राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : विधायक खोल रहे कॉलेज
18-Aug-2022 5:30 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : विधायक खोल रहे कॉलेज

विधायक खोल रहे कॉलेज

खबर है कि आदिवासी इलाके के एक विधायक शिक्षा के क्षेत्र में खूब निवेश कर रहे हैं। विधायक को तीन दिन में नर्सिंग कॉलेज खोलने का परमिशन भी मिल गई। वो फॉर्मेसी कॉलेज भी खोल रहे हैं। विधायक ने 12 एकड़ सरकारी जमीन भी आबंटित करवा ली है, और अब अपने जिले में खुद की यूनिवर्सिटी खोलने के योजना है। महाराष्ट्र में तो तकरीबन सभी बड़े नेताओं ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी निवेश किया है, उनका अपना खुद का शैक्षणिक संस्थान है। अब छत्तीसगढ़ के नेता भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। बिलासपुर संभाग के एक पूर्व मंत्री का अपने पुराने समर्थक से झगड़ा सिर्फ इसलिए चल रहा है कि समर्थक ने अपने चिकित्सा शिक्षा संस्थान में उन्हें हिस्सेदारी नहीं दी। फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश के अपने फायदे हैं। दूसरे क्षेत्र के बजाए शिक्षा में निवेश का जोखिम कम होता है। यही वजह है कि जन प्रतिनिधियों का रूझान अब शिक्षा की ओर बढ़ रहा है।

अरविंद नेताम का क्या होगा? 

कांग्रेस के आदिवासी नेताओं ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और उन्हें पार्टी के बाहर करने की मांग हो रही है। नेताम विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में आए थे। प्रदेश में सरकार बनने के बाद कुछ विषयों पर नेताम की राय पार्टी लाइन से अलग रही। इसके बाद पार्टी के भीतर उनकी पूछ परख कम होती चली गई। नेताम ने सोहन पोटाई के सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है।

पिछले दिनों आदिवासी दिवस पर बालोद जिले में कार्यक्रम हुआ। जिसमें नेताम और पोटाई ने अलग-अलग विषयों को लेकर सरकार को जमकर कोसा। इसके बाद सरकार की महिला मंत्री, और कुछ अन्य विधायकों ने अलग-अलग जगहों पर नेताम की शिकायत की है। उनका कहना है कि नेताम आदिवासियों को बरगलाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें तत्काल पार्टी से बाहर निकाला जाना चाहिए। अब पार्टी से बाहर निकालने से नेताम को कुछ फर्क पड़ेगा, इसकी संभावना कम है। वो पहले भी कई बार कांग्रेस से बाहर जा चुके हैं। अलबत्ता, पार्टी से बाहर जाने के बाद सरकार के खिलाफ थोड़े ज्यादा मुखर हो सकते हैं।

बद अच्छा बदनाम बुरा...

रेलवे ने कोविड काल के दौरान बढ़ा किराया अब तक नहीं घटाया। रियायतें पूरी तरह बंद की जा चुकी है। यात्री ट्रेनों को दबाव में दोबारा पटरी पर लाने की कवायद की गई है पर अधिकांश घंटों देर से चल रही हैं। स्टेशनों और ट्रेन रूट बेचने की पॉलिसी लाई गई, पर उसमें ज्यादा सफलता अभी नहीं मिल पाई है। अब रेलवे लोक कल्याणकारी सरकारी उपक्रम की जगह किसी मुनाफाखोर व्यापारी की तरह है। इसीलिये जब यह ख़बर कल चली कि एक साल के बच्चे का भी पूरा किराया लिया जाएगा तो लोगों ने यकीन करने में जरा भी देर नहीं लगाई। जैसा आजकल होता है, कॉपी पेस्ट कर दर्जनों वेबसाइट्स में यह समाचार फैल गया। देश में सबसे ज्यादा बिकने का दावा करने  वाले अखबार के डिजिटल एडिशन से यह शुरू हुआ था। आज सुबह देखें तो शायद ही किसी अखबार ने इस खबर को लिया हो। इसीलिए प्रिंट पर लोगों का भरोसा वेब पोर्टल और टीवी जैसे दूसरे माध्यमों से अधिक है।

किसी यात्री ने ऑनलाइन रेलवे टिकट कटाया, उसमें एक वर्ष के बच्चे का भी पूरा किराया ले लिया गया। यह खबर चली कि अब रेलवे पांच साल से छोटे बच्चों का भी किराया वसूल करने लग गई है। खबर की पड़ताल करने से मालूम होता है कि रेलवे ने गुपचुप तरीके से कोई पॉलिसी नहीं बदली है। एक कॉलम होता है सफर करने वाले यात्रियों का। इसमें वही नाम डाला जाए जिनकी उम्र पांच साल से ऊपर हो और बर्थ लिया जाना है। इसी के नीचे विकल्प है कि आप चार साल तक के बच्चे का नाम लिखें। यदि इनके लिए बर्थ नहीं चाहिए तो रेल टिकट पर किराया नहीं जुड़ता, लेकिन बर्थ चाहिए तो पूरा किराया देना होगा। यह पॉलिसी पहले से ही है। जाने-अनजाने यात्री ने एक साल के बच्चे का नाम प्रारंभिक सूची में डाल दिया और कम्प्यूटर से चलने वाले रिजर्वेशन फॉर्म ने पूरा किराया मांग लिया। कम्प्यूटर के पास दिमाग तो है, पर इसका यह मतलब नहीं कि मनुष्य अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दें। रेलवे को भी सोचना चाहिए कि उसकी साख कितनी पिट चुकी है कि लोग उससे संबंधित भ्रामक समाचारों पर भी कितनी जल्दी यकीन कर लेते हैं। 

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