राजपथ - जनपथ
और कितना अधिकार चाहिए?
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अभी उन विधानसभा क्षेत्रों के पार्टी कार्यकर्ताओं को बुलाकर चर्चा करना शुरू किया है जहां से कांग्रेस हारी थी। ऐसी सीटें बहुत अधिक नहीं हैं, लेकिन दर्जन भर से अधिक तो हैं हीं। अभी दो दिन पहले इनमें से बलौदाबाजार और भाटापारा विधानसभा क्षेत्रों की बारी थी। दोनों जगहों से कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ता आए हुए थे। मौका पाकर इनमें से एक ब्लॉक पदाधिकारी ने अपना दुखड़ा सामने रखा कि ब्लॉक पदाधिकारियों को अधिक अधिकार मिलने चाहिए। उसकी बात समझकर भूपेश बघेल ने कुछ बोलने की कोशिश की, तो उसने तुरंत मुख्यमंत्री को रोकते हुए अपनी बात जारी रखी। बात को आगे सुनने के बाद फिर भूपेश बघेल ने दखल देने की कोशिश की, तो उसने फिर मुख्यमंत्री को रोकते हुए अपनी बात जारी रखी। जब तीन बार ऐसा हो गया तो मुख्यमंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा कि और कितने अधिकार चाहिए, इतनी बार तो मुख्यमंत्री को बोलने से रोक रहे हो, इससे भी और ज्यादा अधिकार चाहिए क्या?
कुछ ऐसा ही नजारा कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्रों के दौरों के दौरान देखने मिलता था। कई जगहों पर भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में जब आम जनता बोलने खड़ी होती थी, तो कुछ उत्साही लोग बात पूरी कर लेने के बाद भी बोलते ही रहते थे, और मुख्यमंत्री जब कुछ बोलना चाहते थे तो ‘सुन न कका’ जैसी बात बोलते हुए वे अपनी बात जारी रखते थे। कुछ लोग तो इतने हौसलामंद थे कि तीन-तीन, चार-चार बार मुख्यमंत्री को चुप कर देते थे, और माइक पर अपनी ही बात बोलते रहते थे।
आरटीआई की ताकत समझें
सरकार और सत्ता की राजनीति के लोगों के साथ उठे-बैठें, तो आरटीआई को ब्लैकमेलिंग के अलावा और कुछ नहीं माना जाता। सत्ता में किसी से भी थोड़ी सी मेहरबानी की उम्मीद की जाए तो बहुत से लोग हाथ उठा देते हैं कि आरटीआई का जमाना है, हर कागज की कॉपी लोग सूचना के अधिकार में निकलवा लेते हैं, हर नोटशीट की कॉपी मांग लेते हैं, इसलिए कोई रियायत करना मुमकिन नहीं है। यह एक अलग बात है कि सत्ता हांकने वाले लोगों को जहां खुद का फायदा दिखता है, वहां आरटीआई का डर जाते भी रहता है।
आरटीआई के काम में लगे लोगों के लिए हौसला बढ़ाने वाली एक बात है कि झारखंड में अभी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म होने का चुनाव आयोग का जो आदेश चर्चा में है, वह सिलसिला झारखंड के एक आरटीआई एक्टिविस्ट का शुरू किया हुआ है। उसने सूचना के अधिकार में जानकारियां निकलवाई थीं, और फिर उन्हें राज्यपाल और दूसरी जगह भेजा। यही शिकायत आगे बढ़ते-बढ़ते चुनाव आयोग तक पहुंची, और वहां से सदस्यता खत्म होने के आदेश की चर्चा है। अभी राजभवन में राज्यपाल रमेश बैस चुनाव आयोग के इस लिफाफे पर बैठे हुए हैं। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ से झारखंड जाकर पूरे शराब कारोबार पर एकाधिकार का कब्जा करने वाले कारोबारी वहां के पुराने शराब कारोबारियों को खटक रहे हैं, और आईटी, ईडी, सीबीआई, और अदालत सभी जगह छत्तीसगढ़ के इस कब्जे को लेकर पहल की जा रही है। अब पता नहीं छत्तीसगढ़ से गए राज्यपाल तक यह बात पहुंची है या नहीं।
किसकी क्या-क्या जिम्मेदारी
बलौदाबाजार एसडीएम ने बिलाईगढ़ के जनपद सीईओ को निर्देश दिया है कि सचिवों के माध्यम से 5-5 गाडिय़ां लगाएं। सरसींवा क्षेत्र से 10-10 गाडिय़ां। यहां से 500 लोगों की बाइक रैली भी लेकर आएं। सरपंचों से पानी पाउच की व्यवस्था कराएं। सचिवों से स्टिकर बनवाएं, जिसमें लिखा हो- स्वागत, आभार, अभिनंदन। सरपंच, पंचों की शत-प्रतिशत मौजूदगी हो। बिलाईगढ़ के रेंजर, सीएमओ, भटगांव के सीएमओ दर्जन भर और अधिकारियों को भी इसी तरह से निर्देश दिए गए हैं। सभी को लगातार नारेबाजी कराने कहा गया है। सभी पर 5-5 हजार लोगों को समारोह में लाने की जिम्मेदारी है। यह सब 3 सितंबर को सारंगढ़-बिलाईगढ़ नए जिले के उद्घाटन समारोह की तैयारी के तहत है। अफसरों को 15 साल के भाजपा शासनकाल का भी अनुभव है। भीड़ कैसे जुटाई जाती है, वे जानते हैं। पर, इस काम के लिए नारेबाजी और भीड़ लाने के लिए सरकारी आदेश जारी करने का मामला पहले नहीं सुना गया। पहले तो यह मौखिक आदेश पर ही हो जाया करता था।
रुझान प्राइवेट एग्जाम की तरफ?
राज्य के विश्वविद्यालय कॉलेजों में कटऑफ मार्क्स की अब कोई पूछ-परख नहीं रह गई है। चार-पांच बार प्रवेश के लिए आवेदन मांगे जाने और एडमिशन की सूची जारी करने के बाद भी कॉलेजों में सीट नहीं भर पा रही है। बिलासपुर और रायगढ़ जिले का तो हाल यह है कि इनमें उपलब्ध सीटों के मुकाबले 50 प्रतिशत सीटें भी नहीं भरी हैं। इस बारे में कुछ प्रोफेसरों का कहना है कि कोविड काल में स्कूल-कॉलेजों के लंबे समय तक बंद रहने का असर अब तक दिखाई दे रहा है। छात्र घर पर पढ़ाई करना और प्राइवेट एग्जाम दिलाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि कॉलेजों का सत्र लंबा नहीं होता है। सितंबर तक तो एडमिशन ही चलता रहता है और जनवरी के बाद प्रिप्रेशन लीव शुरू हो जाता है। कोविड काल के दौरान घर पर रहकर पढ़ाई करने की वजह से इतना भरोसा तो हो गया है कि सेल्फ स्टडी और क्लास की स्टडी में ज्यादा फर्क नहीं है। बड़ी बात यह है कि प्राइवेट एग्जाम की परीक्षा फीस भी रेगुलर के मुकाबले काफी कम है।
वैसे मारामारी सिर्फ प्रदेश के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में है। यहां पहली बार देशभर से आवेदन मांगे गए हैं। प्रवेश परीक्षा भी ऑनलाइन होगी। यहां सीटें करीब 3300 हैं, पर आवेदन 2 लाख से ज्यादा मिले हैं।
खुशी कहीं भी ढूंढ लीजिए...
कोई अपने सिर पर चांद निकल आने से दुखी हो सकता है तो कोई गिने-चुने बालों में भी खुश रह सकता है। राह चलते इस सज्जन ने स्कूटर का आईना देखा, एंगल ठीक करके जेब से कंघी निकाली और लगे बाल संवारने...। तस्वीर रायपुर की ही है।