राजपथ - जनपथ
नियुक्ति से ज्यादा हटाने की चर्चा
आखिरकार बिलासपुर सांसद अरूण साव को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी गई। विष्णुदेव साय का हटना तो तय था, लेकिन उन्हें हटाने के लिए जो दिन चुना गया वह पार्टी के लोगों को झटका देने जैसा साबित हुआ। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष को हटाने पर पार्टी के भीतर नाराजगी देखी गई।
देश-प्रदेश में भाजपा में कोई बड़ी नियुक्तियां होती है, अथवा किसी राज्य में पार्टी-गठबंधन की सरकार बनती हैं, तो कम से कम 8-10 छोटे-बड़े नेता ऐसे हैं जो पार्टी दफ्तर एकात्म परिसर में जाकर मिठाई बांटकर खुशियां मनाते हैं। मगर अरूण साव की नियुक्ति पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। पार्टी के नेताओं ने खामोशी ओढ़ ली थी। और जब सीएम भूपेश बघेल की प्रतिक्रिया आई, तब कहीं जाकर भाजपा नेता सक्रिय हुए। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह, और अजय चंद्राकर ने ट्विटर पर अरूण साव को बधाई दी।
आदिवासी दिवस पर प्रदेश में कई जगहों पर आदिवासी समाज की रैली निकल रही थी। तकरीबन सभी जगहों पर साय को हटाने की चर्चा होती रही। सुनते हैं कि आदिवासी नेताओं-कार्यकर्ताओं की नाराजगी को भांपते हुए भाजपा के रणनीतिकारों ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू की, और सोशल मीडिया में खबर चलवाई कि विष्णुदेव साय को अनुसूचित जनजाति आयोग में अहम जिम्मेदारी दी जा रही है।
पार्टी के कुछ आदिवासी नेता दबी जुबान में सवाल उठा रहे हैं कि यदि ऐसा है, तो आदिवासी दिवस के दिन नियुक्ति आदेश जारी होना चाहिए था। इससे एक अच्छा संदेश भी जाता। पिछले 22 साल में भाजपा दर्जनभर अध्यक्ष बदल चुकी है, ज्यादातर तो अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। मगर इस बार साव की नियुक्ति से ज्यादा साय के हटाने की चर्चा हो रही है।
निष्ठा का ईनाम जरूर मिलेगा
चर्चा है कि आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को कोई अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। वजह यह है कि वो हाईकमान के पसंदीदा हैं। साय को हाईकमान ने संकेत भी दिए हैं कि उनका ध्यान रखा जाएगा।
बहुत कम लोगों को जानकारी है कि लोकसभा चुनाव में प्रदेश के सभी सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरों को टिकट दी गई थी, उस पर सबसे पहले रजामंदी विष्णुदेव साय ने दी थी। हुआ यूं कि प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा के लिए अमित शाह के घर में बैठक हुई थी। इसमें रमन सिंह, तत्कालीन प्रदेश प्रभारी डॉ. अनिल जैन, सौदान सिंह, पवन साय, और केंद्रीय मंत्री के रूप में विष्णुदेव साय भी थे।
सुनते हैं कि अमित शाह ने बैठक में दिल्ली के नगर निगम और एक-दो अन्य जगहों पर सारी टिकट बदलने के प्रयोग के बारे में बताया था, और कहा कि इसके अच्छे नतीजे आए थे। चंूकि विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। ऐसे में निवर्तमान सांसदों की जगह नए चेहरों को उतरना फायदेमंद रहेगा, बाकी सब तो चुप रहे, लेकिन विष्णुदेव साय ने कहा कि भाई साहब अच्छा विचार है नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है।
ये जानते हुए कि इस फ़ॉर्मूले से साय की खुद की टिकट कट सकती है, अमित शाह के रूख पर सहमति जताई और आखिरकार साय समेत सभी सांसदों की टिकट काटकर नए को मौका दिया गया। नतीजे अच्छे आए। विष्णुदेव साय हाईकमान की नजर में आ गए। और फिर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया। ये अलग बात है कि डेढ़ साल के भीतर उन्हें हटा दिया गया। मगर उन्हें पार्टी के प्रति निष्ठा का ईनाम जरूर मिलेगा, ऐसा पार्टी के प्रमुख लोगों का मानना है।
उफनती नदी को चीरते जवान...
बस्तर के कई हिस्सों में लगातार बारिश के बीच सुरक्षा बल के जवानों के सामने भी मोर्चे पर तैनात रहने के लिए चुनौती सामने आ रही है। तेज बहाव के बीच उन्हें नदी कैसे पार करनी है, यह उन्होंने सीखा है। इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि उनका प्रशिक्षण काम आ रहा है।
पूरक छात्रों की टेंशन बढ़ी
रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर ने पूरक परीक्षाओं का टाइम टेबल जारी कर दिया है, जो 25 अगस्त से शुरू हो रही है। मुख्य परीक्षा ऑनलाइन रखी गई थी, जिसमें प्रश्न हल करने के लिए कई तरह की रियायत मिली। कुछ छात्रों को इसके बावजूद सफलता नहीं मिली। पर अब संकट यह है कि पूरक परीक्षाएं ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन होगी। यानि परीक्षा केंद्रों में बैठकर जवाब लिखना होगा। विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि कोविड-19 का वैसा असर इस समय नहीं है जैसा बीते 3 साल की परीक्षाओं के दौरान था, जो ऑनलाइन ली गईं। पूरक छात्रों की संख्या भी कम होती है। इसलिये कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ऑफलाइन एग्ज़ाम लेने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर, दिक्कत तो परीक्षा देने वाले छात्र महसूस कर रहे हैं। जवाब देखने के लिए किताबें उलटने-पलटने का मौका नहीं मिलेगा। ऑफलाइन तरीका तो उस ऑनलाइन से भी कठिन ही होगा, जिसमें वे पास होने के लायक नंबर नहीं ला पाए थे। पास होने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।