राजपथ - जनपथ
विपक्ष सरकार पर भारी
बाबा के पंचायत विभाग से पृथक होने के फैसले से सरकार बैकफुट पर आ गई है। पावस सत्र चल रहा है, और बाबा के मसले पर सरकार को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। हल्ला है कि सरकार के रणनीतिकारों ने सत्र के पहले बाबा को कैबिनेट से बाहर करने का प्लान तैयार किया था। सदन में ज्यादा कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।
सुनते हैं कि बाबा पर कार्रवाई के लिए विधायक इंद्र शाह मंडावी के लेटर पैड में आनन-फानन में 61 विधायकों के हस्ताक्षर लेकर पुनिया को सौंप दिए गए थे, ताकि कार्रवाई में देरी न हो। पुनिया दिल्ली भी गए। वेणुगोपाल से बात भी हुई। पत्र भी सौंपा, लेकिन बाबा को पद से हटाने पर कोई फैसला नहीं हुआ।
दरअसल, पार्टी हाईकमान नेशनल हेराल्ड प्रकरण को लेकर उलझी हुई है। सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के मसले पर पार्टी के नेता चिंतित हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ में पार्टी की अंदरूनी खींचतान को रोकने के लिए हाईकमान ध्यान नहीं दे रही है। यही वजह है कि सदन में सरकार घिरी हुई है, और साढ़े तीन साल बाद पहला ऐसा सत्र है जब अकेले बाबा के मसले पर विपक्ष सरकार पर भारी दिख रहा है।
बदलाव कब?
बाबा का क्या होगा, यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दिल्ली से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक विधानसभा सत्र निपटने के बाद अगले महीने सरकार में बदलाव होगा। चर्चा है कि सीनियर मंत्रियों के प्रभार बदले जा सकते हैं। इस बात की संभावना कम है कि किसी नए को कैबिनेट में जगह मिलेगी। यानी विभाग को बदलकर बाबा प्रकरण को सुलझाया जा सकता है। इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश संगठन का बाबा के साथ होना, और डॉ. चरणदास महंत की सद्भावना भी बाबा के प्रति होने की वजह से उन्हें कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा पाना मुश्किल दिख रहा है। फिर भी काफी हद तक सीएम के तेवर पर भी हाईकमान का रुख निर्भर करेगा। जो कि अब तक खुले तौर पर कुछ बोलने से बच रहे हैं।
सरकार का रूझान...
इन दिनों मीडिया पर यह बहस चलती है कि किस विचारधारा की सरकार किस विचारधारा के मीडिया को कितना इश्तहार देती है। कहीं तो विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में ऐसी जानकारी निकल जाती है, तो कहीं सूचना के अधिकार से लोग सरकारी विभाग से ये आंकड़े निकाल पाते हैं। पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने 11 मार्च से 10 मई के बीच दो महीने में जिन टीवी चैनलों को विज्ञापन दिए हैं, उनके आंकड़ों की लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन उसके दो आंकड़ों को ही लेकर देखा जाए, तो भी सरकार की सोच सामने आती है। एनडीटीवी 24-7 को 17 लाख 31 हजार के विज्ञापन दिए गए। और इसी दौर में सुदर्शन न्यूज को 17 लाख 39 हजार रूपये के विज्ञापन दिए गए। अब इन दोनों चैनलों की साख भी सबको मालूम है, और इन आंकड़ों से सरकार का रूझान भी दिखता है।
अब बूस्टर डोज के नाम पर ठगी..
साइबर ठग बिना किसी रिफ्रेशर कोर्स के लगातार खुद को लगातार अपडेट करते रहते हैं। इन दिनों सरकार कोविड वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाने का संदेश लोगों को भेज रही है। ऑनलाइन फ्रॉड में इसे भी भुनाया जा रहा है। लोगों के पास फोन आ रहे हैं। आपने कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिए हैं तो अब बूस्टर डोज लगवाइये। वे फिर आपसे ओटीपी मांगते हैं। ओटीपी बताते ही आपका मोबाइल फोन हैक हो जाता है। उसे ठग ऑपरेट करता है और मोबाइल बैंकिंग के जरिये आपके खाते से रकम पार कर दी जाती है। क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने के लिए झांसा दिया जा रहा है। राजनांदगांव में एक शख्स इस चक्कर में 81 लाख रुपये गंवा चुके हैं।
आपका फोन नंबर पर लकी ड्रा निकला है, यह फंडा थोड़ा पुराना हो गया है। इन दिनों यह कहकर धमकाया जा रहा है कि आपने बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है। जमा कीजिए वरना शाम तक कनेक्शन कट जाएगा। ठगी के मार्केट में ये वाला अभी ज्यादा चलन में हैं, पूरे देश में। अपने छत्तीसगढ़ के कई पढ़े लिखे लोगों को इस झांसे में लाखों रुपए की चपत लग चुकी है। वाहन ऋण के किश्त के भुगतान को लेकर भी धमकी भरे फोन आते हैं।
ठग गिरोहों का अंतरराज्यीय रैकेट है। नोएडा, यूपी, बिहार में तो बकायदा इसके दफ्तर चलाए जा रहे हैं। सरकार अब प्रत्येक सर्विस के लिए फोन नंबर की मांग करती है। जिस तरह चुन-चुनकर लोगों के पास फोन आते हैं। उससे इस आशंका को बल मिलता है हमने सरकार बैंक, फाइनेंस कंपनी, कोविड सेंटर में जो फोन नंबर दे रखे हैं, सोशल मीडिया भी आपका अकाउंट वेरीफाई करने के लिए फोन नंबर दिया है, ये लीक हो रहे हैं और ठगी आसान होती जा रही है।
अब वसूली आत्मानंद स्कूलों में भी?
स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शालाओं में दाखिला पाने के लिए वे लोग कतार में होते हैं जो पब्लिक स्कूलों की महंगी फीस का बोझ उठाने की स्थिति में नहीं हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की यह फ्लैगशिप योजना है। बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार खुद वहन कर रही है। इसके लिए डीएमएफ और दूसरे अलग फंड हैं। इसके बावजूद पालकों से वसूली की शिकायतें आ रही हैं। कुछ दिन पहले जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ का एक वाट्सएप स्क्रीन शॉट सामने आया था जिसमें अभिभावकों से टाई बेल्ट के लिए रुपये मांगे गए थे। अब यह दूसरा मामला भी इसी जिले के मालखरौदा से सामने आया है। यहां की पालक समिति ने पालकों को 600 रुपये का सहयोग? करने के लिए कहा है ताकि शिक्षक और आया की व्यवस्था की जाए। अधिक का भी सहयोग कर सकते हैं यदि आप में क्षमता है। यदि 4-5 सौ बच्चों से यह रकम ली जाती है तो यह राशि ढाई से तीन लाख रुपये हो जाती है। आत्मानंद स्कूलों में तो रिक्त पदों पर भर्ती प्रशासन को ही करना है। यदि शाला विकास समिति के सिर पर इसकी जिम्मेदारी डाली जा रही है और पालकों से वसूली हो रही है तो फिर सामान्य परिवारों का विद्यालय कैसे होगा? निजी पब्लिक स्कूलों और इनमें फर्क नहीं दिखेगा। पत्र से मालूम होता है कि समिति के नाम से कोई खाता नहीं है, एक निजी संयुक्त खाते में रकम जमा होगी। कई स्कूलों से लॉटरी के जरिये प्रवेश देने और शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी की शिकायतें आ ही रही हैं। अब ये नई शिकायतें उत्कृष्ट स्कूलों की उत्कृष्ट व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रही हैं।
बस्तर में रेडी टू ईट का हाल...
बस्तर वह संभाग है जहां कुपोषण की स्थिति ज्यादा गंभीर है। पिछले साल मिले आंकड़े बताते हैं कि यहां पांच साल से छोटे बच्चों में कुपोषण से होने वाली बीमारियों का प्रतिशत 33.9 है। 39.2 प्रतिशत बच्चे कम वजन लेकर पैदा होते हैं। पांच साल से कम के 50 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण या अल्प पोषण के कारण हो जाती है। बस्तर की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए ही यहीं से तीन साल पहले प्रदेशव्यापी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया गया था। कुपोषण दूर करने के लिए बच्चों, माताओं में अब चना और गुड़ वितरित किया जा रहा है। मुनगा का सेवन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पिछले अप्रैल माह में कोंडागांव के दो सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। आयुर्वेद के जरिये कुपोषण दूर करने की आसपास के गांवों में प्रयोग चल रहा है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या में इन अभियानों के चलते 32 प्रतिशत तक गिरावट आई है।
दूसरी ओर रेडी टू ईट योजना का इसी बस्तर में बुरा हाल है। प्रदेश में रेडी टू ईट उत्पादन का काम महिला स्व-सहायता समूहों के हाथ से लेकर कृषि बीज विकास निगम को सौंपने का मामला हाईकोर्ट तक गया था। बीज निगम या कहें, सरकार के पक्ष में फैसला आया था। नई व्यवस्था को लेकर दावा किया गया कि एक जैसी गुणवत्ता का पोषण आहार गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों को दिया जा सकेगा। उत्पादन का ठेका बीज निगम ने निजी कंपनियों को दे रखा है पर वितरण उसे खुद करना है। बीते चार माह के दौरान यह देखने में आ रहा है कि अब तक निगम ने वितरण का कोई सिस्टम नहीं बनाया है। खासकर बस्तर जैसे दूरस्थ इलाकों में स्थिति ज्यादा बिगड़ी हुई है। जुलाई माह में भी 1 लाख 15 हजार हितग्राहियों को ये पैकेट्स दिए जाने हैं, लेकिन यह आंगनबाड़ी केंद्रों में अब तक नहीं पहुंचा है। दरअसल, बीज निगम और महिला बाल विकास विभाग ने प्रयास किया कि स्व-सहायता समूह पैकेट वितरण की जिम्मेदारी ले लें, मगर उन्होंने एक तो उत्पादन हाथ से छीन लिए जाने के कारण, दूसरा परिवहन में लाभ नहीं होने के कारण हाथ खींच रखा है। यह स्थिति कहीं कुपोषण के खिलाफ लड़ाई को धीमी न कर दे।