राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : प्रेस कॉन्फ्रेंस का असर
07-Jul-2022 5:35 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : प्रेस कॉन्फ्रेंस का असर

प्रेस कॉन्फ्रेंस का असर

आईटी छापों, और कोयला तस्करी पर प्रदेश भाजपा संगठन मुखर दिखी है। एक पूर्व मंत्री ने तो बुधवार को सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर सरकार पर जमकर कोसा। इसका प्रतिफल तुरंत मिल भी गया। दोपहर बाद सरकार का अमला अलग-अलग कोलवाशरी में जांच के लिए पहुंच गया। चर्चा है कि इन कोल वासरियों के संचालकों में से एक तो पूर्व मंत्री के पार्टनर भी हैं। पूर्व मंत्री ने वाशरी संचालकों के प्रतिष्ठानों में  काफी कुछ निवेश कर रखा है। जांच में क्या मिला, क्या नहीं, यह तो साफ नहीं हो पाया है, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि जांच पड़ताल से थोड़ी बहुत चोट पूर्व मंत्रीजी को पहुंची होगी।

जवाबी हमला

आईटी छापे तो पड़ते ही रहते हैं, लेकिन भाजपा अचानक क्यों सक्रिय दिखी, इसकी अलग ही कहानी है। सुनते हैं कि राहुल गांधी का फर्जी वीडियो प्रसारित करने के मामले में टीवी एंकर को गिरफ्तार करने छत्तीसगढ़ पुलिस की टीम दिल्ली पहुंची, तो हडक़ंप मच गया। इसकी गूंज भाजपा मुख्यालय तक हुई।

हल्ला यह है कि एंकर के बचाव के लिए पार्टी के आईटी सेल के लोगों ने ताकत झोंक दी। प्रकरण में यूपी पुलिस की भी मदद ली गई। आईटी सेल के लोगों ने प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों से चर्चा की। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने का निर्णय लिया गया, और सभी जिलों में एक ही मुद्दे को लेकर पार्टी नेताओं ने कॉन्फ्रेंस लिया। बावजूद इसके एंकर के खिलाफ कार्रवाई मीडिया में छाई रही।

गुरुजनों के लिए एक सबक...

बिहार के मुजफ्फरपुर के नितीश्वर सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार इस समय चर्चा में हैं। उन्होंने 33 महीने का पूरा वेतन जो करीब 24 लाख रुपये है, कुलसचिव को वापस कर दिया। उनका कहना था कि चूंकि इस दौरान उन्होंने क्लास ही नहीं ली, इसलिये वेतन लेने का हक भी नहीं। वे हिंदी के प्राध्यापक हैं। इस विषय पर 1100 छात्रों का नामांकन है। कोविड काल में ऑनलाइन क्लास लगाई तब भी छात्र उसमें शामिल नहीं हुए, जब कॉलेज खुल गया तब भी क्लास नहीं आ रहे थे। मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले डॉ. ललन कुमार को अच्छा नहीं लगा कि बिना पढ़ाए वेतन ले। इसके विपरीत अनेक सरकारी दफ्तरों के बारे में एक धारणा ही बनी हुई है कि काम नहीं करना है, और करना भी है तो बिना चढ़ावा लिए नहीं। शिक्षा की दशा क्या है, इस पर समय-समय पर रिपोर्ट्स आती रहती हैं। एक ओर छत्तीसगढ़ सहित दूसरे कई राज्यों में एक या दो क्लास लेकर, कई-कई दिन क्लास नहीं लेकर भी टीचर्स अच्छा खासा वेतन उठाते हैं, वहीं दूसरी ओर ललन कुमार देशभर के शिक्षकों को आईना दिखा रहे हैं।

हिंदी में बस इतना काफी है...

सार्वजनिक उपक्रम एसईसीएल में एक अदद राजभाषा विभाग है। इसका काम विभिन्न विभागों को हिंदी में पत्राचार के लिए प्रेरित करना है। इसके लिए समय-समय पर सेमिनार और कार्यशाला भी रखी जाती है। अंताक्षरी और कविता, कहानी लिखने की प्रतियोगिताएं होती हैं। पर इस पत्र को देखें। कुछ हिंदी शब्दों के दर्शन हो रहे हैं, बाकी पूरा अंग्रेजी में है। लिखने वाले ने इतना भी कष्ट क्यों उठाया? पूरा पत्र क्यों नहीं अंग्रेजी में लिख डाला? बताते हैं कि इस तरह के पत्रों को भी हिंदी में लिखा गया मान लिया जाता है। आजादी के बाद से अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में  अपनाने पर जोर देने वालों को ऐसे पत्र और निराश कर सकते हैं, क्योंकि वह राजभाषा के रूप में भी व्यवहार में नहीं लाया जा सका है।  

सर्विस टैक्स पर लगाम इसलिए लगी

होटलों, रेस्तरां में खाने के बारे में तो लोग अपनी हैसियत देखकर निर्णय लेते हैं, पर जब रेल का सफर हो तो कोई विकल्प नहीं होता। आईआरसीटीसी की मर्जी है, जो खिलाए-पिलाए और जो बिल थमाए। बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक यात्री ने एक बिल शेयर किया था। दिल्ली-भोपाल के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में यात्री से चाय की कीमत तो सिर्फ 20 रुपये ही ली गई लेकिन सर्विस चार्ज 50 रुपये जोड़ दिया गया। इस तरह से कुल 70 रुपये की चपत लगी। बताते हैं कि उपभोक्ता आयोग के ध्यान में यह बात आई और यह भी सर्विस चार्ज पर पाबंदी लगाने का एक कारण बना।

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