राजपथ - जनपथ
अब हर जेब में तीसरी आंख...
हर हाथ में स्मार्ट फोन होने का नतीजा यह है कि सार्वजनिक स्थान पर होने वाली गतिविधि रिकॉर्ड हो रही है। ऑडियो भी लेकिन ज्यादातर वीडियो। कुछ शिक्षक शराब के नशे में, कुछ अधिकारी, कर्मचारी रिश्वत लेते ऐसे वायरल वीडियो में दिखे और नप गए। इधर कुछ समय से लोग मारपीट, हत्या की कोशिश करते वीडियो बनाकर खुद ही वायरल करने लगे हैं। इसका मकसद प्राय: दहशत फैलाना होता है, पर पुलिस को भी जांच में इससे सहूलियत मिल जाती है। महिलाओं, युवतियों से ब्लैकमेलिंग आम बात हो गई है। कुछ माह पहले जशपुर में एक वीडियो वायरल हो गया था जिसमें एक नाबालिग को चार-पांच लोग मिलकर पीट-पीट कर जबरदस्ती संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इनमें से ही एक वीडियो भी बना रहा है। यहीं पर दो साल पहले एक युवती ने भी जब ब्लैकमेलिंग करने वाले की डिमांड नहीं मानी तो उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया था।
बीते जून माह में जांजगीर के स्वामी आत्मानंद हाईस्कूल मैदान में दो गुटों के बीच जमकर मारपीट हुई। चूंकि इसकी शिकायत नहीं हुई, कोई अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ- इसलिये पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। अभी बीते अगस्त महीने में हावड़ा से बिलासपुर आ रहे आम आदमी पार्टी के एक कार्यकर्ता के साथ पांच छह लडक़ों ने ट्रेन में ही मारपीट की और वीडियो बना लिया। वीडियो आरपीएफ के पास ट्रेन पहुंचने से पहले ही पहुंच गई। पुलिस ने सभी को उतार लिया। संभवत: बाद में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। बीते मई माह में रायपुर के भनपुरी में फल दुकानदार और ग्राहक के बीच हुआ विवाद खूनी संघर्ष में बदल गया था। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने आरोपियों को पहचाना और कार्रवाई की। बीते साल एक स्कूली छात्र के साथ रायपुर में ही चार-पांच बदमाशों ने पिटाई की थी। घटना की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई थी पर वीडियो की मदद से पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और पीडि़त से शिकायत दर्ज कराई। इस साल मई में रायपुर के सुभाष स्टेडियम में लड़कियों के बीच हुई मारपीट तो खूब शेयर की गई थी।
हाल की घटनाओं को देखें तो कल कसडोल में दो नाबालिग बच्चों को रस्सी से बांधकर बेरहमी से पीटने का वीडियो सामने आया है। बच्चों की नानी की रिपोर्ट पर पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। पीटने वालों की पहचान आसानी से इस वीडियो के जरिये हो गई। बीते माह बिलासपुर से भी इसी तरह का वीडियो आया था, जिसमें बिलासपुर के सीपत थाना इलाके में दो युवकों को कई लोगों ने खंबे से बांधकर लाठी और घूसों से पीटकर घायल कर दिया। बिलासपुर से ही दो दिनों के भीतर दो और वीडियो सामने आए हैं। इनमें से एक मार्च महीने का बताया जा रहा है। एक में तो बड़ा सा पत्थर सिर पर पटका जा रहा है। उसे बचाने के लिए एक लडक़ी सामने आ रही है, उसे भी धक्का दिया जा रहा है। इनमें भी गिरफ्तारी हुई।
दूरस्थ इलाकों के विकास कार्यों की पोल भी ये वायरल वीडियो खोल रहे हैं। इस साल मई माह में सामने आया था कि अंबिकापुर में एक व्यक्ति एंबुलेंस नहीं मिली तो कंधे पर बेटी के शव को उठाकर ले जा रहा था। जशपुर जिले के बगीचा में एक बीमार को एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए तीन लोग मिलकर नदी पार करा रहे हैं, क्योंकि पुल नहीं है।
दूर क्यों जाएं, बीते दिनों राजधानी में हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा के आंदोलन में कितने ही वायरल वीडियो पुलिस के लिए सबूत बने। हांलाकि वीडियोग्रॉफी के लिए उनकी अपनी टीम भी तैनात थी। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के वीडियो ने भी तो तूल पकड़ लिया था।
लब्बोलुआब यह है कि अब हर सार्वजनिक स्थान पर हर किसी की जेब में स्मार्ट फोन के रूप में ऐसा डिवाइस है जो आपकी असावधानी, गलती और अपराध का सबूत जुटा सकता है।
पोषण के लिए रंगोली...
छत्तीसगढ़ में एक सितंबर से पोषण माह शुरू किया गया है। इस दौरान महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के अलावा उनकी शिक्षा और जल प्रबंधन पर प्रचार किया जाना है। इस बार आंगनबाड़ी केंद्रों में रंगोली, चित्रकला, स्लोगन की गतिविधियां चल रही हैं। रायपुर जिले के एक आंगनबाड़ी केंद्र की यह तस्वीर है जिसमें महिलाओं ने एक आकर्षक रंगोली बनाई है और उसके बीच पौष्टिक आहार, सब्जियां रखी गई हैं।
पीने की फिर तरफदारी...
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम ने बीते दिनों शराब पीने का तरीका बताया था। अब उससे चार कदम आगे बढक़र पहलवान सिंह मरावी तर्क दे रहे हैं कि शराब तो आदिकाल से चला आ रहा है। लोग सनातन युग में भी सोमरस के नाम पर पीते थे। देवराज इंद्र पीते थे तो हमारी क्या बिसात। मरावी मरावी के पूर्व विधायक हैं। इस समय वे कांग्रेस में हैं। प्रेमसाय के बयान का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि चाहे कोई भी सरकार आए, वह चाहे शराबबंदी का वायदा करे लेकिन इसे कोई बंद नहीं करा सकता।
यह बात समझ में आ रही है कि कांग्रेस के अनेक नेताओं को शराब की बड़ी फिक्र है। बीच-बीच में ऐसे बयानों का राजनीतिक अर्थ भी है। शराब की बिक्री पर सहमति बनाई जाए और शराबबंदी करने के चुनावी वायदे को अप्रासंगिक बता दिया जाए।