राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अब आराम से हो सकेगी तैयारी...
05-Aug-2022 5:33 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अब आराम से हो सकेगी तैयारी...

अब आराम से हो सकेगी तैयारी...

सन् 2023 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव की जो गर्माहट कांग्रेस-भाजपा के नेता नहीं ला पाए, वह आईएएस गोविंद राम चुरेंद्र ने ला दी। उनकी चुनाव लडऩे की चर्चा ने इतनी जोर पकड़ ली कि सरकार के कान खड़े हुए और मिनटों में उन्हें सरगुजा संभागायुक्त के पद से अलग कर मंत्रालय में ज्वाइनिंग देने कहा गया। सन् 2003 बैच के आईएएस चुरेंद्र दिसंबर 2024 में रिटायर होंगे। वे बालोद जिले से आते हैं, जहां उनकी हलबा जनजाति की काफी संख्या है। यदि उनका चुनाव लडऩा हो तो कुछ खोने के लिए नहीं होगा। एक साल पहले वे वीआरएस ले सकते हैं। यानि जोखिम जैसी कोई बात नहीं। अधिकारी चाहते हैं कि 20 साल की नौकरी के बाद ही कोई फैसला करें ताकि चुनाव हारने, टिकट न मिलने की दशा में  ठीक-ठाक पेंशन तो कम से कम मिलती रहे। राज्य व अखिल भारतीय सेवा से आने वाले कई अधिकारियों में विधानसभा चुनाव लडऩे की ललक बनी रहती है। बड़ी पार्टियों में उनका प्रवेश और टिकट मिलना बहुत बार आसान भी हो जाता है, कई बार मुश्किल स्थिति भी खड़ी हो जाती है। पिछले चुनाव में तीन राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी चुनाव लडऩे के इच्छुक थे। इनमें से सिर्फ विभोर सिंह कांग्रेस की टिकट हासिल कर पाए। हालांकि वे तीसरे स्थान पर रहे। डॉ. रेणु जोगी इस चुनाव में विजयी हुईं। आईएएस अवार्ड हो चुके शिशुपाल शौरी ने जब इस्तीफा दिया तो उनका कार्यकाल दो साल बाकी था। वे कांग्रेस से विधायक बन गए। रायपुर कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने त्यागपत्र दिया था। सरकारी सेवा में उनका लंबा कार्यकाल बाकी था। तब उस समय स्व अजीत जोगी ने फैसले का स्वागत करते हुए हिदायत दी थी कि सोच समझकर जोखिम उठाएं। अपना उदाहरण भी दिया था कि जिस दिन कलेक्टर पद से इस्तीफा दिया उसके अगले ही दिन उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकन भरने का मौका मिल गया। इसमें जीत सुनिश्चित थी। खरसिया चुनाव में चौधरी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भाजपा ने उन्हें संगठन में पद दे रखा है। भाजपा में किसी की अगली टिकट का कुछ भी पक्का नहीं। चुरेंद्र को नहीं मिली तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर अगर चौधरी को मिली करारी शिकस्त को देखते हुए अगली बार टिकट नहीं दी गई तो?

सोशल मीडिया पर मनमाफिक तिरंगा

इस बात की आशंका तो थी कि सोशल मीडिया पर तिरंगा की डीपी लगाने की होड़ के कई अलग-अलग नजारे देखने को मिलेंगे, जिन पर विवाद उठ सकते हैं। प्रोफाइल पर डीपी लगाने की जगह गोलाकार होती है। यदि वह गोलाई पूरी तरह भरी जाएगी, तो तिरंगा गोल ही दिखेगा। इधर छत्तीसगढ़ के रोजगार सहायकों ने तो सोशल मीडिया के केसरिया और हरे वाले हिस्से पर अपनी मांगों को ही लिखकर पोस्ट डाल दी है। कुछ पोस्ट ऐसे चल रहे हैं, जिसमें चेतावनी दी जा रही है कि फ्लैग के लिए जो कोड बने हैं, उसका पालन करें। तिरंगे पर कुछ भी न लिखें। तस्वीर भले ही छोटी करनी पड़े पर वह आयताकार ही प्रदर्शित की जानी चाहिए। फ्लैग कोड के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान होने की चेतावनी भी दी जा रही है। एक दूसरा अभिमत यह भी कि झंडा संहिता का पालन तो केवल ध्वज फहराने के दौरान करना है। उसकी इमेज का इस्तेमाल करने के दौरान जरूरी नहीं।

इस 15 अगस्त को कौन सी घोषणा?

प्रदेश के भानुप्रतापपुर, कांकेर इलाके में इस समय जिला बनाने के लिए आंदोलन चल रहा है। संघर्ष समिति ने कल स्टेट हाइवे को जाम कर प्रदर्शन किया। समिति यह धरना प्रदर्शन 15 अगस्त तक जारी रखने का इरादा रखती है। 15 अगस्त तारीख इसलिए खास है क्योंकि इस दिन मौजूदा सरकार से महत्वपूर्ण, बड़ी घोषणाओं की उम्मीद की जाने लगी है। इसी तारीख को मुख्यमंत्री ने गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की घोषणा सन् 2019 में की थी। सन् 2021 में भी चार नए जिले मोहला-मानपुर, सक्ती, सारंगढ़-बिलाईगढ़ और मनेंद्रगढ़ बनाने की घोषणा हुई। नये जिलों के गठन के मामले में मुख्यमंत्री ने अब तक उदारता ही दिखाई है। उपचुनाव जीतने के बाद खैरागढ़ को जिले का दर्जा दे दिया गया। अब और कई जिलों की मांगें सामने आती जा रही है। भानुप्रतापपुर के लिए आंदोलनरत नागरिकों का कहना है कि वे 12 साल से मांग करते आ रहे हैं। यहां रेल लाइन है, सडक़ है जो सब तरफ से जुड़ा हुआ है। माइंस और व्यापारिक गतिविधियां भी हैं। कई जिला स्तरीय कार्यालय पहले से भानुप्रतापपुर में हैं।  विधायक मनोज मंडावी का आंदोलन को साथ मिल रहा है। वे जिला बनाने की मांग लेकर सीएम से चर्चा भी कर चुके हैं। अब 15 अगस्त को सीएम के पिटारे से क्या निकलेगा, यह देखना होगा।

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