राजपथ - जनपथ
वेतन कटौती की चिंता न करें...
महंगाई भत्ता का भुगतान केंद्र सरकार के बराबर करने की मांग को लेकर पिछले माह अधिकारियों, कर्मचारियों के फेडरेशन की हड़ताल के बाद भी सुलह नहीं हुई है। मुख्यमंत्री से कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों की बातचीत विफल रही। सरकार कुछ आगे बढ़ी पर कर्मचारी केंद्र सरकार के बराबर भत्ते की ही मांग कर रहे हैं। पिछले माह ठीक हरेली उत्सव के दौरान यह हड़ताल हुई थी। घोषित 5 दिनों के लिए ही हड़ताल थी लेकिन 9 से 11 दिन तक दफ्तरों में काम बंद रहा। इस अगस्त में पर्व त्योहारों के चलते कई छुट्टियां हो चुकी हैं। आगे भी होनी है। इसी समय को चुनकर 22 अगस्त से फेडरेशन ने फिर हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है। इस बार बात अनिश्चितकालीन हड़ताल की है। हड़ताल में यदि पिछली बार की तरह भृत्य से लेकर द्वितीय श्रेणी तक के अधिकारी शामिल होते हैं तो विभाग प्रमुख दफ्तर पहुंचकर भी खाली बैठे रहेंगे। यानि फिर कामकाज ठप। शासन ने पिछले 5 दिन की हड़ताल का वेतन काटने का निर्देश दिया था। संगठनों ने मांग की थी कि इसे छुट्टियों में समायोजित किया जाए। सरकार की तरफ से आश्वस्त तो किया गया पर लिखित आदेश अब तक नहीं निकला है। संगठन इस बात पर आशंकित तो हैं कि फिर काम बंद करने से उन पांच दिनों को छुट्टियों में शामिल कराना मुश्किल हो सकता है। इसके चलते कई कर्मचारी प्रस्तावित आंदोलन से दूर रहने के बारे में सोच रहे हैं। बेमियादी हड़ताल में तो पूरे एक महीने का वेतन भी रुक जाने का खतरा मंडरा सकता है। इसलिये संगठन की ओर से कहा जा रहा है कि यदि 5 दिन की वेतन कटौती से डरकर आंदोलन में भाग नहीं लेंगे तो भविष्य में आपको महंगाई भत्ते के बड़े लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। कर्मचारी-अधिकारियों की तादात इतनी है कि उन्हें जनता से या राजनीतिक दलों से अपने आंदोलन में समर्थन की जरूरत नहीं पड़ती। वे यह भी नहीं देखते कि आम लोगों की ज्यादा वेतन भुगतान की मांग को लेकर हो रही हड़ताल को लेकर क्या राय है।
शराबबंदी के लिए दिल्ली कूच...
एक तरफ तिरंगा यात्रा निकल रही है, दूसरी ओर महात्मा गांधी के वेश में एक युवक सडक़ पर पैदल बढ़ा जा रहा है। यह युवक है बिलासपुर का सचिन सिंघानी। वे सार्वजनिक सभाओं में अक्सर गांधी की तरह वेशभूषा में पहुंचते हैं और मौका मिलने पर अपनी बात कहते हैं। एकमात्र उद्देश्य है नशा मुक्ति और विशेषकर शराबबंदी को लेकर जागरूकता लाना। इसी मांग को लेकर उन्होंने दिल्ली तक की पदयात्रा बीते दिनों शुरू की है। दिल्ली यानि 1100 किलोमीटर से भी अधिक का पैदल सफर। यदि एक दिन में औसतन 10 किलोमीटर भी चलते हैं तो सफर तीन माह से अधिक का होगा।
कितने फीसदी पुरुष किचन में
फोर्ब्स मैगजीन ने दुनिया के सबसे अमीर 60-65 लोगों पर सर्वे करके बताया है कि उन्हें घर का काम करना अच्छा लगता है। बिल गेट्स को डिनर के बाद घर में बर्तन साफ करना अच्छा लगता है। कुछ अमीर लोगों को घर का कचरा बाहर जाकर डस्ट बिन में डालना, कुछ को कपड़े धोना पसंद है। सर्वे के अनुसार ऐसा वे दो कारणों से करते हैं। एक तो बच्चों को सिखाने के लिए कि पैसे के चलते उनमें घमंड न आ जाए, दूसरा ऐसा करके वे परिवार से खुद को करीब महसूस कर सकें। इधर आज कुछ अखबारों में किचन का सामान बनाने वाली एक कंपनी का विज्ञापन छपा है। किसी सर्वे का हवाला देते हुए उसका दावा है कि 94 प्रतिशत पुरुषों का किचन के कामकाज में कोई योगदान नहीं होता। यह सच भी हो सकता है और नहीं भी। पर किचन के भीतर के कामों का अलग-अलग विभाजन करते हुए भी सर्वे होना चाहिए। जैसे पुरुष क्या अपनी पसंद का डिश या जूस बनाने में ही रुचि लेते हैं या रसोई के फैले हुए सामान को समेटने में। बर्तन साफ करने में मदद करते हैं या पत्नी के सिर पर डालकर खिसक जाते हैं। कई पुरुष तो रसोई में सिर्फ इसलिये हैं कि क्या पक रहा है देख लें और पकते-पकते चख लें। फिर भी यह 6 प्रतिशत का आंकड़ा यकीन करने लायक नहीं है। बड़े-बड़े लोग बर्तन धो रहे हैं, कचरा निकाल रहे हैं। आप अपना ही उदाहरण सामने रखकर देखिये।