राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फ्लाईओवर का डिवाइडर...
26-Aug-2022 4:25 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फ्लाईओवर का डिवाइडर...

फ्लाईओवर का डिवाइडर...

सडक़ निर्माण के जानकार आर्किटेक्ट और इंजीनियर बताते हैं कि फ्लाईओवर के ऊपर आमतौर पर डिवाइडर फोरलेन या उसी की तरह चौड़ी सडक़ पर बनाई जाती है। महानगरों में ऐसा अक्सर होता है, पर डिवाइडर फ्लाईओवर के बीच से शुरू नहीं किया जाता। वह तो एक छोर से दूसरे छोर तक बनाया जाता है। ऐसा नहीं होता कि फ्लाईओवर के बीच से अचानक डिवाइडर शुरू कर दिया जाए। बीते फरवरी माह में बिलासपुर शहर को रायपुर की ओर जोडऩे वाले इस टू लेन फ्लाईओवर का उद्घाटन हुआ। तब, डिवाइडर को कई लोगों ने खतरनाक बताया था। उन्होंने नक्शा देखकर निर्माण के पहले भी आगाह किया था। कलेक्टर, नगर-निगम और पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों के साथ पत्राचार भी किया। डिवाइडर के भीतर घुसी यह कार तो एक दुर्घटना का दृश्य है। आए दिन दो-पहिया चार पहिया वाहन इसमें टकराते रहते हैं। जो नहीं टकराते वे अचानक डिवाइडर देखकर स्टेयरिंग से संतुलन खो बैठते हैं।

हड़तालियों के पगार की चिंता

फेडरेशन की हड़ताल वैसे असरदार दिखाई दे रही है। कर्मचारी नेता मशाल और न्याय रैली निकालकर हड़तालियों में जोश भर रहे हैं। रजिस्ट्री ऑफिस में जमीन का लेन-देन ठप है। कुछ श्रेणियों के शिक्षक स्कूल नहीं जा रहे हैं। कई अदालतों में काम नहीं हो पा रहा है। राजस्व मामलों को निपटाने शिविर लगाने की इसी बीच योजना बनी थी, वह भी स्थगित है। पर, जैसे-जैसे यह आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है, कर्मचारियों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। खिंचते-खिंचते माह की आखिरी तारीख का नजदीक आ गई। पांच दिन बाद भी सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं है। इधर, लोगों की पगार, वेतन पत्रक तैयार करने का काम रुक गया है। ट्रेजरी में आखिरी हफ्ते में बिल जमा होना शुरू हो जाता है पर अधिकांश जिलों में हड़ताल के कारण ये जमा नहीं हो पाए हैं। कुछ एक विभाग ऐसे होंगे जिनके अधिकारी कर्मचारियों को पहली तारीख हो , न हो फर्क नहीं पड़ता। पर आंदोलन में शामिल अनेक कर्मचारी सोच रहे हैं कि हड़ताल जल्द खत्म होने की उम्मीद क्यों नहीं बन रही है। कम से कम वेतन तो समय पर निकल जाता।

उद्योगों का चौतरफा विरोध

औद्योगिक विकास किसी राज्य की तरक्की के लिए बहुत जरूरी है। इधर, एमओयू होने से लेकर उद्योगों की स्थापना और उत्पादन शुरू करने की प्रक्रिया के बीच लंबी दूरी होती है। सन् 2012 में एक बड़ा ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट छत्तीसगढ़ में रखा गया था। इसमें 275 एमओयू किए गए थे, जिनमें 3 लाख करोड़ रुपये के निवेश का समझौता हुआ था। इनमें से 103 एमओयू  2020 में निरस्त कर दिए, क्योंकि इनमें कोई काम ही नहीं हुआ।  जो उद्योग लगे उनमें 78 हजार करोड़ रुपये का ही वास्तविक निवेश का अनुमान है। दिसंबर 2020 में रायपुर में हुए सीआईआई के कार्यक्रम में बताया गया था कि नई सरकार ने 153 एमओयू किए। सरकार का जोर रूरल इंडस्ट्री की तरफ ज्यादा रहा। गौठानों को माइक्रो इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में विकसित करने का लक्ष्य भी है। वनोपज और मैदानी इलाकों में ली जाने वाली फसलों से जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने की है। इसमें कितनी सफलता मिली है, इस पर कोई ताजा आंकड़ा नहीं आया है। पर निवेशकों की ज्यादा रूचि स्टील और दूसरे खनिज उत्पादों की ओर है। इसकी क्या स्थिति है, बस्तर से मिल रही रिपोर्ट से अनुमान लगाया जा सकता है। बस्तर में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने विशेष रियायतें और अनुदान तय किए हैं। पर यहां 16 उद्योगों की नींव एमओयू के दो साल बाद भी नहीं रखी जा सकी। जगदलपुर के समीप स्थित लोकापाल से खबर है कि पिछले दिनों दो उद्योगों के लिए जमीन का सीमांकन करने राजस्व अमला पहुंचा, पर ग्रामीणों के विरोध के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। बस्तर में सरकारी प्रोत्साहन तो है पर अधिकांश भूमि वन है। स्थानीय ग्रामीण इसमें हस्तक्षेप के लिए तैयार नहीं हैं। राजस्व भूमि प्रशासन को ढूंढे नहीं मिल रही है। कल ही रावघाट से लौह अयस्क के खनन के लिए जा रही मशीनों को ग्रामीणों ने लौटा दिया। सरगुजा, जशपुर और रायगढ़ में उद्योगों के खिलाफ हो रहे आंदोलन तो सुर्खियों में है हीं। कोविड काल को लेकर सरकार ने बताया था कि लगातार लॉकडाउन के बाद भी उद्योगों में उत्पादन जारी रखने के लिए किए गए उसके प्रयासों के चलते जीएसटी कलेक्शन प्रदेश में बहुत अच्छा रहा। राज्य की आर्थिक सेहत अच्छी करने के लिए उद्योग तो जरूरी हैं, पर अब लोग जमीन छोडऩे के लिए राजी नहीं हैं। दरअसल, पर्यावरण, वायु प्रदूषण, जंगल और जल-स्त्रोत का दोहन, रोजगार, उद्योग में हिस्सेदारी से जुड़ी चिंताओं को दूर करने में सरकारें विफल रहती हैं, उद्योग जगत वायदाखिलाफी करता है।

संयम और समझदारी...

राजधानी में बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा ने जबरदस्त भीड़ जुटा ली। इंटेलिजेंस को इसका अंदाजा लग गया था। इसीलिए कई बड़े बेरिकेड्स तो ऐसे थे, जो पहली बार देखे गए। जगह-जगह इन्हें लांघते हुए प्रदर्शनकारी सीएम हाउस की ओर बढ़ते गए। अंत में वे करीब 100 मीटर की दूरी तक भी पहुंच चुके थे। इसी बीच भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या और दूसरे प्रमुख नेताओं ने आंदोलन समाप्त करने का ऐलान कर दिया। प्रदर्शनकारी आगे नहीं बढ़े। यदि और आगे कार्यकर्ता बढ़ते तब जो स्थिति बनती वह किसी न किसी अप्रिय घटना की वजह बन जाती।

दूसरी तरफ जिस तरह से जिस तरह से अवरोधकों को पार करने के लिए बड़ी संख्या में एक साथ युवा मोर्चा कार्यकर्ता जोर लगा रहे थे वह पुलिस जवानों का संयम खोने के लिए काफी था। फिर भी पुलिस ने एक भी बार बल प्रयोग नहीं किया। ऊपर से ऐसा निर्देश भी था कि किसी भी स्थिति में लाठी न भांजे। नौबत आएगी तो आला अफसर मौके पर ऑर्डर देंगे। बल प्रयोग करने से स्थिति और बिगड़ जाती।

इस प्रदर्शन को लेकर लोग 2003 की उस घटना को भी याद कर रहे हैं जब भाजपा ने प्रदर्शन किया था और प्रशासन ने तब खूब सख्ती दिखाई थी। नंदकुमार साय, छगन मूंदड़ा, योगेश अग्रवाल जैसे कई नेता-कार्यकर्ताओं पर लाठियां चलाई गई और वे बुरी तरह घायल हो गए थे। यह चुनाव के कुछ महीने पहले की ही बात थी। तब कांग्रेस के हाथ से सरकार फिसल गई थी।

कुल मिलाकर बड़ा प्रदर्शन होने के बाद भी भाजपा नेताओं ने संयम दिखाया, सही समय पर कार्यकर्ताओं को आगे जाने से रोका और सरकार ने बल प्रयोग नहीं करने का दूरदर्शी फैसला लिया। पुलिस ने इस आदेश का पालन करके भी हालात को काबू में रखा।

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