राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : राजस्थान पर हसदेव की कालिख...
11-Sep-2022 6:00 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : राजस्थान पर हसदेव की कालिख...

राजस्थान पर हसदेव की कालिख...

हसदेव अरण्य से कोयला खनन की तैयारी को लेकर छत्तीसगढ़वासियों को राजस्थान प्रदेश के लोगों से कोई शिकायत नहीं है। वे इसे कार्पोरेट और वहां की सरकार की ही जुगलबंदी मानते हैं। कुछ दिनों पहले राजस्थान के एक पर्यावरण प्रेमी विकास जैन हसदेव अरण्य के प्रवास पर आए। घूमकर लौटने के बाद उन्होंने लिखा- राजस्थानवासियों के नाम पर एक समृद्ध वन को तहस-नहस किया जा रहा है। साल वृक्षों का जंगल पूरी तरह प्राकृतिक होता है, इसकी अपनी जैव-विविधता होती है, इसे आसानी से नहीं उगाया जा सकता है। इसे कोयले के लिए खत्म किया जा रहा है। यह हम राजस्थानियों के ऊपर एक कालिख है। विकास जैन ने राजस्थान के लोगों से अपील भी की है कि वे हसदेव में कोयला खनन का विरोध कर जागरूकता दिखाएं। राजस्थान में सोलर एनर्जी, विंड पॉवर की असीमित संभावनाएं हैं।

कर्तव्य पथ नहीं, जचकी मार्ग..

रोजी रोटी की जिम्मेदारी उठाने के लिए जिन सडक़ों पर चलना पड़े, वे सभी कर्तव्य पथ ही तो हैं। पर इस सडक़ को जचकी मार्ग कहते हैं। गड्ढों में रास्ते के गुम हो जाने की वजह से यह नाम चल पड़ा है। कबीरधाम-पंडरिया मुख्यमार्ग से कुम्ही के लिए जाने वाली इस सडक़ का बारिश से और बुरा हाल हो चुका है।

तीन और जिले रह गए..

प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने जिन चुनावी वायदों पर सबसे तेज काम किया है, उनमें नए जिलों के गठन को सबसे ऊपर रखा जा सकता है। मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर तथा सक्ती के गठन के साथ ही प्रदेश में अब इनकी संख्या 33 हो गई है। भाजपा ने 15 साल के कार्यकाल में कुल 11 जिले बनाए। नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, कोंडागांव, बालोद, बेमेतरा, बलौदा-बाजार-भाटापारा, गरियाबंद, मुंगेली, सूरजपुर और बलरामपुर-रामानुजगंज। इधर कांग्रेस में सन् 2020 में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही का निर्माण किया। इसके बाद मोहला-मानपुर, सारंगढ़-बिलाईगढ़ तथा खैरागढ़ नए जिले बने। आज दो नए जिले और जुड़ गए।

इसके बाद यह अनुमान लेना ठीक नहीं होगा कि अब नए जिलो की मांग खत्म हो जाएगी। बल्कि सरकार की उदारता को देखते हुए बाकी जगहों से मांगें तेज हो सकती हैं। संबंधित क्षेत्रों के कांग्रेस विधायक भी दबाव बना सकते हैं। बस्तर के भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की लंबे समय से की जा रही है। यह दलील दी जा रही है कि बस्तर की पुरानी तहसीलों में कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, भानुप्रतापपुर और बीजापुर थे। इनमें केवल भानुप्रतापपुर ही जिले का दर्जा नहीं पा सका है, बाकी सब बन गए। जबकि यह लौह-अयस्क और वन-संपदा दोनों से ही भरा-पूरा है। इधर कटघोरा में पिछले कई सालों से सर्वदलीय संघर्ष समिति बनी हुई है। इसमें अधिवक्ता, व्यवसायी, पत्रकार आदि सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। इनका कहना है कि पहले जब बिलासपुर जिले से यह क्षेत्र अलग किया गया, तब कटघोरा को ही मुख्यालय बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन राजनीतिक कारणों से कोरबा को मौका मिल गया।

इसके अलावा भाटापारा को बलौदाबाजार से अलग कर नया जिला बनाने की मांग उठ रही है। पत्थलगांव, प्रतापपुर, वाड्रफनगर, पंडरिया और सरायपाली में भी जिला बनाने की मांग पर किसी न किसी रूप में आंदोलन चल ही रहा है। कुछ जिलों की मांग शुद्ध राजनीतिक हो सकती है लेकिन ज्यादातर लोग चाहते हैं कि प्रशासन उनके ज्यादा नजदीक पहुंचे। बीते वर्ष विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने पत्रकारों से कहा था कि राज्य के नाम के अनुरूप प्रदेश में 36 जिलों की संभावना है। अब जब सरकार का कार्यकाल 4 साल पूरा होने वाला है, नए जिले आकार ले रहे हैं, तब बाकी क्षेत्रों से भी आंदोलन और मांग तेज हो सकती है। लोग अनुमान लगा रहे हैं कि 36 होने में सिर्फ तीन और बच गए। चुनाव से पहले इनकी घोषणा हो सकती है, भले ही वे आकार बाद में लें।

बिना वारदात के नक्सल मौजूदगी...

इन दिनों विशाखापट्टनम से किरंदुल जाने वाली ट्रेन दंतेवाड़ा से ही लौटाई जा रही है। रेलवे को पता चला है कि छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्य में कहीं-कहीं नक्सलियों की सभा हो रही है। किरंदुल से दंतेवाड़ा के बीच बासनपुर-झिरका एक घना जंगल है, जहां नक्सली कई बार पटरियों को उखाड़ चुके हैं। वैसे भी इस बीच की दूरी बहुत धीमी गति से तय की जाती है। इस वजह से कोई जनहानि तो नहीं हुई है लेकिन रेलवे को हर बार लाखों का नुकसान होता है। इस साल जनवरी में साम्राज्यवाद विरोधी अभियान के चलते  7 दिन तक ट्रेन नहीं चली। फरवरी में एक दिन तो मार्च में 13 दिन बंद रहा। दंडकारण्य बंद के आह्वान के कारण 23 से 26 अप्रैल तक की ट्रेन में नहीं चली। फिर नक्सलियों ने अग्निपथ योजना का विरोध किया। मई में 2 दिन ट्रेन नहीं चली। 26 जून से 2 जुलाई तक माओवादियों ने आर्थिक नाकेबंदी सप्ताह मनाया, जिसके चलते ट्रेनों को रोकना पड़ा। नक्सली शहीदी सप्ताह के चलते 28 जुलाई से 3 अगस्त तक किरंदुल तक नहीं चली। 15 अगस्त को भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनके संभावित उत्पात को देखते हुए ट्रेनों को बंद रखा गया था। इस बीच मेंटेनेंस के नाम पर भी आठ-दस दिन ट्रेनों को रेलवे ने परिचालन रोका। यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रेनों को तकरीबन हर महीने कई-कई दिन बंद रखना होता है। इसका असर हजारों यात्रियों पर पड़ता है। उन्हें यात्रा के लिए दूसरे साधनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसा करके कोई हमला, मुठभेड़ किए बिना ही नक्सली अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते हैं।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news