राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अच्छे की अधिक चर्चा नहीं होती
22-Aug-2022 6:46 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : अच्छे की अधिक चर्चा नहीं होती

अच्छे की अधिक चर्चा नहीं होती

सरकार में गड़बड़-घोटालों की चर्चा सुर्खियां बटोरती है। लेकिन कई बेहतर कामों की चर्चा नहीं हो पाती है। जबकि इन कार्यों की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। इन्हीं में से एक धान खरीदी भी था। प्रदेश में पिछले खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा करीब 98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी हुई। समय पर धान का उठाव, और मिलिंग का काम चुनौतीपूर्ण था। मगर खाद्य सचिव टोपेश्वर वर्मा, और मार्कफ़ेड एमडी किरण कौशल ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को खामोशी से बेहतर ढंग से कर दिखाया।

सीएम की इस पर पूरी नजर थी, और सीएस लगातार मॉनिटरिंग कर रहे थे। पहली बार ऐसा हुआ, जब बारिश शुरू होने से पहले सारे धान का उठाव हो गया। जबकि इससे पहले के सालों में समय पर उठाव न होने के कारण हजारों टन धान भीगने के कारण खराब हो जाता था। मिलिंग के लिए धान का उठाव का काम महीनों तक चलता था। सैकड़ों करोड़ का नुकसान होता आया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सारे धान का उठाव तो हो ही गया है, और करीब साढ़े 56 लाख टन चावल एफसीआई व नागरिक आपूर्ति निगम में जमा किया जा चुका है। बाकी धान की मिलिंग के लिए सितंबर तक समय है, जो कि आसानी से हो जाएगा। ऐसे में बेहतर कार्य के लिए अफ़सरों की तारीफ तो बनती ही है।

चलो, कोई तो बाहरी सांसद...

वैसे तो कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्य केटीएस तुलसी, राजीव शुक्ला, और रंजीत रंजन बाहर के हैं। तुलसी, और राजीव शुक्ला की अब तक की कार्यप्रणाली ऐसी दिखती है कि उन्हें छत्तीसगढ़ से कोई लेना-देना नहीं है। मगर बिहारवासी महिला नेत्री रंजीत रंजन थोड़ी अलग दिख रही हैं। रंजीत रंजन रायपुर आई हैं, और उन्होंने रविवार को मीडिया के लोगों को एक होटल में रात्रि भोज पर आमंत्रित किया।

रंजीत रंजन के साथ कांग्रेस के स्थानीय नेता भी थे। उन्होंने अनौपचारिक चर्चा में कहा कि वो राज्य के मुद्दों को सदन में पूरी दमदारी से उठाएंगी। महंगाई आदि को लेकर काफी मुखर भी रही हैं। कम समय में वो स्थानीय नेताओं से घुल मिल गई हैं। ऐसे में नेताओं को उनका बाहरी होना अब बुरा नहीं लग रहा है।

कर्मचारियों के हाथ में औजार...

केंद्र व राज्य के अधिकारियों के पास गोपनीय चरित्रावली लिखना एक ऐसा हथियार होता है जिसमें वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को प्रताडि़त और भयभीत करके रख सकता है। चूंकि प्लेसमेंट, पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति, प्रशिक्षण और कुल मिलाकर करियर में यह रिपोर्ट बहुत मायने रखती है, कर्मचारी अधिकारियों से सहमे रहते हैं। यह व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। यह जरूर है कि प्रतिकूल टिप्पणियों में अधिकारियों को कारण का उल्लेख करना होता है। अधिकारी भी अधिक झंझट से बचने के लिए बी ग्रेड में लाकर रख देते हैं। यानि, न बहुत अच्छा न बहुत बुरा परफार्मेंस। मुख्यालयों में जहां कर्मचारी, अपने सीआर लिखने वाले अधिकारी के साथ एक ही दफ्तर में काम करते हैं वे ए ग्रेड अंकित कराने में भी सफल हो जाते हैं। इसका नुकसान क्षेत्रीय कार्यालयों या छोटे स्थान पर काम करने वाले कर्मचारी उठाते हैं। वे सीआर लिखने वाले अधिकारियों की खुशामद नहीं कर पाते।

इस परंपरा में अब बदलाव की शुरूआत रेलवे ने कर दी है। वह कर्मचारियों को भी अपने अधिकारियों का सीआर लिखने का अधिकार देने जा रही है। इसी वित्तीय वर्ष से यह लागू होगा, जिसका प्रोफॉर्मा बनाया जा रहा है। कर्मचारी इसमें अपने अधिकारी के कामकाज पर ऑनलाइन विवरण दर्ज करेंगे। चूंकि यह व्यवस्था देश के किसी भी सरकारी संस्थान में पहली बार शुरू की जा रही है, इस नये नियम के क्या नतीजे होंगे, इस पर विवाद हो सकता है। हो सकता है कि सीआर में विपरीत प्रविष्टि दर्ज होने की आशंका से अधिकारी अपने कर्मचारियों पर हुक्म ही न चला पाएं। यह भी हो सकता है कि अधिकारी ज्यादा जवाबदेही के साथ काम करें, क्योंकि प्रमोशन और करियर की चिंता उन्हें भी है। बहरहाल, रेलवे कर्मचारियों में इस नये आदेश से तो खुशी ही दिखाई दे रही है।

कृष्ण कुंज में रोड़ा शराब दुकान

छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय इकाईयों में सांस्कृतिक, धार्मिक महत्व के अलावा औषधियों के रूप में काम आने वाले पौधों का कृष्ण कुंज बनाने की तैयारी चल रही है। इसमें आम, इमली, बेर, जामुन, कदंब, पीपल, बबूल, पलाश, सीताफल, आंवला जैसे अनेक पौधों से आबाद उद्यान बनाया जाना है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इनमें पौधारोपण का काम शुरू किया जाना है। योजना सरकार की कुछ अन्य योजनाओं की तरह अनूठी है। पर कई काम ऐसे होते हैं जिसमें सरकारी निर्देश के अलावा विवेक का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। अब छुरिया का ही मामला लीजिए। यहां पर कृष्ण कुंज के लिए जो जगह तय की गई, उसके ठीक बगल में शराब दुकान है। वर्षों से है। इस उद्यान में सांस्कृतिक-धार्मिक रूचि रखने वालों को पहुंचना है पर बगल में ही दुकान होने के कारण बहुत मुमकिन है यह पियक्कड़ों का ही ठिकाना बन जाए। कलेक्टर डोमन सिंह पिछले दिनों जब कृष्ण कुंज की तैयारियों का जायजा लेने छुरिया पहुंचे तो इस बात की ओर लोगों ने उनका ध्यान दिलाया। अब लोगों का कहना है कि या तो यहां से शराब दुकान हटनी चाहिए या फिर कृष्ण कुंज के लिए नई जमीन तलाश की जानी चाहिए। वैसे कई उदाहरण बताते हैं कि शराब दुकानें आसानी से हटती नहीं, शायद कृष्ण कुंज के लिए ही नई जगह तलाशी जाए।

भेदभाव के खिलाफ लड़ाई...

रायपुर पुलिस के बाद अब बस्तर में भी ट्रांसजेंडर्स ने कामयाबी हासिल की है। बस्तर फाइटर्स की भर्ती में 9 सफल हुए हैं और उन्हें शीघ्र ही ज्वाइनिंग मिल जाएगी। मार्च 2021 में पहली बार छत्तीसगढ़ पुलिस बल में 13 ट्रांसजेंडर अभ्यर्थियों ने सफलता हासिल की थी। अब वे आरक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अंबिकापुर में परिणाम अच्छा नहीं रहा। वहां पिछली पुलिस भर्ती के दौरान 17 ट्रांसजेंडर ने आवेदन किए थे, जिनमें से दो ही फिटनेस में पास हो सके। इनमें से एक ही ने आगे की प्रक्रिया में भाग लिया। फिर भी यह एक सकारात्मक बदलाव है।

अपना हक हासिल करने के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय ने लंबी लड़ाई लड़ी है। राजस्थान की गंगा कुमारी का फॉर्म पुलिस भर्ती में निरस्त कर दिया गया। यह कहा गया कि इसमें सिर्फ पुरुष और महिलाओं की भर्ती की जाती है। फिजिकल और मेडिकल टेस्ट में फिट पाए जाने के बाद भी उनका चयन नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट तक उन्होंने लड़ाई लड़ी। फिर शीर्ष अदालत का आदेश आया कि ट्रांसजेंडर को भी संविधान में प्रदत्त सभी मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। राजस्थान में एक्ट बदलकर ट्रांसजेंडर्स की भर्ती का रास्ता निकला। इसके बाद तमिलनाडु में फिर छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर पुलिस में भर्ती किए जाने लगे। कई ट्रांसजेंडर्स, जो पुलिस की भर्ती में प्रयास के बाद विफल हो गए हों उनका प्रयास करना भी कम बड़ी बात नहीं। वे यह संदेश तो देते ही हैं कि वे समाज की मुख्य धारा से जुडक़र सम्मान के साथ जीना चाहते हैं। क्या इन्हें रोजगार और नौकरी का मौका देने सरकार और दूसरे इंस्टीट्यूट्स उदारता दिखाएंगे?

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