राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जीना हराम करने वाली फैशन
16-Sep-2022 2:23 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जीना हराम करने वाली फैशन

जीना हराम करने वाली फैशन


अभी कुछ दिन पहले जब रणबीर सिंह ने बिना कपड़ों के कई तस्वीरें खिंचवाईं, और वे सोशल मीडिया पर तैरीं, तो बड़ा बवाल हुआ। उनके खिलाफ कई जगहों पर पुलिस में रिपोर्ट भी की गई, और लोगों ने सोशल मीडिया पर उन्हें बहुत भला-बुरा कहा। लोगों को याद होगा कि रणबीर सिंह पहले कई बार लड़कियों के घाघरे, और वैसे ही दूसरे जनाना कपड़े पहने हुए तस्वीरों में दिखते रहे हैं, और खुद के मर्दाना कपड़ों की उनकी कमी बढ़ते-बढ़ते जब इतनी बढ़ गई कि वे बिना कपड़ों के ही दिखने लगे, तो कई शहरों में लोगों ने उनके लिए कपड़े इक_े किए। इन लोगों ने अपने शहर के फटेहाल गरीब लोगों के लिए कपड़े इक_े नहीं किए होंगे क्योंकि वे गरीब बीमार और कमजोर रहते हैं, और उन्हें देखकर महिलाएं शायद ही उत्तेजित होती हों। लेकिन रणबीर सिंह का मामला अलग था, और उनकी तस्वीरों से हीनभावना में पहुंच जाने वाले लोगों ने तुरंत ही कपड़े इक_े करने शुरू कर दिए, क्योंकि कईयों को घर में यह ताना सुनने मिला होगा कि अपनी तोंद देखो, और रणबीर सिंह का बदन देखो।
अब फैशन एक और जनाना-मर्दाना रूप धरकर आई है, और साड़ी से बनी मर्दाना धोती पहनकर यह नया अवतार एक बार फिर अधिकतर हिन्दुस्तानी मर्दों को चुनौती दे रहा है। अब हो सकता है कि इस मॉडल को भेजने के लिए लोग बनियान जुटाने लगें, और पजामा भेजने लगें ताकि ऐसी तस्वीरें बाकी हिन्दुस्तानी मर्दों का जीना हराम न करे।

आशंका से बढ़ती धडक़न

देश के कई दूसरे प्रदेशों की तरह छत्तीसगढ़ में भी लगातार ईडी और आईटी के नाम की दहशत चलती रहती है। जो लोग निशाने पर आ सकते हैं, वे भी फिक्र में रहते हैं, और उनके आसपास के लोग भी। नतीजा यह हुआ है कि जिन लोगों को किसी बड़े व्यक्ति से कुछ लेना रहता है, वे अगली सुबह तक बात टालने के बजाय शाम-रात को ही उसे निपटा लेना चाहते हैं। पिछले दिनों छापे के शिकार छत्तीसगढ़ के एक बड़े कारोबारी से कुछ रकम आगे भिजवाने के लिए किसी दोस्त ने वहां नगदी छोड़ी, और अगली सुबह तक छापा पड़ गया। नतीजा यह हुआ कि अगले कई हफ्तों के लिए वह रकम फंस गई, और बाद में भी वह निकल जाए तो बहुत है। ऐसे छापों की अनिश्चितता ने लोगों को हड़बडिय़ा कर दिया है कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में ईडी पहुंचेगी, हिसाब करेगा कब? ऐसे छापों की आशंका से बड़े नगद लेन-देन में धडक़न बढऩे लगी है।

कमरे तो महीनों से नहीं खुले

सरकार के अधिकांश मंत्री-अफसरों ने मंत्रालय जाना तकरीबन छोड़ दिया है। ज्यादा फाइलें घर पर ही निपटा रहे हैं। ज्यादातर अफसर लंच के बाद लौट आ रहे हैं। कोरोना की वजह से काफी कुछ छूट दी गई थी। अब जब स्थिति सामान्य हो गई है, तो भी कामकाज का ढर्रा नहीं बदला है। दोपहर बाद 3 से 4 बजे दफ्तर आने वाले आला अफसरों से मातहत कर्मचारियों को दिक्कत हो रही है। साहब के बैठने तक वो जा नहीं सकते, और स्टाफ बस छूट जाती है। ऐसे में उनका घर लौटना किसी पहाड़ चढऩे से कम पीड़ादायक नहीं होता। यह पिछले दो वर्षों से रूटीन जैसा हो गया है। मंत्रालय के प्रवेश द्वार का रजिस्टर देखें तो कई सचिव और मंत्रियों के कमरे तो महीनों से नहीं खुले हैं।  ऐसे में काम की रफ्तार को समझा जा सकता है। सीएम ने दो दिन के अवकाश के साथ 10 बजे का दफ्तर शुरू करवा दिया है, लेकिन आला अफसरों उसे ठेंगा दिखा रहे हैं।

सुरक्षा बीमा पॉलिसी

चर्चा है कि ईडी-आईटी के झमेले से बचने के लिए सरकार के लोग भाजपा नेताओं से कारोबारी संबंध बना रहे हैं। इसके कई उदाहरण देखने, और सुनने को मिल रहा है।
पड़ोसी राज्य की सीमा से सटे एक विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय कांग्रेस विधायक ने माइनिंग-मिनरल, और सडक़ निर्माण के ठेके में भाजपा के युवा नेता को साथ ले लिया है। विधायक महोदय वर्किंग पार्टनर बन गए हैं। युवा नेता को प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेता का करीबी समझा जाता है।

सरकारी अड़चनों को विधायक महोदय दूर करने में सक्षम हैं। और वो यह भी मानकर चल रहे हैं कि भाजपा नेता का साथ होने से केंद्रीय एजेंसियों की नजर नहीं पड़ेगी।  इसी तरह सीमावर्ती जिले में एक अत्याधुनिक राइस मिल की खूब चर्चा हो रही है। यह मिल एक अफसर के भाई की है। अफसर ने दूरदृष्टि दिखाते हुए मिल में भाई के साथ राइस मिल एसोसिएशन के पदाधिकारी को पार्टनर बनाया है। पदाधिकारी की भाजपा में अच्छी पकड़ है। यहां जांच पड़ताल की ज्यादा गुंजाइश अब नहीं दिख रही है।

सूची पितृपक्ष के बाद

भाजपा में जिलाध्यक्षों, और कोर ग्रुप की सूची जल्द जारी होने वाली है। इसके अलावा कार्यकारिणी की भी सूची जारी होगी। पद पाने के इच्छुक नेताओं की भीड़ कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में लग रही है।
सरगुजा, और दूसरे जिलों के नेता रायपुर पहुंच रहे हैं, और वरिष्ठ नेताओं से मिलकर पद पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। दर्जनभर से अधिक जिलाध्यक्ष बदले जाएंगे। संकेत साफ है कि इस बार नए नेताओं को मौका मिल सकता है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि सूची पितृपक्ष के बाद जारी हो सकती है। [email protected]

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