साल हो गए पर न उद्योग शुरू किया और न ही स्टापं ड्यूटी जमा की। पर रायगढ़ में एक दूसरी तरह का मामला आया है। एक ऑयरन एंड पॉवर कंपनी की लगभग 250 एकड़ जमीन की पंजीयन विभाग ने रजिस्ट्री की है। इसमें 600 वृक्षों का होना दर्शाया गया है। प्रत्येक पेड़ पर रजिस्ट्री शुल्क बढ़ता जाता है। उसी हिसाब से फीस ली गई है। दूसरी तरफ वन विभाग ने जो सत्यापन रिपोर्ट राजस्व विभाग को सौंपी है, उसमें बताया गया है कि पेड़ों की संख्या हजारों में है। नियमानुसार बड़ी रजिस्ट्री के लिए पंजीयन विभाग को मौके पर जाकर मुआयना करना चाहिए। यदि इसके अधिकारियों ने ऐसा नहीं भी किया हो तो कम से कम वन विभाग की रिपोर्ट को ही आधार बनाकर स्टांप ड्यूटी जमा करानी थी। पर, ऐसा नहीं किया गया और अधिकारियों ने सरकार को लंबा चूना लगा दिया।