राजपथ - जनपथ
कहना अभी मुश्किल है...
भाजपा के बड़े कार्यक्रमों में नेताओं के बीच आपसी टकराहट दिख ही जाती है। दो दिन पहले शहर जिला भाजपा के विधानसभा घेराव कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और राजेश मूणत के बीच विवाद की स्थिति निर्मित हो गई थी। हुआ यंू कि कार्यकर्ताओं के विधानसभा जाने से पहले लोधी पारा चौक के पास रोक दिया गया था। तभी बृजमोहन अग्रवाल वहां पहुंचे, और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उन्हें सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने विधानसभा पहुंचना था। उन्होंने कार्यकर्ताओं की औपचारिक गिरफ्तारी, और फिर रिहाई के बाद कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा कर दी। इससे पूर्व मंत्री राजेश मूणत नाराज हो गए, और उन्होंने कह दिया कि वो विधानसभा जाएंगे ही।
मूणत के तेवर देखकर बृजमोहन थोड़े नरम पड़े, और कहा कि मूणत जी विधानसभा जाना चाहते हैं। जिन्हें जाना हैं, वो साथ जा सकते हैं। फिर क्या था, भाजपा कार्यकर्ता दो गुटों में बंट गए। भाजपा का एक धड़ा बृजमोहन के कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा के बाद वहां से निकल गया, लेकिन मूणत और उनके कुछ समर्थक वहां डटे रहे। जिन्हें बाद में पुलिस गिरफ्तार कर ले गई, और फिर बाद में छोड़ दिया गया। यह पहला मौका नहीं है जब नेताओं के बीच आपसी मतभेद सामने आए हैं। पहले भी बड़े नेताओं के बीच इस तरह का विवाद हो चुका है। कुछ लोग मानते हैं कि सौदान सिंह की जगह पर नियुक्त किए गए क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल के आने से गुटबाजी पर लगाम लगेगी। मगर वाकई ऐसा होगा, यह कहना अभी मुश्किल है।
संख्या बल से अधिक प्रभावी
शोर शराबे और हंगामे के बीच विधानसभा का पावस सत्र देर रात खत्म हो गया। सत्र के आखिरी दिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान दो-तीन विधायकों का परफॉरमेंस काफी बेहतर रहा। इन्हीं में एक पहली बार की भाजपा विधायक रंजना साहू ने तथ्यों के साथ सरकार पर तीखे हमले किए।
कई बार उनके भाषण के दौरान शोर-शराबा भी हुआ, लेकिन वो विचलित नहीं हुई। उनके भाषण की सरकार के मंत्री अमरजीत भगत, और सभापति सत्यनारायण शर्मा भी तारीफ किए बिना नहीं रह सके।
रंजना साहू की तरह देवेंद्र यादव और शकुंतला साहू ने भी टोकाटाकी के दौरान आक्रामक रूख दिखाया। इसी उत्तेजना में विपक्षी सदस्यों पर आपत्तिजनक नारे लगाने पर देवेंद्र यादव को खेद भी प्रकट करना पड़ा। बाबा प्रकरण की वजह से पहले दिन से ही सत्ता पक्ष थोड़ी असहज स्थिति में थी। कुल मिलाकर यह पहला सत्र था जब विपक्ष अपनी संख्या बल से अधिक प्रभावी नजर आया।
लाल बत्ती का विकल्प...
पिछले कुछ सालों से नियम बन चुका है कि शोरूम से निकलने के पहले आरटीओ से नंबर अलॉट कराना जरूरी है। इसके बगैर आप गाड़ी सडक़ पर दौड़ा नहीं सकते। मगर यह आम लोगों के लिए है, साहबों के लिए नहीं। इनकी गाड़ी पर कोई नंबर प्लेट नहीं लगाई है। बस खतरनाक लाल रंग की पट्टी के ऊपर चमकीले बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया है- तहसीलदार। तेवर दिखाने के लिए काफी है। नाहक लाल बत्ती बंद करने पर रोक लगाई सरकार ने। जैसा कि फोटो में दिखाई दे रहा है, यह तस्वीर कोटा, बिलासपुर तहसीलदार की नई कार की है।
चकमा देने से चूके नक्सली..
नक्सलियों ने आज से बस्तर में शहीदी सप्ताह मनाना शुरू किया है। वे प्राय: गोरिल्ला वार करते हैं। चकमा देकर सुरक्षा बलों को अपने पास आने का रास्ता बनाते हैं और चारों ओर से घेरकर फायरिंग या ब्लास्टिंग करते हैं। इसके लिए नये-नये तरीके निकाले जाते हैं। यह तस्वीर भी ऐसी ही है। पेड़ पर टिका हुआ नक्सली वास्तव में एक बुत है और जो बंदूक दिखाई दे रहा है वह लकड़ी का है। एकबारगी ऐसा लगेगा कि सचमुच कोई नक्सली हमले के लिए तैयार खड़ा है। बारसूर से पल्ली जाने वाली सडक़ पर सुरक्षा बल के गश्ती दल को यह दिखा और वे सतर्क हो गए। माजरा समझ में आ गया कि यह जाल क्यों बिछाई गई है। नक्सली सप्ताह 3 अगस्त तक चलेगा। तब तक पुलिस व वहां तैनात केंद्रीय बलों को कुछ अधिक सावधान रहने कहा गया है।