राजपथ - जनपथ
सिंहदेव के पक्ष में बोलने पर विवाद
पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने भूपेश-सिंहदेव विवाद पर तस्वीर जारी कर फेसबुक पर कटाक्ष क्या किया, उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं ने मूणत की खिंचाई कर दी। मूणत ने भूपेश-सिंहदेव की तस्वीर के साथ मैसेज पोस्ट किया की, कि भूपेशजी सावन का महीना है। आप गेड़ी चढिय़े, भौंरा चलाइये। थोड़ा बहुत भोलेबाबा की उपासना में मन लगाइए पाप कटेंगे। कुर्सी से उठिए, और एक साल तो टीएस बाबा को बैठने दीजिए। 2023 के बाद भाजपा संभाल लेगी।
मूणत के पोस्ट पर अंबिकापुर भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के सह प्रभारी कैलाश मिश्रा ने फेसबुक पर प्रतिक्रिया दी कि मूणतजी, आप इतना बेचैन क्यों हैं....। टीएस सिंहदेव को बनाने के लिए...इसी सेटिंग में तो सरगुजा संभाग की सभी 14 सीटें भाजपा के हाथ से निकल गई.... ऐसी ही सेटिंग अभी भी रखेंगे, तो 2018 फिर से दुहरा मत जाए...। दरअसल, सरगुजा इलाके में भाजपा टीएस सिंहदेव को लेकर दो धड़ों में बंटी हुई है। एक धड़ा सिंहदेव के प्रति सद्भावना रखता है, तो दूसरा कैलाश मिश्रा, और दूसरे भाजपा नेता हैं, जो कि सिंहदेव के प्रबल विरोधी हैं। ऐसे में सरगुजा से बाहर के नेता जब सिंहदेव पर बोलते हैं, तो इसकी तुरंत प्रतिक्रिया होती है।
हाईकमान पर निगाहें
टीएस सिंहदेव के पंचायत विभाग के प्रभार से खुद को पृथक कर लेने के बाद सरकार, और पार्टी में हलचल मची हुई है। पार्टी हाईकमान इस पर क्या कदम उठाती है, इस पर नजरें टिकी हुई है।
अंदर की खबर यह है कि सीएम भूपेश बघेल की इस सिलसिले में पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री केसी वेणुगोपाल से चर्चा हुई है। सिंहदेव ने भी वेणुगोपाल पर अपनी बात पहुंचाई है। अब आगे क्या? इस बात की संभावना जताई जा रही है कि हाईकमान सिंहदेव को पंचायत का प्रभार वापस रखने के लिए कह सकती है। ये अलग बात है कि सीएम के करीबी कई मंत्री, और विधायक चाहते हैं कि सिंहदेव को कैबिनेट से बाहर किया जाए। हालांकि दस जनपथ से उनकी नजदीकियों को देखते हुए ऐसा होना मुश्किल है। देखना है कि पार्टी हाईकमान विवाद सुलझाने के लिए कौन से तरीका अपनाता है।
निकम्मा वर्सेस कामचोर
शिक्षा विभाग की जब बात होती है तो शिक्षकों की दक्षता पर कम, उनके इतर क्रियाकलापों की ज्यादा चर्चा होती है। कुछ दिन पहले रायपुर में वीडियो कांफ्रेस से शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए ली जा रही बैठक में किसी संदर्भ में प्रमुख सचिव ने शिक्षकों के लिए निकम्मा शब्द प्रयोग में लाया। शिक्षक संगठनों की नाराजगी उभरी थी, मसला अब तक सुलझा नहीं है। इधर मालखरौदा में महिला एबीईओ के साथ प्रधान पाठक का विवाद चर्चा में है। यह तो स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल की बात है, जहां सत्र चालू हो जाने के बाद भी शिक्षकों के पद नहीं भरे जा सके हैं। महिला अधिकारी की बच्ची यहां पढ़ रही है, जिसे स्कूल में चोट लग गई थी। उन्होंने प्रधान पाठक पर अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए महिला आयोग से भी शिकायत कर दी है। आए दिन दिख जाता है कि शिक्षक शराब पीकर स्कूल पहुंच रहे हैं। कोटा (बिलासपुर) में एक शिक्षक के खिलाफ लंबे समय से ग्रामीण शिकायत कर रहे थे। कार्रवाई नहीं होने पर वे कलेक्टर के पास पहुंचे। उन्होंने जांच कराई और शिक्षक को निलंबित किया गया। अब एक नया विवाद मुंगेली जिले से है। यहां के डीईओ ने नवाचार कार्यक्रम की बदतर स्थिति पर चिंता जताते हुए वाट्सएप ग्रुप में पूछा कि क्या इसे बंद कर देना चाहिए? किसी ने जवाब में लिखा- कोई कामचोर शिक्षक ही ऐसा करने के लिए बोलेगा। बस, फिर वाट्सएप पर ही तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। किसे कहा कामचोर?
नये शिक्षा सत्र की शुरूआत ऐसी हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिस्टम और गुणवत्ता में कितना सुधार इस साल होने वाला है।
आम आदमी पार्टी की खुशी
मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी का खाता खुल गया है। सिंगरौली नगर निगम में पार्टी प्रत्याशी रानी अग्रवाल विजयी हुई हैं। उनके प्रचार में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे और रोड शो किया था। इसके अलावा नगर निगम के 7 पार्षद भी आप पार्टी से जीत गए। छत्तीसगढ़ में आम आदमी कार्यकर्ता इस नतीजे से खुश हैं। उनकी खुशी लगभग उसी तरह से है, जैसी छत्तीसगढ़ के संदीप पाठक को पंजाब कोटे से पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था। पड़ोसी राज्य तक उनकी पार्टी पहुंच गई है। देर-सबेर छत्तीसगढ़ में भी हवा पहुंचेगी और खाता खुलेगा। वैसे छत्तीसगढ़ में पहले विधानसभा चुनाव ही आएंगे, उसके बाद नगरीय निकाय चुनावों की बारी आएगी।
फायदे तो गिनाओ हांकिंग के?
ट्रैफिक में हॉर्न बजाने से क्या होता है? ए- लाइट जल्दी ग्रीन हो जाती है, बी-सडक़ चौड़ी हो जाती है, सी- गाड़ी उडऩे लगती है और डी- ऐसा कुछ नहीं होता है। सडक़ों पर अनावश्यक हॉर्न बजाकर ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों को रोकने के लिए एक ऑटो रिक्शा में इस तरह से जागरूकता लाई जा रही है।
अफसर के साथ सरपंच...
पंचायतों में करोड़ों के फंड के इस्तेमाल को लेकर सरपंच सचिव के बीच प्राय: खींचतान बनी रहती है। इस पर अधिकारी अगर कड़ी निगरानी रखते हैं तो राजनीतिक दबाव पड़ता है। ऐसा ही कुछ कटघोरा जनपद पंचायत में हुआ। जनपद के पंचायत सचिवों के विरोध के बाद यहां के सीईओ नारायण खोटेल का तबादला कर दिया गया। सचिव अपनी जीत की खुशी मना पाते कि खोटेल हाईकोर्ट चले गए और वहां से स्टे ऑर्डर लेकर आ गए। अब वे फिर अपनी कुर्सी पर काबिज हो गए हैं। सचिव उन्हें दुबारा बिठाए जाने का विरोध कर रहे हैं और बेमियादी हड़ताल पर चले गए हैं। पर जिला पंचायत सीईओ का कहना है कि हमने तबादला आदेश का पालन तो कराया था, पर अब जब वे कोर्ट का आदेश लेकर आ गए हैं तो हम क्या करें? पर सचिवों ने हड़ताल खत्म नहीं की। अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। इधर खोटेल के समर्थन में सरपंच कूद पड़े हैं। दर्जनों सरपंचों के हस्ताक्षर से उच्चाधिकारियों को ज्ञापन दिया गया है, इसमें खोटेल को नहीं हटाने और आंदोलन कर रहे सचिवों पर कार्रवाई की मांग है। सरपंचों ने गिनाया है कि सचिव क्यों खोटेल को नहीं देखना चाहते। दरअसल, वे शासन से आने वाले फंड की जानकारी सरपंचों को समय पर नहीं देते। खर्च करने के बाद प्रस्ताव लाते हैं। यहां तक कि पंचायत दफ्तर भी नहीं पहुंचते हैं। राशन कार्ड, मनरेगा, गोधन योजना सब पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसी को लेकर जनपद सीईओ कुछ सख्त हो गए थे। इसलिये उनको हटाने की मांग हो रही है।
किसकी बात में कितना सच है, यह मालूम नहीं। मगर, एक बात तो साफ है कि पंचायती राज होने के बावजूद अब भी ज्यादातर अधिकार पंचायत सचिव से लेकर ऊपर तक सरकारी कर्मचारी, अधिकारियों के हाथ में ही हैं। पंचायत प्रतिनिधियों और ग्राम सभा को व्यवहारिक रूप में इनके काम में हस्तक्षेप कम करने के अधिकार कम हैं।