राजपथ - जनपथ
आत्मा की टार्च जल गई है
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की कहानी है, टार्च बेचने वाले। कहानी का सार यह है कि बिजली का टार्च बेचने का अच्छा खासा काम छोडक़र एक व्यक्ति अध्यात्म की ओर मुड़ जाता है। इस कहानी के जरिए परसाई ने धार्मिक पाखण्ड पर प्रहार किया है।
आप सोच रहे होंगे कि कहानी का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, सरकार में भी कुछ इसी तरह का वाक्या सामने आया है। लंबे समय तक ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन, और फिर पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमैन रहे देवजी पटेल के करीबी चर्चित अफसर डॉ. अशोक चतुर्वेदी भी अध्यात्म की ओर मुड़ गए हैं।
उनके खिलाफ भ्रष्टाचार, और आय से अधिक संपत्ति के प्रकरणों की जांच चल रही है। इसी बीच चतुर्वेदी नए अवतार में नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपना नाम डॉ. अशोक हरिवंश (भैय्या जी) रख लिया है। वो रामायण के पात्रों पर प्रवचन कर रहे हैं। डॉ. अशोक ‘राम मिलेंगे’ विषय पर प्रवचन देने वाले हैं। इसका प्रसारण टीवी चैनलों में होगा। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि चतुर्वेदी के आत्मा की टार्च जल गई है।
नियुक्ति में किसी संत की भूमिका
भाजपा के मीडिया विभाग के प्रमुख पद पर अमित चिमनानी की नियुक्ति हुई, तो पार्टी के नेता भौचक रह गए। चिमनानी कभी मीडिया में कामकाज का कोई अनुभव नहीं है। वो पेशे से सीए हैं। यद्यपि कभी कभार पार्टी की तरफ से उन्हें टीवी डिबेट में भेजा जाता था। जबकि मीडिया विभाग के मुखिया ज्यादातर पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में प्रभात झा अखबार के संपादक रहे हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मीडिया प्रमुख रहे सुभाष राव, और फिर बाद में रसिक परमार का लंबा पत्रकारिता का अनुभव रहा है। नलिनेश ठोकने भी तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेताम के मीडिया सलाहकार थे, और बाद में उन्हें प्रमुख बनाया गया।
ठोकने, सुभाष राव व रसिक परमार के साथ काम कर चुके हैं। अब जब चिमनानी की नियुक्ति आदेश जारी हुए तो कई मीडिया का काम देख रहे नेताओं में गुस्सा फट पड़ा है। आपस में एक-दूसरे को वाट्सएप मैसेज भेजकर चिमनानी के साथ काम नहीं करने की बात कह रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि चिमनानी की नियुक्ति में किसी संत की भूमिका रही है। इसमें सच्चाई कितनी है यह तो पता नहीं, लेकिन चुनावी साल में भाजपा के रणनीतिकारों को मीडिया में काफी मेहनत करनी पड़ेगी।
सिंधी भाषा अनुदान से मोटी कमाई !
रविशंकर विश्वविद्यालय में सिंधी अध्ययन केन्द्र खुल गया है। इसमें सिंधी भाषा की पढ़ाई हो रही है। केन्द्र सरकार से सिंधी भाषा के उत्थान के लिए करीब 1 करोड़ रूपए अनुदान भी रविवि को दिया गया था। मंगलवार को अध्ययन केन्द्र के कामकाज की समीक्षा के लिए आए केन्द्र सरकार के एक प्रतिनिधि यह जानकार हैरान रह गए कि तीन साल पहले एक करोड़ दिए गए थे, लेकिन इसका एक पैसा भी नहीं खर्च किया गया। इसके 22 लाख ब्याज अतिरिक्त जमा हो चुके हैं। केन्द्र के प्रतिनिधि, और सिंधी समाज के नेता ने इस पर कुलपति के सामने काफी नाराजगी जताई है। उन्होंने सिंधी पत्रकारिता कोर्स, और ट्रांसलेशन के कोर्स शुरू करने का सुझाव दिया है। देखना है कि यह अमल हो पाता है, अथवा नहीं। [email protected]