राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कार्यकर्ताओं का अस्तित्व खतरे में !
01-Aug-2022 6:10 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कार्यकर्ताओं का अस्तित्व खतरे में !

कार्यकर्ताओं का अस्तित्व खतरे में !

भाजपा हाईकमान नए-नए कार्यक्रम भेजकर कार्यकर्ताओं को चार्ज करने की कोशिश कर रही है, लेकिन बड़ी संख्या में कार्यकर्ता अब भी निराश हैं। विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद पार्टी संगठन में बड़े बदलाव की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा न होने पर विशेषकर दूर दराज इलाकों के भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बना ली है। पिछले दिनों द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुनाव जितने पर बस्तर के सभी मंडलों को कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा गया था। उन्हें पटाखे फोडकऱ और मिठाई बंटवाने के लिए कहा गया था, लेकिन ज्यादातर जगहों पर तो कार्यक्रम ही नहीं हो पाए।

प्रदेश भाजपा के किसान मोर्चा के पदाधिकारी रहे अनूप मसंद ने वॉट्सअप ग्रुप मेंं मैसेज किया कि कार्यकर्ताओं का अस्तित्व खतरे में हैं। शब्दों ने दम तोड़ दिया है। किसी को कोई असर नहीं हो रहा है। सुधार असंभव है। सिर्फ कार्यकर्ता ही कुछ कर पाए। श्रीलंका के समान कार्यकर्ताओं को बागडोर संभालनी पड़ेगी। इन लोगों के सेवन स्टार राजमहल में घुसना बस बाकी रह गया है। जल्द ही वो समय आने वाला है।

एक-एक लाख रुपये लेकर...

कांगे्रस में ब्लॉक अध्यक्षों के चुनाव को लेकर विवाद चल रहा है। दो दिन पहले प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया यहां पहुंचे, तो अलग-अलग इलाकों से पार्टी नेता उनसे मिले, और चुनाव में धांधली की शिकायत की। उन्होंने बताया कि एक-एक लाख रुपये लेकर ब्लॉक अध्यक्षों के नाम तय किए जा रहे हैं, और किसी से चर्चा किए बिना नाम सीधे पीआरओ हुसैन दलवई को दे दिए गए हैं।

बताते हैं कि लेनदेन की शिकायतों को पुनिया ने गंभीरता से लिया, और इस तरह के मामलों को प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम को देखने के लिए कहा है। यही नहीं, आबकारी मंत्री कवासी लखमा भी करीब आधा दर्जन विधायकों के साथ पुनिया से मिलने पहुंचे थे। लखमा के साथ आए विधायकों का कहना था कि ब्लॉक अध्यक्ष विधायकों की पसंद से तय होना चाहिए। पुनिया तैयार नहीं हुए, और कहा कि नियमों के अनुसार चुनाव होते हैं। व्यक्ति विशेष की पसंद को महत्व नहीं दिया जा सकता है।

गरीबों की रसोई इतनी महंगी हो चुकी...

घरेलू गैस, पेट्रोल और डीजल के दाम को लेकर अब तक लोग दुखी और परेशान दिखते हैं।  इसका इस्तेमाल करने वाले वे लोग हैं जिनका मीडिया और सोशल मीडिया से लगातार नाता रहता है। इसलिए इस पर चर्चा हो जाती है। पर, केरोसिन यानि मिट्टी तेल का इस्तेमाल करने वालों के पास न गाडिय़ां हैं न गैस सिलेंडर। इसके लाभार्थी प्राथमिकता कार्ड, अंत्योदय और अन्नपूर्णा या उससे मिलते-जुलने नाम वाले कार्ड के धारक होते हैं।

शहरी और मैदानी इलाकों में एक परिवार को हर माह दो लीटर और अनुसूचित क्षेत्रों में तीन लीटर केरोसिन दिया जाता है। खबर यह है कि इसकी कीमत डीजल से भी करीब 3 रुपये ज्यादा है, करीब 99 रुपये लीटर। लोगों को पहले यह 15-16 रुपये में ही मिल जाता था। गरीबों का चूल्हा जलने का अभी कोई साधन किफायती नहीं। घरेलू गैस करीब 1150 रुपये और लकड़ी 1000 रुपये क्विंवटल। केंद्र सरकार का कहना है कि मिट्टी तेल की डीजल गाडिय़ों के लिए कालाबाजारी की जाती थी, इसलिए सब्सिडी खत्म कर दी गई है। यानि, सिस्टम को सुधारने, कड़ाई बरतने की जगह बोझ गरीबों पर ही डाल दिया गया है। समझ में एक बात नहीं आ रही है कि जब सब्सिडी है ही नहीं तो इसे खुले बाजार में डीजल, पेट्रोल की तरह बिकने के लिए क्यों नहीं दे दिया जाता? अब भी इसे फूड विभाग के कंट्रोल में क्यों रखा गया है? इनकी ऊपरी कमाई घटी है, पर चल रही है, क्योंकि बहुत से परिवारों का काम 2 लीटर महीने में नहीं चलता। अभी भी उन्हें ब्लैक में ही अतिरिक्त खरीदना पड़ रहा है। 

अस्थिर होगी छत्तीसगढ़ सरकार?

झारखंड में कांग्रेस विधायकों के कथित खरीद-फरोख्त की घटना के बाद झारखंड के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने सनसनीखेज आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी अस्थिर करने का खेल चल रहा है। इसकी पूरी जानकारी पार्टी के पास है। हाल के इनकम टैक्स और ईडी के छापों की वजह भी यही है। कांग्रेस विधायकों को आतंकित करने की कोशिश हो रही है। पांडे के इस बयान के बाद बहुत से लोग एक बार फिर इस गुणा-भाग में लग गए हैं कि क्या वाकई छत्तीसगढ़ में सरकार गिराना मुमकिन है? इस समय सदन में कांग्रेस के 71 विधायक हैं। छत्तीसगढ़ के दो छोटे दलों के पांच विधायक बिना कोई सौदा किए सैद्धांतिक असहमति के चलते ही यदि मौजूदा सरकार के किसी विकल्प को समर्थन देने के लिए राजी हो जाते हैं तब भी कांग्रेस के लगभग दो दर्जन विधायकों को तोडऩा होगा, जिसकी संभावना फिलहाल दिख नहीं रही है। बहुत खामोशी से कुछ पक रहा हो तो अलग बात। वैसे फिक्र 2023 के चुनाव परिणामों के बाद की जरूर करनी चाहिए। कई लोगों का आकलन है कि अगली बार भी कांग्रेस के बहुमत की संभावना है, पर सीटों की संख्या घट जाएगी। तब मध्यप्रदेश की तरह तोड़-फोड़ आसान होगी। आखिर बचे ही कितने दिन हैं?

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