राजपथ - जनपथ
कभी भी अकेले में मिल सकते हैं...
सौदान सिंह के उत्तराधिकारी अजय जामवाल ने मोर्चा संभाल लिया है। वे विनम्र, और मिलनसार माने जाते हैं। जामवाल ने प्रदेश में भाजपा की कमजोर स्थिति को भांप लिया है। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में पहल शुरू कर दी है। वैसे तो जामवाल के पास मध्यप्रदेश का प्रभार भी है। लेकिन उन्होंने खुले तौर पर कह दिया है कि वो ज्यादातर समय छत्तीसगढ़ में ही रहेंगे। सांसदों, और पदाधिकारियों की अलग-अलग बैठक में जामवाल ने यह भी कहा कि वो कभी भी उनसे अकेले में मिल सकते हैं, और अपनी बात रख सकते हैं।
जामवाल ने भरोसा दिलाया है कि उनकी कही हुई बातें गोपनीय रहेगी। उनके कथन से पार्टी में उपेक्षित, और हाशिए पर चल रहे नेताओं को उम्मीद जगी है, और शिकवा-शिकायतों का पुलिंदा तैयार कर रहे हैं। जामवाल की सक्रियता से दिग्गज परेशान भी दिख रहे हैं। शुक्रवार को उनके दिल्ली दौरे के बीच हल्ला उड़ा कि प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय अथवा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक में से किसी एक को बदला जा सकता है।
जामवाल ने दिल्ली में रेणुका सिंह के निवास पर सांसदों को चर्चा के लिए बुलाया था। सुनते हैं कि रेणुका सिंह को खुद नहीं मालूम था कि बैठक का एजेंडा क्या है? वो खुद पार्टी के कई दूसरे नेताओं से इस पर पूछताछ करती रहीं। इससे परे भाजपा के सीनियर विधायक नारायण चंदेल भी दिल्ली में थे। यह भी चर्चा रही कि चंदेल को कोई अहम दायित्व मिल सकता है। पार्टी के कई नेता उनसे पूछताछ करते रहे। चंदेल ने सफाई दी कि वो केंद्रीय रेलमंत्री से मिलने आए हैं, उनका और कोई दूसरा एजेंडा नहीं है। बाद में रेणुका निवास में हुई बैठक में जामवाल ने स्पष्ट किया कि वो सिर्फ सांसदों से रायशुमारी करने के लिए आए हैं। चुनाव में 14 महीने बाकी रह गए हैं, ऐसे में उन्हें पूरी ताकत से अपने क्षेत्र में जुटना होगा। कुल मिलाकर जामवाल के दौरे से पार्टी में खदबदाहट मची रही।
कुर्सी ही ऐसी है...
सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार एक बार फिर सुर्खियों में है। कहा जा रहा है कि उन्होंने खुद के कार्यों का प्रचार कम होने पर जिले के जनसंपर्क अफसरों को खूब लताड़ लगाई। उन्होंने कथित तौर पर यह भी कह दिया कि तुम लोग सिर्फ सीएम का प्रचार करते हो, और मेरे खिलाफ साजिश रचते हो। कुंदन कुमार के व्यवहार से जनसंपर्क अफसर नाराज हैं, और उन्होंने मोर्चा खोल दिया है। इसको लेकर जनसंपर्क अफसरों के संगठन की बैठक भी चल रही है। कुंदन कुमार जब बलरामपुर-रामानुजगंज कलेक्टर थे तब भी इससे मिलती-जुलती शिकायत आई थी। चर्चा है कि उस वक्त उन्होंने सरकारी बंगले पर काम करने वाले एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से किसी बात पर नाराज होकर काफी कुछ कह दिया था। तब भी जिले के कर्मचारी उनके खिलाफ हो गए थे, लेकिन कुछ घंटों के भीतर उन्होंने सुलह-सफाई कर मामले को बढऩे से बचा लिया था। मगर जनसंपर्क अफसरों के संगठन को काफी ताकतवर माना जाता है। अब देखना है कि कुंदन कुमार इससे कैसे निपटते हैं।
माओवादी रैली का इशारा...
बीजापुर-सुकमा जिले के दुर्गम इलाकों में माओवादियों ने अपनी ताकत दिखाई। इस ताकत को मीडिया के सामने वे लेकर आए। मकसद शायद यह रहा हो कि मुख्यधारा में उनकी स्वीकार्यता बढ़े, सहानुभूति पैदा हो। साथ ही, सरकार इस के दावे को झुठलाने में मदद मिले कि उनकी ताकत घट रही है। रैली में शामिल लोगों से बातचीत शायद किसी की नहीं हो पाई। ऐसा उनके सुप्रीम कमांडरों की ओर से निर्देश रहा होगा। पर कवरेज का पूरा मौका दिया गया। दावा किया जा रहा है कि उनके शहीदी सप्ताह के आखिरी दिन करीब 10 हजार लोग शामिल हुए। इसके कई वीडियो और फोटोग्रॉफ्स सामने आ गए हैं। हथियारबंद टीम ने तो चेहरों को ढंक रखा है, पर बाकी ग्रामीणों ने नहीं। अब आने वाले दिनों में सुरक्षा बल इन चेहरों की पहचान कर इन्हें नक्सलियों का मददगार बताने लगे तो फिर टकराव की नौबत आएगी। सीधी सी बात है कि प्रशासन की पहुंच वहां तक नहीं, जहां तक माओवादी पहुंच चुके हैं। प्रशासन की पहुंच हो भी गई हो तो विश्वास हासिल करने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी। जो ग्रामीण शामिल हुए, उनसे माओवादी सहज संपर्क में हैं, उनके इशारों पर चल रहे हैं- उनकी बातों को सही मान रहे हैं। ग्रामीण मन से जाएं या मजबूरी से..रैलियों में इतनी बड़ी संख्या में दिखना हैरान करने वाली बात तो है नहीं।