राजपथ - जनपथ
एनआईए मुखिया छत्तीसगढ़ के ही
एनआईए दफ्तर नवा रायपुर के नए भवन में शिफ्ट हो गया है। एनआईए के एसपी वेदप्रकाश सूर्या का छत्तीसगढ़ से पुराना नाता रहा है। वो मध्यप्रदेश के रहवासी है, और उनकी स्कूली शिक्षा दुर्ग जिले में हुई है। सूर्या वर्ष-2009 बैच के आईपीएस हैं। इसी बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के अमित कांबले भी हैं। जो कि माना बटालियन में कमांडेंट हैं। दोनों का दफ्तर कुछ किलोमीटर की दूरी पर है।
तीन साल में क्या कुछ किया
सुनील सोनी, मेयर एजाज ढेबर से खफा हैं। सुनील की नाराजगी की वजह यह है कि एजाज ने देशभर के मेयर सम्मेलन में उनकी तारीफ की, लेकिन बाहर निकलते ही मीडिया से चर्चा में कह गए कि शहर विकास के लिए सांसद सुनील सोनी से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।
ऐसे में सुनील सोनी का भडकऩा स्वाभाविक है। उन्होंने प्रतिक्रिया में बूढ़ातालाब योजना को लेकर एजाज पर तीखा हमला बोला। अब सोनीजी की बात को कौन गंभीरता से लेगा। जब बूढ़ातालाब योजना का क्रियान्वयन हो रहा था, तो सोनीजी समेत पूरी भाजपा खामोश थी। योजना के खिलाफ एक-दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ही लड़ाई लड़ी, और कोर्ट भी गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
विधानसभा चुनाव में 14 महीने बाकी रह गए हैं। एजाज भी रायपुर की चारों सीटों में से किसी एक पर दावेदारी ठोक सकते हैं। उन्हें अपनी उपलब्धियां बतानी ही है। अब सुनील सोनी और बाकी भाजपा के लोगों को यह बताना चाहिए कि शहर विकास के लिए तीन साल में क्या कुछ किया है।
पूर्व मंत्री कुछ समय से खफा
भाजपा के एक पूर्व मंत्री पिछले कुछ समय से काफी खफा हैं, और पार्टी के रणनीतिकारों के तौर तरीकों से दुखी भी हैं। सुनते हैं कि पूर्व मंत्री ने कांग्रेस के छत्तीसगढिय़ावाद, और सरकार की किसान हितैषी छवि की काट ढूंढने के लिए आपस में विस्तार से चर्चा करने पर जोर दे रहे हैं। मगर पार्टी के बड़े नेता इस पर कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं है। पूर्व मंत्री ने चेताया है कि यदि इन विषयों का जल्द ही कोई काट नहीं ढूंढा गया, तो विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
खुद को माननीय समझने लगे?
कामकाज में सहकारी बैंक अफसर कितने पारंगत हैं, इसकी खबर रिस-रिस कर आती रहती है। पांच साल पहले फरवरी 2018 में विधानसभा में मुद्दा उठा था कि अकेले रायपुर और बिलासपुर के सहकारी बैंकों में 1200 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है। राज्य के दूसरे बैंकों को मिलाकर यह 1500 करोड़ रुपये तक पहुंचता है। यह उजागर हुआ था कि किसानों के नाम पर मिलने वाली सब्सिडी व कम ब्याज पर दिए जाने वाले ऋण का फायदा व्यापारियों को पहुंचाया गया। धान मिलिंग और परिवहन में गड़बड़ी की गई। उस समय कांग्रेस और भाजपा ने दोनों ने घोटाले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की थी। पर फाइलें दब गईं, कौन-कौन नपे आज तक पता नहीं चला। वक्त के साथ लोग भूल गए। बिलासपुर में देवेंद्र पांडेय के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहने के दौरान करीब 100 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। पुलिस ने पांच-सात अधिकारी, कर्मचारियों के नाम चालान पेश किया और अध्यक्ष को बचा दिया। तब कोर्ट ने पांडेय के खिलाफ भी जांच का आदेश दिया था। यहां पर बिना प्रक्रिया के 36 लोगों की भर्ती की गई थी। इनमें से ज्यादातर लोग बाद में बर्खास्त कर दिए गए, पर अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई। बीते साल दुर्ग जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के 2015 से 2020 तक अध्यक्ष रहे प्रीतपाल बेलचंदन और अन्य के खिलाफ करीब 14 करोड़ रुपये के गबन की एफआईआर बैंक सीईओ ने दर्ज कराई थी। बिलासपुर में एक और घोटाला हुआ। मैनेजर और अकाउंट सेक्शन के अधिकारी कर्मचारियों ने किसानों के क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड का इस्तेमाल कर खाते से पैसे साफ कर दिए। धमतरी में भी परिवहन, खरीदी, मिलिंग और ऋण वितरण में बड़ी गड़बड़ी खुली।
इधर मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों अपेक्स व जिला सहकारी बैंकों की बैठक की समीक्षा के दौरान पाया कि अफसरों ने अपना वेतन मनमाने तरीके से बढ़ा लिया है। दस साल में दो गुना। बैंक कैडर के सीनियर ऑफिसर को तो 2.97 लाख रुपये मिलते हैं। बैंकों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में मंजूरी लिए बिना भी अधिकारियों के वेतन बढ़ाए गए। वित्त विभाग या सामान्य प्रशासन विभाग के नियंत्रण में तो ये हैं ही नहीं। वेतन-भत्तों को मनमाने तरीके से बढ़ाने का मामला भी एक घोटाला ही है। रिकव्हरी हो तो रकम करोड़ों में पहुंच जाएगी। यानि सहकारिता के नाम पर बैंक की तिजोरी में चारों ओर से सेंधमारी हो रही है। अभी अपनी मर्जी से मनचाहा वेतन खुद तय करने का अधिकार अभी सिर्फ सांसदों, विधायकों को ही है।
अपनों पर भी भरोसा न रहा...
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के वायरल वीडियो में ‘सरकार की औकात’ वाली बात को भाजपा ने हाथों-हाथ लिया। तुरंत ट्वीट कर हमला भी किया गया। सिंहदेव की सफाई भी आ गई कि शब्दों के चयन में गड़बड़ी हो गई। यानि गलत कुछ कहा नहीं, बात सही थी-दूसरे तरीके से कहना था। कर्मचारी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल अंबिकापुर में सिंहदेव से उनके निवास पर ही मिला था। सिंहदेव को उम्मीद रही होगी कि यहां वे अपनों के बीच हैं, कुछ खुलकर बोल सकते हैं। पर उनको भनक नहीं लगी और किसी ने चुपचाप वीडियो शूट कर चर्चा को वायरल कर दिया। ऐसा करने वाले ने इतनी ईमानदारी जरूर दिखाई कि वीडियो एडिट नहीं की। इस दौरान सिंहदेव ने केंद्र सरकार से मदद और टैक्स का निर्धारित हिस्सा नहीं मिलने की बात की है। यह बात छिपी नहीं है। राज्य सरकार ने केंद्र के सामने लगातार यह बात उठाई है। जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्य की क्षतिपूर्ति राशि पांच साल और बढ़ाने की मांग की गई थी। इसी माह नीति आयोग की बैठक में दिल्ली गए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य का टैक्स शेयर बढ़ाने की मांग की थी। सिंहदेव के वायरल वीडियो से ही आम लोग जान पाए हैं कि राज्य के कर्मचारियों पर सरकार 40 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। अब यह देखना होगा कि सिंहदेव के इस वार्तालाप को भुला दिया जाएगा, या आगे उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा।
तिजहारिन बस के इंतजार में...
भाई लेने आया है, मायके में पत्नी अपने पति के लिए उपवास पर होंगी, पानी भी नहीं पीना है। तीज का आनंद तो तब है जब विवाहिता अपने मायके में पूरे हक से जाए और भाई भी ख्याल रखे कि कुछ उपहार और वस्त्र देकर ही विदा नहीं करना है। पिता की संपत्ति पर उसका भी बराबर हिस्सा होता है।