राजपथ - जनपथ
छींका टूटने की उम्मीद से हैं
सरकारी अफसर नेताओं के भी मुकाबले हवा का रूख भांपने में तेज रहते हैं। छत्तीसगढ़ से जुड़े हुए किसी भी बड़े और चर्चित मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का वक्त सामने आता है तो संभावित नतीजों को देखते हुए कई अफसर बंद कमरों में भरोसे के किसी के साथ भविष्य की पहेली सुलझाने में लग जाते हैं कि क्या होने से क्या होगा, और क्या नहीं होने से क्या नहीं होगा। जो लोग शतरंज खेलना जानते हैं, वे कई बाजी आगे तक की अटकल लगाने लगते हैं जो कि शतरंज खेलने के लिए एक आम खूबी मानी जाती है। लेकिन छींका टूटने से दूध-दही हाथ लगने की उम्मीद लगाए हुए कुछ अफसर बरसों से उम्मीद से हैं। इंसानी नस्ल में जब उम्मीद से होते हैं, तो 9 महीने में नतीजा सामने आ जाता है, हाथियों में 18 महीने से 22 महीने तक लग जाते हैं। छत्तीसगढ़ में कुछ चाहत रखने वाले अफसरों की उम्मीद का यह पीरियड हाथियों को भी पार कर गया है, और यहां तो 22 महीने से भी अधिक हो गए हैं, लोगों की हसरत का कुछ हो नहीं रहा है।
लेकिन सरकार से जुड़े ताकतवर लोग मीडिया के लोगों से भी बात करते हुए यह समझने की कोशिश करते हैं कि कोर्ट की अगली पेशी पर क्या होगा, किस मामले में क्या होगा। अब अगर सुप्रीम कोर्ट के जजों के दिल-दिमाग तक सचमुच ही किसी की पहुंच है, तो वे वहां की जानकारी को चना-मुर्रा की तरह बांटने से रहे। इसलिए यहां बातचीत में जो लोग जो कुछ कहते हैं, वह उनकी भावना ही भावना रहती है, उसका सच्चाई से लेना-देना नहीं रहता है। ऐसे भावनाप्रधान लोगों को पता करना चाहिए कि हाथी से भी अधिक लंबा गर्भकाल डायनासॉर का होता था क्या?
महादेव की ताकत
अभी एक-एक करके प्रदेश के कुछ जिलों में महादेव एप नाम का ऑनलाईन सट्टा पकड़ाते जा रहा है। इसकी चर्चा साल-छह महीने पहले मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के गृहजिले दुर्ग से ही शुरू हुई थी, जिन लोगों ने जोर-शोर से इस मामले को उठाया था, वे फिर रातोंरात बीयर के झाग की तरह बैठ गए थे। तब से लेकर अब तक क्रिकेट पर सट्टा लगवाने वाले इस मोबाइल एप को लेकर हर जिले के एसपी अपने जिले में अपनी मर्जी से छूट और लूट जैसे फैसले लेते रहे, जो कि आज भी जारी है। आज जब प्रदेश में कुछ जिलों में महादेव एप को पकड़ा जा रहा है, लोग गिरफ्तार हो रहे हैं, तब प्रदेश के ही कुछ जिलों में अफसरों की मेहरबानी से इसे धड़ल्ले से चलाया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस तरह के तमाम जुर्म पर तुरंत काबू की चेतावनी अभी दो-चार दिन पहले दी है, लेकिन महादेव का वरदान खासा बड़ा होता है, और कई अफसरों से वह छूट नहीं पा रहा है। पता नहीं सरकार की नजर अपने खुद के अमले पर कैसे नहीं पहुंचती है।
खैर, जुर्म और सरकार को लेकर अधिक सोचना नहीं चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए कि महादेव के नाम पर सट्टे का मोबाइल एप चल रहा है, और प्रदेश के एक भी हिन्दू की धार्मिक भावना आहत नहीं हुई है, है न महादेव की गजब की ताकत!
स्थानीय को नजरअंदाज, निराशा
भाजपा के विशेषकर दक्षिण बस्तर के कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नारायण चंदेल से निराश हैं। नया दायित्व संभालने के के बाद बस्तर पहुंचे दोनों नेताओं से कार्यकर्ताओं को काफी उम्मीदें थी। पार्टी नेताओं ने उन्हें बीजापुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा में सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी के दस्तावेज सौंपेे। पार्टी नेताओं ने उनसे आग्रह किया था कि वो प्रेस कांफ्रेंस में यहां की अनियमितताओं पर प्रमुखता से बात करें। साव,और चंदेल मीडिया से रूबरू भी हुए, लेकिन उन्होंने स्थानीय गड़बडिय़ों को नजर अंदाज कर दिया। इससे कार्यकर्ताओं का निराश होना स्वाभाविक है।
नए जिलों पर बिग-बी का सवाल
अनेक राज्यों में लोग छत्तीसगढ़ के बारे में बहुत कम जानते हैं। बहुत लोगों के मन में तो इसकी छवि एक नक्सल समस्या ग्रस्त इलाके की ही बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में हाल में जिस तेजी से नए जिलों का गठन हुआ है, उसकी चर्चा तो राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए, मगर नहीं हुई। पड़ोसी प्रदेश मध्यप्रदेश में तो यह सामान्य ज्ञान का विषय होना चाहिए।
मशहूर क्विज शो केबीसी में मंगलवार की शाम होस्ट अमिताभ बच्चन ने सवाल किया कि किस राज्य में मनेंद्रगढ़-भरतपुर-चिरमिरी और सक्ती नए जिले बने? प्रतिभागी रतलाम की रानी पाटीदार जो संयोग से राजस्व विभाग के अधीन पटवारी ही हैं, फिफ्टी फिफ्टी लाइफ लाइन का इस्तेमाल करने बाद भी सही जवाब नही दे सकीं। गलत जवाब के कारण 3.20 लाख की जगह उन्हें 10 हजार लेकर लौटना पड़ा। दिल्ली, तेलंगाना, एमपी, यूपी में स्कूल, सडक़, स्वास्थ्य पर होने वाले काम तो टीवी, अखबारों में खूब पढऩे-देखने मिल जाते हैं। पर पता नहीं छत्तीसगढ़ के बारे में राज्य से बाहर के लोगों की जानकारी कम क्यों है।