राजपथ - जनपथ
आदिवासी इलाके में डॉक्टरी...
प्राय: देखा गया है कि नये पास आउट डॉक्टरों की आदिवासी बाहुल्य जिलों में नियुक्ति की जाती है पर जैसे ही साल-दो साल का समय पूरा होता है, वे सिफारिश के जरिये अपना तबादला सुविधाजनक दूसरे जिलों में स्थानांतरण करा लेते हैं। जो डॉक्टर ऐसा नहीं करा पाते वे अपने मुख्यालय वाले स्वास्थ्य केंद्रों में नहीं मिलते। कई डॉक्टर जिला मुख्यालय में प्रैक्टिस करते हुए मिल जाते हैं। इसके चलते आदिवासी जिलों में डॉक्टरों की गंभीर रूप से कमी बनी रहती है। इन जिलों में कलेक्टरों को अधिकार दिया गया है कि वे संविदा आधार पर भर्ती कर कमी पूरी कर सकते हैं। बीते मार्च में 2021 के पास आउट 66 डॉक्टरों को बस्तर संभाग के जिलों में तैनात किया गया था। इन्हें अपने तय स्वास्थ्य केंद्रों में ही निवास करने कहा गया था। ऐसा न पाए जाने पर कार्रवाई करने का अधिकार भी कलेक्टर्स को है। इसके बावजूद स्वास्थ्य केंद्रों में एमबीबीएस चिकित्सकों की, तो जिला मुख्यालय के अस्पतालों में विशेषज्ञों की भारी कमी है। स्व. बलीराम कश्यप मेडिकल कॉलेज में पहले से ही डॉक्टरों की कमी थी, उसके बाद जनवरी में एक आदेश निकालकर शिशुरोग, टीबी, प्रसूति, ईएनटी व सर्जरी के विशेषज्ञों का यहां से तबादला कर दिया गया। जशपुर के जनप्रतिनिधियों का ही आरोप है कि यहां के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र रेफर सेंटर बन गए हैं। मरीजों को सिर्फ जिला अस्पताल भेजने की सुविधा है, इलाज की नहीं। स्थिति और विकट तब हो जाती है जब जर्जर सडक़ों, नदी नालों को पार कर और एबुंलेंस के अभाव में किसी तरह आदिवासी जिला मुख्यालय में या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में आते हैं तो वहां उनका इलाज नहीं होता। हाल ही में बलरामपुर जिले की एक घटना सामने आई थी जिसमें प्रसव पीड़ा से जूझते हुए घंटों एक महिला ताला बंद अस्पताल के बाहर तड़प रही थी।
अब सरकार एक नई व्यवस्था करने जा रही है जिसमें यह तय किया गया है कि एक बार आदिवासी बाहुल्य इलाकों में डॉक्टरों की तैनाती होने पर उनका स्थानांतरण सिर्फ संभाग के भीतर होगा। राज्य सरकार नहीं बल्कि संभाग के आयुक्त इसका निर्णय करेंगे। इस फैसले के दूसरे परिणाम भी हो सकते हैं। हो सकता है डॉक्टर बस्तर और सरगुजा की पोस्टिंग लेने से ही बचना चाहें और यदि हो भी गया तो वे जिला मुख्यालय में रहना शुरू कर दें, बजाय ब्लॉक और पंचायतों में खोले गए स्वास्थ्य केंद्रों के। जरूरी तो यह है कि जिनकी पोस्टिग जिस पीएचसी, सीएचसी में है, वहां वे मौजूद रहें यह सुनिश्चित करने के लिए मॉनिटरिंग बढ़ाई जाए। साथ ही देखा जाए कि डॉक्टरों को उनकी तैनाती की जगह पर परिवार सहित रहने की जरूरी सुविधाएं मिल सके।
कांग्रेस का थाना...
धमतरी जिले के कुरुद के थाने में पुलिस के तौर-तरीकों से नाराज होकर यह पोस्टर लगा दिया। पिछले दिनों यहां की एक शराब दुकान के भीतर घुसकर कुछ लोगों ने सेल्समैन से मारपीट की थी। भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने पीडि़त की शिकायत नहीं लिखी, क्योंकि इसमें मारपीट करने वाले लोग कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। पुलिस कांग्रेस के इशारे पर काम करती है इसलिए इसे थाने को कांग्रेस का थाना कहा जाना चाहिए। पुलिस को भनक नहीं लगी कि थाने की दीवार पर पोस्टर लगाकर भाजपा कार्यकर्ता सेल्फी ले रहे हैं। जैसे ही मालूम हुआ, आनन-फानन पोस्टर हटाया गया।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष के बाद?
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में क्या बदलाव आने वाला है यह सवाल लोगों के मन में तैरने लगा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी दावेदारी पेश कर दी है। उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी खेमे का समर्थन भी बताया जा रहा है। इसी के चलते वे रेस में भी सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी ने जब एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत का हवाला दिया, तब तुरंत गहलोत ने कहा कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। इसके पहले वे कहते आ रहे थे कि दो-तीन पद एक साथ संभाले जा सकते हैं। लोग यह मानकर चल रहे हैं कि गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाने के बाद भी संगठन में गांधी परिवार का हस्तक्षेप कम नहीं होने वाला है। गांधी परिवार ही पर्दे के पीछे हाईकमान की भूमिका में बना रहेगा। पर गहलोत की जगह शशि थरूर या और कोई आता है तो वे ज्यादा आजादी से काम करते हुए दिखाई देंगे। दोनों ही परिस्थितियों में यह तय है कि सत्ता के स्तर पर कोई बदलाव अब नहीं होने वाला क्योंकि चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है। संगठन में जरूर परिवर्तन दिखाई दे सकता है। प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश कार्यकारिणी में ऐसा हो सकता है। पर, होगा क्या यह देखने के लिए नये अध्यक्ष के आसीन होने पर ही पता चलेगा। [email protected]