राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के दो विधायक भाजपा की ओर
चर्चा है कि जोगी पार्टी के दो विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा भाजपा का दामन थाम सकते हैं। दोनों विधायक पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के संपर्क में हैं। सुनते हैं कि दोनों विधायकों की अमित शाह से मुलाकात कराने की भी योजना थी। धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा, शनिवार को रायपुर में भी थे। मगर उनकी मुलाकात नहीं हो पाई।
कहा जा रहा है कि अमित शाह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से तीन घंटे विलंब से पहुंचे थे। इस वजह से पार्टी पदाधिकारियों के साथ अलग से बैठक का कार्यक्रम को भी स्थगित करना पड़ा। चर्चा है कि धर्मजीत और प्रमोद की अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात करायी जा सकती है।
हटाए गए हाशिए पर...
पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक अब पार्टी के भीतर अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं। कौशिक को पहले नेता प्रतिपक्ष का पद छोडऩा पड़ा, और अमित शाह के दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में कार्यक्रम में मंच पर जगह नहीं मिली।
कौशिक को अन्य नेताओं के साथ आम लोगों के साथ बैठना पड़ा। सुनते हैं कि मंच पर शाह के साथ रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के लिए ही कुर्सियां लगाई गई थी। बाद में रमन सिंह की पहल पर बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी के बैठने की भी व्यवस्था की गई।
कौशिक पद से हट चुके हैं इसलिए वो आम कार्यकर्ताओं के साथ ही बैठे। इससे परे कुछ दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए विष्णुदेव साय की गैर मौजूदगी भी चर्चा में रही। साय न तो अमित शाह के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे, और न ही ऑडिटोरियम के कार्यक्रम में दिखे।
कलेक्टर के नीचे नहीं रहना...
661 शिक्षकों की तबादला सूची जारी हुई और निरस्त कर दी गई। ये सभी अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूल के तबादले थे। स्वामी आत्मानंद स्कूल बड़े कस्बों या शहरों में ही अभी संचालित हैं। इसलिए इन शिक्षकों के साथ सुविधा यह थी कि दूर-दराज के गांवों में उन्हें ड्यूटी नहीं करनी है। इसके अलावा उनको वेतन के अलावा 1500 रुपये का अधिक भुगतान किया जाता है। इस हिसाब से तो उनको तो यहां सुकून होना चाहिए था। पर दूसरा पहलू भी है। उत्कृष्ट विद्यालय में पदस्थ रिजल्ट भी उत्कृष्ट लाने का दबाव होगा। यानि जिस तरह से भवनों की साज सज्जा की गई, संसाधन दिए गए हैं- पढ़ाई का स्तर भी ऊंचा रखना पड़ेगा। तय कर दिया गया है कि इन स्कूलों पर सीधा नियंत्रण कलेक्टर करेंगे। अनेक शिक्षकों को इसी बात की चिंता है। अपने विभाग के अधिकारी बीईओ, डीईओ से तो वे किसी तरह निभा लेंगे, मगर यहां मुश्किल हो जाएगी। दूसरी बात यह भी हुई कि बड़ी संख्या में तबादले की वजह से उत्कृष्ट विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी हो जाती। ऐसे में जब शिक्षक ही पर्याप्त नहीं होंगे तो शाला को उत्कृष्ट किस मापदंड में माना जाएगा। इस तबादला आदेश के बाद कुछ जिलों में प्राचार्यों ने कलेक्टर से शिकायत की, फिर बात ऊपर पहुंची। कुछ ने तो कह दिया कि जब तक दूसरी पदस्थापना नहीं होगी, स्थानांतरित शिक्षकों को रिलीव नहीं करेंगे। इसके चलते परिस्थिति ऐसी बनी कि पूरी सूची रद्द करनी पड़ी, हालांकि वजह लिपिकीय त्रुटि को बताया जा रहा है। त्रुटि सिर्फ तारीख लिखने में हुई है, जिसे आसानी से संशोधित किया जा सकता था।
माओवादी हिंसा का इतना आसान हल
जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो बस्तर और सरगुजा मिलाकर कुल 6 जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित थे। भाजपा सरकार की विदाई के कुछ महीने पहले जुलाई 2018 में तब के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में बताया था कि 14 जिले माओवाद हिंसा से प्रभावित हैं। यानि 8 और जिलों में उनकी पैठ बढ़ी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कबीरधाम, कवर्धा को इसी साल नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल किया था, पर तब सरगुजा, जशपुर को इस सूची से हटाया भी गया था। नक्सल प्रभावित जिलों का निर्धारण सशस्त्र माओवादियों की मौजूदगी, उनकी गतिविधियां, हमला करने की क्षमता, संगठन का विस्तार और सक्रियता के आधार पर किया जाता है। इस साल 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुंगेली जिले को भी माओवादी हिंसा प्रभावित बताया है। माओवादी हिंसा को खत्म करने राजनीतिक, गैर-राजनीतिक तमाम तरीकों से प्रयास होते रहे हैं। प्रभाव कहीं कहीं कम जरूर हुआ है पर इसके खात्मे में सफलता नहीं मिल पाई है। अब भी जन अदालतें लग रही हैं, अपहरण हो रहे हैं, गश्त में लगे जवानों पर हमला हो रहा है और सडक़ भवन बनाने में बाधा खड़ी की जा रही है। ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रायपुर में कहा कि केंद्र सरकार नक्सल समस्या को चुटकी में हल कर सकती है, बशर्तें अगली बार भाजपा की सरकार बने। यदि शाह ने कोई समाधान सोच रखा है तो उसे अमल में लाने के लिए सरकार बदलने का इंतजार क्यों? इसका मायने तो यह निकल रहा है कि कांग्रेस सरकार नक्सल उन्मूलन में बाधा खड़ी कर रही है? लोग जानना चाहेंगे कि आखिर केंद्र ने क्या कोई सुझाव दिया है, जिस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अमल नहीं किया? केंद्र ने कई नक्सल प्रभावित जिलों में एसआरई ( सुरक्षा संबंधी व्यय) से भी हटा दिया है। शाह के इस बयान को पिछले विधानसभा में क्लीन स्वीप हो चुकी भाजपा को फिर जमीन देने की कोशिश के रूप में देखा जाना ठीक होगा।