राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एडीजी पहुंचे भाजपा मुख्यालय
08-Aug-2022 5:33 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : एडीजी पहुंचे भाजपा मुख्यालय

एडीजी पहुंचे भाजपा मुख्यालय

विधानसभा चुनाव में 14 महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में प्रमुख दलों के नेताओं को बिना मांगे सलाह मिलने लगी है। सरकार से असंतुष्ट कई अफसर भी अब सलाहकार की भूमिका में आ गए हैं। पिछले दिनों  एक एडीजी रैंक के आईपीएस अफसर दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में भी देखे गए।

सुनते हैं कि आईपीएस अफसर की पार्टी की महिला नेत्री के साथ करीब पौन घंटे चर्चा हुई है। महिला नेत्री छत्तीसगढ़ में पार्टी संगठन का काम भी देख रही हैं। ऐसे में दोनों के बीच मुलाकात की काफी चर्चा है। कहा जा रहा है कि आईपीएस अफसर जिलेवार राजनीतिक समीकरण की जानकारी जुटाकर ले गए थे। मास्क, और अन्य सावधानी बरतने के बाद भी इस गोपनीय बैठक की चर्चा कई लोगों तक पहुंच ही गई।

मरकाम जमीन विवाद में

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम देर सवेर जमीन खरीदी-बिक्री विवादों से घिर सकते हैं। मरकाम के खिलाफ उनके अपने विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव में निर्माणाधीन कॉलोनी की जमीन में गलत तरीके से बेचने का आरोप लगा है। कुछ लोगों ने इसकी शिकायत कलेक्टर से की है।

मरकाम की कॉलोनी के जमीन लफड़े में सीधी भूमिका है अथवा नहीं, यह तो अब तक साफ नहीं हो पाया है, लेकिन शिकायतकर्ताओं का दावा है कि मरकाम ने जमीन गैर आदिवासियों को बेची है, और इसके लिए जरूरी परमिशन भी नहीं ली है। सुनते हैं कि कलेक्टर ने शिकायत के बाद जानकारी बुलाई है। पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि यदि थोड़ी बहुत भी अनियमितता पाई गई, तो मरकाम की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दोबारा ताजपोशी में दिक्कत आ सकती है। फिलहाल तो कलेक्टर की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।

प्रचार की लालसा सिर्फ नेताओं में नहीं...

किसी आईएएस के करियर का सबसे सुनहरा दौर होता है, जब वह कलेक्टर का ओहदा संभालते हैं। वैसे ही जैसे आईपीएस के लिए पुलिस कप्तान का होना सबसे बढिय़ा वक्त होता है। इसके बाद तो प्रमोशन मिलता रहता है, वेतन बढ़ता रहता है। मुख्य सचिव या डीजीपी तक पहुंचने का अवसर तो बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है। राजनीति में आने के लिए जब राजधानी कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने इस्तीफा दिया, तब कहा था कि कलेक्टर के बाद करने के लिए रह क्या जाता है? कई आईएएस जब कलेक्टरी संभाल रहे होते हैं तो जिले के राजा की तरह बर्ताव करते हैं। फरियादी बड़े उम्मीद के साथ उनके पास पहुंचते हैं। पूरे जिले के अधिकारी उनके नियंत्रण में होते हैं। कभी निरीक्षण तो कभी बैठक के दौरान इनको ऐसी डांट पिलाते हैं कि उनको पसीना आने लगता है।

हाल के दिनों में तो कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जब कलेक्टर पर विधायकों और जनप्रतिनिधियों ने सीधे आरोप लगाया कि वे फोन नहीं उठाते, सरकारी कार्यक्रमों में बुलाते नहीं। बताया हुआ काम तो खैर करते ही नहीं। कलेक्टर अपनी छवि बनाने के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य, आवागमन जैसी आम जनता के सरोकार वाली कोई योजना हाथ में लेते हैं और अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। शोर ऐसा होता है कि यह काम इतिहास में दर्ज किया जाएगा। बाद में पता चलता है कि इस तरह के कैंपेन के लिए किस-किस तरह से सरकारी फंड फूंक दिए गए। प्रदेश में पौधारोपण के दो बड़े अभियान चले थे। एक कवर्धा में,  उसके कुछ साल बाद  बिलासपुर में। लाखों पौधे रोपे गए। जिले के मुखिया के आदेश पर सारा महकमा अभियान सफल बनाने में लग गया। सामाजिक संगठन जुड़ गए। रोज तस्वीरें, खूब वाहवाही। बिलासपुर में तो डीएमएफ की अच्छी-खासी रकम डुबा दी गई। आज उन पौधों के ठूंठ भी नहीं दिखते।

इन अफसरों की चाहत सिर्फ जिले के नागरिकों तक अपनी इमेज बनाने की नहीं होती, राजधानी तक भी सीमित नहीं होती- बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आना चाहते हैं। कई सुने-अनसुने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से उन्हें अवार्ड, सर्टिफिकेट मिलता रहता है। जनता से संपर्क चाहे जैसा हो पर प्रचार का रोग कई बार ऊपर बैठे लोगों की नजर में चढ़ जाता है।

एक आईएएस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिला कोई अवार्ड लेने के लिए विदेश यात्रा करनी थी। तब के सीएम डॉ. रमन सिंह ने उन्हें जाने की अनुमति यह कहते हुए नहीं दी कि अफसर तो सरकार के लिए काम करते हैं, खुद के लिए नहीं, अच्छा काम किया है तो शाबाशी भी हम ही देंगे। बीते साल एक कलेक्टर की फोटो रोजाना, अखबार और सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर दिखने लगे। खबरों में कहीं भी सरकार या सीएम का जिक्र ही नहीं। मंत्रालय में उनकी रिपोर्ट पहुंची। फोन पर ही फटकार लगाई गई, फिर एक नेता भी रायपुर से पहुंचे। अगले ही दिन से साहब ने खुद को सुधार लिया। फिर जब खबरें बनने लगीं, उनसे पता चलने लगा कि कार्यक्रम सरकार की योजनाओं का हिस्सा है, कलेक्टर सिर्फ उसे लागू करा रहे हैं।

उपरोक्त घटनाएं इसलिए जेहन में आईं क्योंकि सरगुजा जिले के जनसंपर्क अधिकारियों ने वहां के कलेक्टर कुंदन कुमार पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। अधिकारी संघ ने इसके समर्थन में जो बयान जारी किया है उसमें एक आरोप यह भी है कि कलेक्टर अपना प्रचार-प्रसार करने के लिए दबाव बनाते हैं, जबकि हमारा काम सरकारी योजना और मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर खबरें लिखना है। कलेक्टर और जनसंपर्क अधिकारियों के बीच टकराव की खबर हाल के दिनों में पहली बार सामने आई है, क्योंकि खबर बनाने वाले लोग खुद खबर बनने से परहेज करते हैं। कलेक्टर का कहना है कि उन्होंने दुव्र्यवहार नहीं किया, सामान्य समझाइश दी है। देखें, इस विवाद का हल कैसे निकलेगा?

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