राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंत्रीजी ने तुरंत आदेश दिए
15-Sep-2022 5:00 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मंत्रीजी ने तुरंत आदेश दिए

मंत्रीजी ने तुरंत आदेश दिए

भेंट मुलाकात का कार्यक्रम चल रहा है। मेल मुलाकात से समस्या का समाधान भी होता है। ऐसे ही मुलाकातों से एक ऑल इंडिया सर्विस के अफसर को बड़ी राहत मिली है। हुआ यूं कि अफसर के खिलाफ पुराने प्रकरण में विभागीय जांच प्रस्तावित की गई थी। जांच अफसर ने प्रकरण को निपटाने के लिए संबंधित को विभागीय मंत्री से भेंट-मुलाकात की सलाह दी। अफसर की पोस्टिंग  भी रायपुर में हो गई थी इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई।

रोज ऑफिस काम निपटने के बाद अफसर सीधे मंत्री बंगले पहुंच जाते थे, और मंत्री से दुआ-सलाम के बाद चुपचाप कोने की कुर्सी में बैठ जाते थे। चार-पांच दिन तक ऐसा चलता रहा। मंत्रीजी कुछ काम को लेकर पूछते थे, तो अफसर जवाब न में दे देते थे।  
आखिरकार एक दिन मंत्रीजी ने सीनियर अफसर से उनके बारे में पूछ लिया। सीनियर ने बताया कि अफसर के खिलाफ विभागीय जांच प्रस्तावित की गई है। भेंट-मुलाकात का असर यह हुआ कि मंत्रीजी ने तुरंत प्रकरण को नस्तीबद्ध करने के आदेश दिए। प्रकरण नस्तीबद्ध होने के मंत्री बंगला जाने की जरूरत नहीं पड़ी।

सबका योगदान  

मात्रात्मक त्रुटियों के कारण आदिवासी समाज के अलग-अलग फिरकों के दर्जनभर समुदायों को सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा था। काफी प्रयासों के बाद केन्द्र सरकार ने इन गड़बडिय़ों को सुधार किया, और अब सुधार हुआ तो श्रेय लेने की होड़ मच गई।
भूपेश सरकार, और भाजपा के  आदिवासी नेताओं ने अलग-अलग स्तर पर इसके लिए प्रयास किए थे। ऐसे में अपनी पीठ थपथपाने का हक तो बनता ही है। मगर इन सबसे परे राज्यपाल अनुसुईया उइके की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
राज्यपाल जब भी प्रधानमंत्री, और केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मिली हैं, उन्होंने इस विषय को प्रमुखता से रखा। विभिन्न राज्यों में हुए सम्मेलनों, और गवर्नर कॉन्फ्रेंस में राज्यपाल ने त्रुटियों को ठीक करने पर जोर दिया था। इसका प्रतिफल यह रहा कि न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों में हुई इस तरह की त्रुटियां को ठीक किया गया। ऐसे में राज्यपाल को धन्यवाद देना चाहिए।

बस्तर में रिहाई संघ की जरूरत आ पड़ी

जेलों में बगैर सुनवाई के वर्षों से बंद  हजारों आदिवासियों को रिहाई का इंतजार है। ज्यादातर मामले 15 साल के भीतर भाजपा के शासनकाल में दर्ज किए गए हैं। कांग्रेस ने सन् 2018 के चुनाव में इन्हें रिहा करने का वादा किया था। इसके बाद जस्टिस ए के पटनायक की एक कमेटी भी सन् 2019 में बनाई गई थी। कमेटी के पास जो जानकारी आई उसके मुताबिक तब 16 हजार 475 आदिवासी बंद थे, जिनमें से 5239 नक्सली मामले थे। इनमें ऐसे भी आदिवासी थे जो गिरफ्तारी और निचली अदालत से मिली सजा के खिलाफ अपील नहीं कर पाए। कमेटी के पहली बैठक में पाया गया कि 4007 मामलों में तो रिहाई की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इनमें से अनेक 10 से 17 साल तक जेल में काट चुके हैं। पर हुआ क्या? कुल 627 केस वापस लेने की सिफारिश की गई। हालांकि बाद में राज्य पुलिस ने 718 और मामलों को वापस लेने की अनुशंसा की। इनमें कितने रिहा हो पाए, स्थिति साफ नहीं है।

हाल ही में बुरकापाल हमले के मामले में कोर्ट का फैसला आया था, जिसमें 121 आदिवासियों को अदालत ने निर्दोष पाया। उन्होंने विचाराधीन बंदी के रूप में 5 साल जेल में काटे। तब एक बार फिर आदिवासियों की रिहाई का मुद्दा उभरा। कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने दावा किया कि सरकार की पहल से यह रिहाई हुई। आदिवासियों की ओर से उनके प्रतिनिधियों ने साफ किया कि उन्होंने अपने खर्च पर खुद मुकदमा लड़ा और अपने आपको कोर्ट से निर्दोष मुक्त कराया। जिनको सरकार ने छोड़ा है वे शराब, मारपीट, गाली-गलौच जैसे मामूली धाराओं में लंबे समय से बंद थे। अब भी हजारों आदिवासी बस्तर और राज्य के दूसरे जेलों में कैद हैं, जिसे लेकर राज्य सरकार पर वादाखिलाफी के आरोप लग रहे हैं।

बस्तर के दक्षिण-पश्चिम जिले बस्तर में आदिवासियों ने कल एक बड़ी बैठक की। उन्होंने जेल रिहाई संघ का गठन किया है। वे राजनीतिक सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर रिहाई के लिए आंदोलन भी छेड़ेंगे और बंदियों की रिहाई के लिए कानूनी सहायता भी देंगे। इनका कहना है कि अनेक ऐसे आदिवासी हैं जिन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया है, तब भी जेल में हैं, क्योंकि पुलिस ने रिहाई आदेश आने से पहले ही उसे दूसरे किसी मामले में फंसा दिया।
इस संगठन का बनना बताता है कि रिहाई के लिए गठित आयोग और सरकार के प्रयासों में गंभीर किस्म की कमी रह गई है।

सोशल मीडिया पर अडानी राग..


हसदेव अरण्य में कोयला खनन के समर्थन में अमूमन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पेज बने हुए हैं। इसमें दावा किया जा रहा है कि आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठन के नेताओं, पत्रकारों को विदेशी फंडिंग हो रही है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी हसदेव को बचाने के आंदोलन को समर्थन दिया था, अत: उनको भी लपेट लिया गया है। हर दूसरे पोस्ट में विदेशी फंडिंग की बात की जा रही है। कमाल की बात यह है कि यदि इस आंदोलन को विदेशों से चंदा मिल रहा है तो ताकतवर अडानी केंद्र से कहकर कोई जांच शुरू कराने आगे क्यों नहीं आ रहे हैं। वैसे भी देशभर में ईडी, सीबीआई घूम रही है। छत्तीसगढ़ में भी आना-जाना लगा ही रहता है।   [email protected]

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